
परीक्षित मिश्रा
सबगुरु न्यूज-सिरोही। सत्ता की हनक में सिरोही के सत्ताधारी दल के नेता कदर बौरा चुके हैं कि भीड़ देखते ही मालाएं पहनने की ललक में खुदको भीड़ में बुलवाने के लिए आयोजकों को फोन करने से भी नहीं चूक रहे हैं। जो आरोप लग रहे हैं अनुसार हालात ये हो चुके हैं कि यदि किसी सरकारी संस्थान का निजी कार्यक्रम हो और इनमें आने के लिए ये नेता एलिजिबल नहीं हो तो भी उसमें जाकर मालाएं पहनने मंच पर कुर्सी तोड़ने के मोह को छोड़ नहीं पा रहे हैं।
ऐसा ही कुछ सिरोही जिला मुख्यालय पर एक सरकारी संस्थान में होने वाले कार्यक्रम दौरान सुनने को मिला। संस्थान से जुड़े पूर्व सदस्यों के बेहद निजी कार्यक्रम के दौरान ये चर्चा गर्म रही कि सत्ताधारी दल के नेताओं को विशिष्ट आमंत्रण नहीं मिलने से वे गुस्सा गए हैं और उनकी केतलियां अब इसका दोष संस्थान के कार्मिकों पर मढ़कर धौलपुर-भरतपुर स्थानांतरण करवाने तक उत्साहित हैं। जबकि कार्यक्रम में किसी नेता को विशिष्ट बनाने की बजाय संस्थान से जुड़े सबसे वरिष्ठ सदस्य को ही विशिष्ट मानने निर्णय पहले ही ये पूर्व सदस्य चुके थे।
अपने वरिष्ठ की उपस्थिति से भी संतुष्ट नहीं
राजनीतिक महत्वाकांक्षा किस हद तक नेताओं को ले जाती है इसका उदाहरण सिरोही में सोमवार को आयोजित ये कार्यक्रम भी रहा। दरअसल, सिरोही की एक सरकारी संस्थान में संस्थान से जुड़े पुराने लोगों का एकत्रीकरण का कार्यक्रम था। यानि एलुमनी मीट। इसमें हर छोटा बड़ा आदमी आया था बिना बुलाए। इसमें एक ही मापदंड था कि इस संस्थान का एलुमनी होना चाहिए। संख्या काफी थी। तो इन सत्ताधारी नेताओं को लगा कि उनको इसमें होना चाहिए। इस कार्यक्रम में जिस तरह की जेंट्री थी उनके बीच में मंच साझा करना, माला पहनना, आगे की कुर्सियों बैठना इन नेताओं को अपने कार्यकर्ताओं के हाथों से सम्मान पाने से ज्यादा सम्मानजनक लगा ।
तो इस कार्यक्रम के आयोजन के पूर्व से ही ये जुगत लगी कि कैसे ना कैसे इन्हें बुला लिया जाए। संगठन के सूत्रों के अनुसार इन नेताओं ने फोन पर अपने सलाहकारो से बात की तो उन्होंने इनके संगठन के मौलिक चरित्र अनुसार अंगूर खट्टे होने का दाव खेला। ये बोल दिया कि साहब कार्यक्रम का आयोजक पूर्व सदस्यों के संगठन का नेतृत्वकर्ता प्रतिद्वंदी संगठन का व्यक्ति है। ऐसे में इसमें नहीं जाना चाहिए।
जबकि वास्तविकता ये है कि ये कार्यक्रम संस्थान से पूर्व में जुड़े लोगों था। जाति, धर्म, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और लैंगिक भेदभाव इतर विशुद्ध संस्थान की एलुमनी मीट। वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं मिलने से आहत इन नेताओं का इस संस्थान से उस तरह का जुड़ाव था नहीं। क्योंकि जिस तरह की ये संस्थान है उस तरह की संस्थान में नेताजी के जाने का रिकॉर्ड चुनावी एफिडेविट नहीं है और न ही उन एजुकेशन सर्टिफिकेट में। जिनका है भी तो वो भी पाली जिले के संस्थान का। ऐसे में इनका जाना वहां बनता नहीं था।
संगठन में इनकी महत्वाकांक्षा की चर्चा भी हो रही और निंदा भी। पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि महत्वाकांक्षा की हालत ये है कि इनके सांगठनिक और संगठन पारिवार के सदस्य इस संस्थान का हिस्सा होने कारण इस कार्यकम मौजूद थे। लेकिन, इन्हें उनका सम्मान होना इसलिए रास नहीं आ रहा है कि राजनीतिक रूप से सत्ताधारी दल के बड़े पदों पर आसीन होने के कारण इन नेताओ को वहां नहीं बुलवाया गया। जबकि इनका नेताओं वजूद भी उन राजनीतिक और सांगठनिक पारिवार के सदस्यों की वजह बना है।
पिस गए छुटभैये नेता
बड़के नेता जी नाराज थे कि संस्थान में उन्हें विशिष्ट मुख्य अतिथि के रूप में बुलवाया नहीं। वहां फीते भी कटे। शिलान्यास भी हुए। लेकिन, इन शिलापट्ट पर इन नेताओं नाम नहीं था, इस संस्थान के एलुमनी का ही नाम था। नींव की ईंट पर इन्होंने कुमकुम नहीं किया था, संस्थान के लिए अहसानमंद उन पूर्व सदस्यों किया था जिन्होंने इसके लिए आर्थिक सहयोग किया था। अब बड़के नेताजी बुलाए नहीं गए तो ऐसे में इसी संस्थान से पूर्व में जुड़े छोटे नेता भी इस कार्यक्रम में नहीं गए। अब संगठन में कार्यकर्ता चुटकी ले रहे हैं कि इन नए नवेले नेताओं ने दाढ़ी सेट करवाई, नई ड्रेस बनवाई, पुराने दोस्तों मिलकर यादें बांटने के सपने भी संजोए। लेकिन, इन सब पर इसलिए पानी डालना पड़ा कि इनके बड़के नेताओं को वहां माला पहनने को नहीं बुलवाया गया।
इस संस्थान से जुड़े पूर्व के सभी सदस्य इसमें बिना आमंत्रण पहुंचे उन्हें सम्मान भी मिला। लेकिन, वो सम्मान पद और कद के हिसाब से नहीं बल्कि बैच की वरिष्ठता के अनुसार। कितना भी बड़ा सेलिब्रिटी या अधिकारी क्यों ना रहा हो सबसे आगे और मंच पर बैठने की बजाय अपने बैच मेट वाली पंक्ति में बैठा। सबसे आगे सबसे वरिष्ठतम सदस्य बैठे। कार्यक्रम में इसे लेकर चर्चा नहीं होती यदि इन नेताओं ने इन्हें विशेष ट्रीटमेंट नहीं देने के कारण फोन करके आपत्तिया दर्ज नहीं करवाई होती।
आनन फानन में आयोजकों ने इन नेताओं होर्डिंग लगाकर इनकी उपस्थिति दर्ज करवाकर विवाद टालने का प्रयास किया। विशिष्ट आमंत्रण इनके प्रतिद्वंद्वी दल के नेताओं को भी नहीं मिला था लेकिन, उनके इस स्तर पर उतरने की चर्चा यहां नहीं थी, जिस तरह के स्तर पर उतरने की चर्चा संस्थान के पूर्व सदस्यों के बीच इन नेताओं की थी। व्यंग्य के पात्र वो छुटभैये नेता बने रहे जो इस आशा में थे कि बड़के नेताजी के साथ जाने उन्हें उनकी पूर्व संस्थान में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलेगा। उन्हें न तो माया मिली ना राम।


