गणेश बल बुद्धि और विद्या के दायक : संत उत्तमराम शास्त्री

अजमेर। निर्गुण के रूप में विराजमान शिव एक पल में सृष्टि को बना देते हैं और एक ही एक मिनट में सृष्टि का विनाश कर देते हैं। जो बुद्धि और बल दायक है वही भगवान गणेश है। भगवान गणेश प्रथम पूजनीय व वंदनीय हैं। भारतीय सनातन संस्कृति में किसी भी कार्य की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा अर्चना और वंदना से ही होती है।

यह बात संत उत्तम राम शास्त्री ने गुलाब बाड़ी तेजाजी की देवली मंदिर में आयोजित शिव महापुराण कथा के गणेश जन्मोत्सव प्रसंग के दौरान कही। उन्होंने कहा कि मां पार्वती की अपटन से जो पुतला बनाया गया उस पुतले को देखकर मां भवानी बड़ी द्रवित हुई और मोह रूप में उन्हें वह पुतला बड़ा अच्छा लगा। तब उन्होंने उसमें प्राण डाले और कहा संसार में यह मेरा पुत्र रूप है, इसे गणेश नाम से जाने जाएगा। यह मेरा पुत्र नहीं रक्षक भी होगा।

भगवान गणेश की छोटी अवस्था है परंतु इतनी सुंदर हैं कि उन्हें देखते ही सबका मनमोहित हो जाता है। शरीर भारी है और बड़े सुंदर दिखते हैं। मां पार्वती ने भगवान गजानन से कहा कि आप मेरे कक्ष के बाहर रक्षक बनकर खड़े रहें, जब तक मेरी आज्ञा ना हो तब तक किसी को भी इस द्वार के अंदर मत आने देना।

कथा के दौरान बंटी राव ने भगवान गणेश की वंदना की और एक से बढ़कर एक भजन सुनाकर कथा पंडाल में गणेश जन्म महोत्सव पर श्रद्धालुओं को भक्ति से सराबोर कर दिया। कथा के पश्चात मुख्य जजमान में आरती की और प्रसाद वितरित किया गया।