सिरोही भाजपा का कांग्रेस मॉडल: जनता नहीं, भाजपा नेताओं के सामने हाजिरी जरूरी!

आबूरोड नगरपालिका

सबगुरु न्यूज-आबूरोड। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 2014 में आए तो कांग्रेस मुक्त का नारा दिया। फिर विधानसभाओं में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया तो वो बोलने लगे कि कांग्रेस पार्टी के मुक्त नहीं कांग्रेस के कल्चर से मुक्त राजनीतिक व्यवस्था बनानी है।

लेकिन, विधानसभा चुनावा में भाजपा के सत्ता में काबिज होने के बाद जो हालात देखने को मिल रहे है उससे लग रहा है कि भाजपा ने तो कांग्रेस सरकार के समय से भी बदतर कल्चर अपना लिया है। अब सिरोही जिले में जो माहौल बनाया है उसके अनुसार मुख्यमंत्री के दावे के अनुसार जनता को सुशासन देने के लिए अधिकारी प्रतिबद्ध होवें या नहीं होवे लेकिन, भाजपा के पदाधिकारियों के प्रति जवाबदेह होना जरूरी हो गया है। जिले में जो हालात दिख रहे हैं उससे स्पष्ट लग रहा है कि यहां पर सत्ता के इतने केन्द्र बना दिए हैं कि उन्हें साधने के चक्कर में कार्मिकों का जनता को संतुष्ट कर पाना मुश्किल है।
-कांग्रेस राज से बदतर हालात
सरकार बदलने के बाद सबसे बदतर हालात अगर कहीं हैं तो सिरोही जिले की नगर परिषद और नगर पालिकाओं में है। यहीं वो जगहें हैं जिनकी कार्यप्रणाली ने कांग्रेस को साफ कर दिया था। जिले के भाजपा नेता भी कांग्रेस के नक्शे कदम पर हैं। जिले की आधी नगर पालिकाओं में अधिशासी अधिकारी नहीं हैं। इनके बिना काम अटके हुए हैं।

आबूरोड नगर पलिका का हाल कांग्रेस राज में संयम लोढ़ा और नीरज डांगी की जंग में बदहाल था। वहां पर अधिशासी अधिकारी लगाए जाते थे तो वो महीने भर भी नहीं टिकते थे। लेकिन शुरुआती रुझान बता रहे है कि भाजपा यहां के हाल उससे भी बदतर करेगी।

सूत्रों की मानें तो यहां पर जिला कलेक्टर ने कार्यवाहक आयुक्त लगाया था। इन्हें भाजपा ने एक सप्ताह भी नहीं टिकने दिया। पार्टी सूत्रों की मानें तो यहां पर कार्यवाहक अधिशासी अधिकारी का पदस्थापन स्थानीय विधायक पद के प्रत्याशी और नगर पालिका में भाजपा के अध्यक्ष के अनुरोध पर किया था। लेकिन, उन्हें टिकने नहीं दिया।
-घर पर हाजिरी नहीं बजाई इसलिए रवानगी
पार्टी सूत्रों की मानें तो इसका राज रेलवे स्टेशन पर विकसित भारत के कार्यक्रम के दौरान खुला। पार्टी सूत्रों की मानें तो आबूरोड में ही रह रहे भाजपा के  पदाधिकारी अपनी पार्टी के नेता को ये कहते हुए अपना अहंकार दिखाते नजर आए कि अधिशासी अधिकारी की नियुक्ति उनकी सहमति के बिना कोई दूसरा नेता कैसे करवा सकता है।

पार्टी में चर्चा है कि यहां वो इसलिए भी नाराज दिखे कि कार्यवाहक अधिशासी अधिकारी ने ज्वाइन करने के बाद उनके घर पर आकर हाजिरी नहीं बजाई। आबूरोड में ये चकल्लस आम है कि यहां पर भाजपा नेता अपने वर्चस्व के लिए जनहितों को दरकिनार करने का कांग्रेस मॉडल को और भी विकृत रूप में आत्मसात कर चुके हैं। यहां भी नगर पालिका को अस्थिर करने और वहां पर अपना वर्चस्व जमाने के लिए सरूपगंज के नेता के हस्तक्षेप का आरोप पार्टी कार्यकर्ता और पदाधिकारी लगा रहे हैं।
-आखिर हाजिरी क्यों जरूरी?
अगर वाकई भाजपा के संगठन पदाधिकारी इस रीति-नीति पर चल रहे हैं तो उनकी भूमिका को संदेह के दायरे में रखना लाजिमी है। भाजपा और आबूरोड ही नहीं जिले में भी अब ये चर्चा आम हो चुकी है कि लोगों ने अशोक गहलोत सरकार को सरकार सुशासन नहीं दे पाने के कारण बदली थी। ऐसे में सत्ताधारी भाजपा का ध्येय गवर्नेंस नहीं देने वाले अधिकारी को हटाने का होना चाहिए।

लेकिन, सिर्फ घर पर हाजिरी नहीं बजाने या प्रोटोकॉल वाले जनप्रतिनिधि के प्रोटोकॉल रहित दूसरे नेता से सहमति नहीं लेने के मुद्दे पर ज्वाइनिंग के एक सप्ताह में अधिकारी को हटा देने से इसमें शामिल नेताओं की नीयत पर अंगुली उठने लगी है। अब आबूरोड के लोग ही इस सवाल का जवाब देने लगे हैं कि आखिर क्यों काम शुरू करने से पहले नेताजी को अधिशासी अधिकारी को उनके घर पर हाजिरी बजाने की आवश्यकता नजर आने लगी।