सबगुरु न्यूज-आबूरोड। जनता चुनाव जिताकर विभिन्न सदनों में भेज सकती है। लेकिन, जीतने के बाद जनता के बीच नहीं जाने से होने वाली आईडेंटिटी क्राइसिस का नुकसान से जनता नहीं बचा सकती है और न ही राजनीतिक आका इससे राहत दिलवा सकते हैं। जनता के नहीं पहचानने से किस तरह से व्यवहार हो सकता है वो आबूरोड में बार बार होने वाली घटनाओं से हर नेता सीख सकता है।
आइडेंटिटी क्राइसिस पीड़ित नेताजी ने पहले हवाई पट्टी पर प्रधानमंत्री से मिलने नहीं देने को प्रोटोकाॅल उल्लंघन बताकर राजनीतिकरण कर दिया। फिर प्रोटोकॉल के तहत शिलापट्टों पर नाम नहीं होने को लेकर जयपुर के संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं को टेग कर दिया। लेकिन, दो दिन पहले जो हुआ उसे किसे टैग करेंगे। उस तरह की घटनाओं से नेताजी कैसे राहत प पाएंगे। इतनी बडी सफलता हासिल करने के बाद यदि आम जनता में अपनी पहचान तक नहीं बना पाए तो ऐसे जन प्रतिनिधि किस तरह से जनता का प्रतिनिधित्व किए होंगे ये बताने की आवश्यकता नहीं है।
– लोगों ने पहचाना नहीं
सिरोही जिले में बीस साल बाद एक बडा उलटफेर हुआ था। एक निर्वाचन क्षेत्र में चार चुनावों से चले आ रहे दबदबे को एक नेता ने तोडा था। ये उपलब्धि उन नेता की व्यक्तिगत थी। किसी गाॅडफादर की नहीं। लेकिन, चुनाव जीतने के बाद वो उस उपलब्धि का ही यथावत नहीं रख पाए। जिस निर्वाचन क्षेत्र की जनता ने अपनी आवाज और दर्द सरकार को बताने के लिए उन्हें चुनकर भेजा उसी निर्वाचन क्षेत्र के सबसे बडे इलाके को उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर जाने के लिए परिवहन साधन पकडने से अलावा कुछ नहीं समझा। दो साल बाद रविवार को ये हालत हुई कि उस जनप्रतिनिधि को अपनी पहचान के लिए भी तरसना पडा।
-दर्शक दीर्घा में ही बैठे रहे
हुआ ये कि आबूरोड में एक संस्थान की तरफ से कार्यक्रम का आयोजन था। इसमें हिस्सा लेने के लिए हर राजनीतिक पार्टी के नेताओ को आमंत्रित किया जा रहा था। सूत्रों के अनुसार इन नेताजी का भी नाम था। ये पहुंच गए। अब क्योंकि इनकी जनता के बीच में आवाजाही और इस शहर की जनता के लिए आवाज उठाने में भूमिका लगभग न्यूनतम ही रही तो जनता के बीच इनकी पहचान भी लगभग धूमिल हो गई है।
तो नेताजी कार्यक्रम स्थल पर पहुंच गए। लेकिन, इन्होंने खुद अपने लिए आइडेंटीटी क्राइसिस पैदा कर दी थी तो आयोजकों में इन्हें पहचाना नहीं गया। ये मान लिया गया कि ये वहां आए ही नहीं हैं। ऐसे में मंच पर बैठने वालों की सूची में से इनका नाम हटा दिया गया। एक के बाद एक नेताओं का मंच पर बैठने का आमंत्रण मिलता रहा। आइडेंटीटी क्राइसिस से जूझते इन नेताजी का नाम नहीं आया। कार्यक्रम शुरू हो गया। मंच वाले नेता एक के बाद एक भाषण देते रहे। नेताजी अपना नाम आने के इंतजार में मंच के नेताओं का भाषण सुनते रहे। काफी देर तक मंच पर नहीं बुलवाने पर इन्होंने पूछा तो पता चला कि इनका नाम तो अनुपस्थित होने के कारण सूची से हटा दिया गया था।
फिर इन्होंने आयोजकों से अपनी काफी सख्त नाराजगी जताई। सूत्रों के अनुसार आयोजकों ने उनके अनुपस्थित होने की जानकारी मिलने की बात कही। तब इन्होंने बताया कि वो काफी देर से बैठे हैं। अब आयोजक कैसे कहते कि नेताजी आप लोगों के बीच में सक्रिय रहे होते तब तो लोग आपको पहचानते। खैर, उनके स्वयं के गायब नहीं उपस्थित होने की जानकारी देने पर उन्हें मंच पर आमंत्रित कर दिया गया।
-पूरे संगठन का यही हाल
आबूरोड शहर में इन नेताजी ही नहीं इनके पूरे संगठन का ये हाल है। भले ही इनके राष्ट्रीय नेता भाषणों में ये डींगे हांकते रहें कि हमें जनता के बीच रहकर जनता के लिए संघर्ष करना है। लेकिन, इनके स्थानीय नेता सत्ता की गोद मे ंबैठकर अपनी पहचान निरंतर खोते जा रहे हैं। ये नेताजी स्वविवेक से शहर में कभी जनता की आवाज बनकर सक्रिय मोड में गाहे बगाहे ही नजर आए होंगे । तो जनता ही नहीं कार्यकार्ताओं में भी इनके लिए कोई जगह नहीं बची है। ऐसे में इन्हें इस कार्यक्रम में स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं की जगह एक स्थानीय व्यवसायी को ले गए। हमारे नेता आए हैं उनका सम्मानित स्थान दो या सम्मान करो ये काम व्यवसायी की जगह कार्यकर्ता ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकते हैं। सो ऐसा नहीं हो सका।
– अपने गाॅड फादर से ही सीख लेते ये गुर
जिन जनप्रतिनिधि को ये शर्मीदगी झेलनी पडी दरअसल वो लम्बे समय से अन्य दल में थे। बताया जाता है कि टिकिट नहीं मिलने के कारण पार्टी बदली। इसका श्रेय वो सिरोही के जन प्रतिनिधि को दिया जाता है। अंततः उन्हें इस संगठन से टिकिट मिला और उन्होंने वो कर दिखाया जो पिछले बीस साल में इस पार्टी का कोई प्रत्याशी नहीं कर पाया। लेकिन, निर्वाचन के सम्मान को वो अपनी लापरवाही से यथावत नहीं रख पाए। सार्वजनिक स्थान पर सम्मान कैसे पाया जाता है ये वो अपने सिरोही जिले के ही राजनीतिक गाॅड फादर से सीख लेते तो ये फजीहत नहीं होती।
वो सीख लेते कि कैसे कार्यक्रम स्थल पर अपने पहुंचने से पहले अपने निकटतम कार्यकर्ता को वहां भेजकर व्यवस्था दिखवाई जाए। भीड दिखवाई जाए। उनके पहुंचने से पहले आयोजकों को ये बतवाया जाए कि साहब आ रहे हैं उनके स्वागत की तैयारी रखी जाए। इस सबसे सावधानी हटते ही नेताजी के साथ रविवार वाली दुर्घटना घट गई।