सूफी कोऑर्डिनेशन कमेटी ने दो दशक बाद ‘यौम-ए-ग़ुलाम अहमद सोफी’ का किया पुनर्जीवन

श्रीनगर। बीस साल बाद घाटी फिर एक बार प्रेम और भक्ति की सुरीली धुनों से गूंज उठी, जब सूफी कोऑर्डिनेशन कमेटी ने प्रसिद्ध सूफी गायक और कश्मीर की सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक ग़ुलाम अहमद सोफी (रह.) की याद में यौम-ए-ग़ुलाम अहमद सोफी मनाया।

यह स्मृति कार्यक्रम वानियार नूर बाग़ फायर सर्विस ग्राउंड में आयोजित किया गया, जिसमें कलाकारों, मुरीदों, प्रशंसकों और सोफी साहब के परिवार ने भाग लिया। माहौल सूफियाना कलामों और रूहानी नज़्मों से महक उठा, जो कभी सोफी साहब की आवाज़ की पहचान हुआ करती थीं। घाटी के विभिन्न हिस्सों से आए कलाकारों ने उनके अमर कलाम पेश कर उन्हें श्रद्धांजलि दी — जिनमें इश्क़, अदब और इंसानियत का संदेश गूंजता रहा।

सूफी लीजेंड के परिवार ने जताया आभार

कार्यक्रम में ग़ुलाम अहमद सोफी साहब का परिवार भी उपस्थित रहा। परिवार के सदस्यों ने लगभग दो दशकों बाद इस स्मृति दिवस को पुनर्जीवित करने के लिए सूफी कोऑर्डिनेशन कमेटी का दिल से शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि हम बेहद भावुक हैं कि सोफी साहब का नाम और योगदान फिर से लोगों के दिलों में जीवित हो गया है। उन्होंने पूरी ज़िंदगी सूफी संस्कृति और प्रेम का पैग़ाम फैलाने में समर्पित की। यह गर्व की बात है कि उनका रूहानी संगीत आज की पीढ़ी को भी प्रेरित कर रहा है।

परिवार ने सभी कलाकारों, श्रद्धालुओं और प्रशासनिक अधिकारियों का धन्यवाद किया जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाया और सोफी साहब की सादगी, विनम्रता व आध्यात्मिकता को याद किया।

अख़्तर हुसैन—सूफी हीरो आर्टिस्ट का संदेश प्रेम और एकता का पैग़ाम

कार्यक्रम की अगुवाई अख़्तर हुसैन, अध्यक्ष सूफी कोऑर्डिनेशन कमेटी ने की, जिन्हें घाटी में सूफी हीरो आर्टिस्ट के रूप में जाना जाता है, जो दशकों से सूफियाना संगीत और संस्कृति के प्रचार में सक्रिय हैं।

अपने प्रेरणादायक संबोधन में उन्होंने कहा कि सोफी साहब सिर्फ़ गायक नहीं थे, बल्कि एक रूहानी आत्मा थे जिनकी आवाज़ ने पीढ़ियों तक भक्ति की गूंज पहुंचाई। उन्होंने एकता, विनम्रता और ईश्वरीय प्रेम का संदेश दिया जो कश्मीर की असली पहचान है। आज का दिन उस सुनहरे सूफी दौर का पुनर्जागरण है।

अख़्तर हुसैन ने जिला प्रशासन श्रीनगर, जम्मू-कश्मीर पुलिस, पावर डेवलपमेंट डिपार्टमेंट (PDD), पब्लिक हेल्थ इंजीनियरिंग (PHE), श्रीनगर नगर निगम (SMC) और फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज़ का विशेष आभार व्यक्त किया जिन्होंने कार्यक्रम की सफलता में सहयोग दिया।

उन्होंने सूफी गायकों और कलाकारों की भी सराहना की जिन्होंने पूरे भाव और श्रद्धा से सोफी साहब के कलाम प्रस्तुत किए। हमारे कलाकार कश्मीर के आध्यात्मिक संदेश के वाहक हैं। उनका समर्पण साबित करता है कि सूफीवाद सिर्फ़ हमारी विरासत नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की जीवित धड़कन है।

भक्ति और कला का संगम

यौम-ए-ग़ुलाम अहमद सोफी के इस आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं, स्थानीय निवासियों और सांस्कृतिक प्रेमियों ने हिस्सा लिया। पूरा वानियार नूर बाग़ इलाका सूफियाना माहौल में डूबा रहा। कलाकारों ने सोफी साहब की शैली में सूफी कलाम पेश किए, जिससे श्रद्धालुओं की आंखें नम हो गईं। कई वरिष्ठ वक्ताओं और कलाकारों ने कश्मीर की सूफी कला को जीवित रखने और ऐसे महान कलाकारों की विरासत को संरक्षित करने की ज़रूरत पर बल दिया।

सूफी विरासत को जीवित रखने का संकल्प

कार्यक्रम के अंत में सूफी कोऑर्डिनेशन कमेटी ने घोषणा की कि यौम-ए-ग़ुलाम अहमद सोफी अब हर साल मनाया जाएगा ताकि नई पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जड़ों से जुड़ी रहे। अख़्तर हुसैन ने कहा कि हम अपने सूफी संतों और कलाकारों की याद हमेशा ताज़ा रखेंगे जिन्होंने इंसानियत को सबसे ऊपर रखा। कश्मीर का संदेश हमेशा शांति, करुणा और रूहानी एकता का रहा है और यह जारी रहना चाहिए।

कार्यक्रम का समापन ग़ुलाम अहमद सोफी की आत्मा की मग़फ़िरत और घाटी में अमन-शांति की दुआ के साथ हुआ। इस आयोजन को स्थानीय समुदाय ने इसकी सादगी, उत्कृष्ट आयोजन और रूहानी वातावरण के लिए खूब सराहा।सोफी साहब की रूहानी आवाज़ आज भी कश्मीर की दरगाहों, घरों और दिलों में गूंजती है। उनकी विरासत सिर्फ़ संगीत नहीं, बल्कि प्रेम, विनम्रता और इंसानियत की एक जीवित दर्शन है।

यौम-ए-ग़ुलाम अहमद सोफी ने यह याद दिलाया कि समय चाहे कितना भी बीत जाए, मगर जो आवाज़ें सत्य, ईमान और प्रेम के तराने गाती हैं, वे कभी ख़ामोश नहीं होतीं; वे कश्मीर की रूह में हमेशा ज़िंदा रहती हैं।