नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संकेत दिया कि यदि परिस्थितियां आवश्यक हुईं, तो वह पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तहत मतदाता सूचियों के मसौदे के प्रकाशन की समय सीमा को बढ़ा सकता है। मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कई राज्यों में चल रहे एसआईआर की वैधता और समय को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
मुख्य न्यायाधीश ने मौखिक रूप से कहा कि तो क्या हुआ? अगर आप कोई मामला बनाते हैं, तो हम उन्हें तारीख बढ़ाने का निर्देश दे सकते हैं… क्या वह तारीख अदालत के लिए यह कहने का आधार बन सकती है कि हमारे पास कोई शक्ति नहीं है? अदालत हमेशा कह सकता है।
पीठ ने निर्वाचन आयोग को तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल से संबंधित याचिकाओं में अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। तमिलनाडु मामलों को चार दिसंबर और पश्चिम बंगाल मामलों को नौ दिसंबर के लिए सूचीबद्ध किया गया है। केरल के एसआईआर को स्थगित करने की मांग वाली याचिकाओं पर दो दिसंबर को सुनवाई होगी।
तमिलनाडु में एसआईआर को राजनीतिक हितधारकों के एक बड़े समूह ने चुनौती दी है, जिनमें द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) (आरएस भारती के माध्यम से), मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी, अभिनेता विजय की पार्टी तमिलगा वेत्री कषगम आदि शामिल हैं। साथ ही, विधायक के सेलवापेरुन्थगाई और टी वेलमुरुगन, एम वीरापांडियन, और राजनीतिज्ञ थमीमूम अंसारी जैसे नेता भी इनमें शामिल हैं।
द्रमुक के अनुसार विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण (एसएसआर) पहले ही अक्टूबर 2024 और 6 जनवरी 2025 के बीच आयोजित किया जा चुका है, जिसके परिणामस्वरूप एक अद्यतन मतदाता सूची प्रकाशित हुई है। इसके बावजूद, आयोग ने एक नया एसआईआर शुरू किया है, जिसमें ऐसे दिशा-निर्देश पेश किए गए हैं जिनके लिए नागरिकता सत्यापन की आवश्यकता है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे।
याचिका में तर्क दिया गया है कि एसआईआर प्रभावी रूप से ‘वास्तविक एनआरसी’ बन गया है, क्योंकि इसमें नागरिकता का निर्धारण किया जा रहा है, जबकि यह शक्ति नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत केंद्र सरकार में निहित है। इसके विपरीत, अखिल भारतीय द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) ने एसआईआर का समर्थन करते हुए इसे चुनावी अखंडता की रक्षा और मतदाता धोखाधड़ी को रोकने के लिए एक आवश्यक सुरक्षा उपाय बताया है।
पश्चिम बंगाल में, एसआईआर प्रक्रिया को तृणमूल कांग्रेस के सांसद डोला सेन, शुभंकर सरकार और पश्चिम बंगाल कांग्रेस समिति की मोस्तारी बानू ने चुनौती दी है। इन्होंने प्रक्रियागत अनियमितताओं और संभावित मताधिकार से वंचित होने का आरोप लगाया है। पुड्डुचेरी में एसआईआर को विधानसभा में विपक्ष के नेता आर. शिवा ने चुनौती दी है, जिन्होंने इस कवायद की वैधता के बारे में चिंताएं जताई है और मतदाता सूची से नाम काटे जाने को लेकर भी सवाल उठाए हैं।
बिहार में हुए एसआईआर को भी कई याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी गई थी। याचिकाओं में बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने और प्रक्रियाओं में अनियमितता का आरोप लगाया गया था। न्यायालय ने मतदाता सूची में शामिल किये जाने के लिए पहचान दस्तावेजों के रूप में आधार को भी मान्यता दी थी और हटाए गए मतदाताओं के विवरण के प्रकाशन का निर्देश दिया था।
आयोग ने 16 अक्टूबर को न्यायालय को सूचित किया था कि अभी अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होने की प्रक्रिया में है, जिसके बाद मामले को स्थगित कर दिया गया था। वकील प्रशांत भूषण ने आग्रह किया था कि जोड़े गए या हटाए गए नामों का पारदर्शी तरीके से खुलासा किया जाए। पीठ ने हालांकि आयोग द्वारा मतदाता सूची के प्रकाशन का इंतजार किया और यह विश्वास व्यक्त किया कि आयोग अपने दायित्वों को पूरा करेगा।
इसके बाद हालांकि 6 और 11 नवंबर को बिहार भी संपन्न हो गया और 14 नवंबर को परिणाम भी घोषित हो गया। सुप्रीम कोर्ट अब इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या मसौदा सूची प्रकाशन के लिए आयोग द्वारा निर्धारित समय सीमा में संशोधन की आवश्यकता है और क्या राज्यों में एसआईआर अभ्यास वैधानिक और संवैधानिक मापदंडों का अनुपालन करते हैं।



