नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदी फिल्म उदयपुर फाइल्स: कन्हैयालाल लाल टेलर मर्डर की रिलीज के खिलाफ दायर याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से बुधवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की अंशकालीन कार्य दिवस पीठ ने मोहम्मद जावेद की याचिका पर तत्काल विचार करने से इनकार किया, लेकिन उनकी ओर से पेश अधिवक्ता से कहा कि वो 14 जुलाई को (गर्मी की छुट्टियों के बाद) अदालते फिर से सामान्य रूप से खुलने पर मामले का उल्लेख कर सकते हैं।
जावेद उदयपुर के 2022 को कन्हैया लाल तेली हत्याकांड के आरोपियों में शामिल है। उसने 11 जुलाई को रिलीज के लिए तैयार इस फिल्म पर रोक लगाने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत में एक रिट याचिका दायर की है।
शीर्ष अदालत के जावेद की याचिका पर इनकार और 14 जुलाई को फिर उल्लेख करने की अनुमति पर उनके अधिवक्ता ने दलील दी कि तब तक वह हिंदी फिल्म रिलीज हो जाएगी और निष्पक्ष सुनवाई का उनका अधिकार प्रभावित होगा।
पीठ पर उनकी इस दलील का कोई असर नहीं पड़ा और उसने तत्काल सुनवाई की याचिका को अस्वीकार करते हुए कहा कि इसे रिलीज़ होने दिया जाए। जावेद की याचिका में दावा किया गया था कि फिल्म सांप्रदायिक रूप से भड़काऊ है और संबंधित हत्या मामले में चल रही न्यायिक कार्यवाही को प्रभावित कर सकती है।
याचिकाकर्ता की ओर से आगे तर्क दिया गया कि एक दर्जी की हत्या मामले से संबंधित घटनाओं पर आधारित बताई जा रही इस फिल्म की स्क्रीनिंग निष्पक्ष सुनवाई के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन करेगी। उन्होंने मामले की सुनवाई पूरी होने तक फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग की।
उदयपुर के एक दर्जी कन्हैया लाल तेली की जून 2022 में कथित तौर पर मोहम्मद रियाज़ और मोहम्मद ग़ौस ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। आरोपियों द्वारा कथित तौर पर दर्ज की गई इस हत्या की घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इस मामले की जांच की थी। आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत अपराध तय किए गए हैं। वर्तमान में जयपुर स्थित विशेष एनआईए अदालत में मुकदमा चल रहा है।
जावेद की याचिका में कहा गया है कि इस मोड़ पर ऐसी फिल्म रिलीज़ करना, जिसमें आरोपी को दोषी और कहानी को पूरी तरह से सच दिखाया गया है, जो चल रही कानूनी कार्यवाही को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
उनकी याचिका में आगे दावा किया गया है कि अगर फिल्म रिलीज़ होती है तो इससे निर्दोषता की धारणा को नुकसान पहुंचने की संभावना है और जनमत को इस तरह प्रभावित करने का जोखिम है, जिससे मुकदमे की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है।
याचिका में कहा गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता को मिले स्वतंत्र और निष्पक्ष मुकदमे के अधिकार को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। जावेद के अलावा, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी इस विवादित फिल्म की रिलीज़ पर रोक लगाने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की याचिका में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा जारी प्रमाण पत्र की वैधता को चुनौती दी गई है, जिसमें दावा किया गया है कि यह सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952 की धारा 5बी और 1991 में धारा 5बी के तहत जारी सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए फिल्मों के प्रमाणन संबंधी दिशानिर्देशों का उल्लंघन है।