नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने केरल उच्च न्यायालय के 11 दिसंबर 2024 के उस आदेश को सोमवार को रद्द कर दिया, जिसमें सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (एसडीपीआई) के प्रदेश सचिव के एस शान की हत्या से संबंधित एक मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पांच कथित सदस्यों को दी गई जमानत रद्द कर दी गई थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि आरोपी अपीलकर्ता दो साल से ज़मानत पर हैं। राहत मिलने के बाद वे किसी भी समान या अन्य अपराध में शामिल नहीं रहे हैं। पीठ ने यह भी कहा कहा कि इस मामले में 141 गवाह हैं और मुकदमे को पूरा होने में समय लगेगा। पीठ ने कहा कि हम स्वतंत्रता में कटौती के बजाय उसके पक्ष में खड़ा होना पसंद करते हैं।
उन्होंने न्यायमूर्ति वीआर कृष्ण अय्यर द्वारा प्रतिपादित ज़मानत न्यायशास्त्र के स्वर्णिम नियम, ज़मानत नियम है और जेल अपवाद पर ज़ोर दिया, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा कि जब अभियुक्त लगाई गई किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है तो ज़मानत रद्द की जा सकती है। दूसरी ओर, ज़मानत देने का आदेश रद्द किया जा सकता है यदि ऐसा आदेश विकृत या अवैध पाया जाता है।
इस मामले में दिसंबर 2022 में विभिन्न आदेशों के तहत निचली अदालत द्वारा ज़मानत दिए गए 10 आरोपियों में से उच्च न्यायालय ने 18 दिसंबर 2021 को राजनीतिक दुश्मनी के कारण हत्या में कथित रूप से शामिल होने के आरोप में पाँच अपीलकर्ताओं अभिमन्यु, अतुल, सानंद, विष्णु और धनीश की ज़मानत रद्द कर दी।
केरल सरकार ने तर्क दिया कि ज़मानत मिलने के बाद एक अपीलकर्ता और एक अन्य सह-आरोपी एक व्यक्ति पर हमले में शामिल थे। सरकार ने एक स्थिति रिपोर्ट में अपीलकर्ताओं के आपराधिक इतिहास का भी हवाला दिया।अदालत ने हालांकि बताया कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि शिकायतकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष एक हलफनामा दायर कर अपीलकर्ता विष्णु की संलिप्तता से इनकार किया था।