नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने गुरुवार को पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को 1996 के मादक पदार्थ प्लांट करने मामले में दी गई 20 साल की सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने गुरुवार को भट्ट की याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिससे 2024 में गुजरात की एक अदालत द्वारा एनडीपीएस अधिनियम एवं भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत दी गई सजा बरकरार रही।
सुनवाई के दौरान, भट्ट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि पूर्व आईपीएस अधिकारी पहले ही सात वर्षों से अधिक समय जेल में गुजार चुके हैं और वह गैर-व्यावसायिक मात्रा में मादक पदार्थों का दोषी ठहराया गए थे।
याचिका का विरोध करते हुए, राज्य की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने कहा कि यह स्पष्ट रूप से साजिश का मामला है और कहा कि एक साजिश रची गई थी, अफीम प्लांट की गई थी और बरामदगी एक किलो से ज्यादा थी। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने सजा को निलंबित करने की याचिका खारिज कर दी।
यह मामला 1996 का है, जब राजस्थान के वकील सुमेर सिंह राजपुरोहित को बनासकांठा पुलिस ने पालनपुर के एक होटल के कमरे से कथित रूप से अफीम बरामद होने के बाद गिरफ्तार किया था। उस समय भट्ट पालनपुर में पुलिस उपाधीक्षक थे। बाद में बरी हुए राजपुरोहित ने भट्ट और अन्य अधिकारियों के खिलाफ संपत्ति विवाद के कारण उन्हें झूठा फंसाने के लिए प्रतिबंधित पदार्थ रखने का आरोप लगाया था।
भट्ट को इस मामले में 2018 में गिरफ्तार किया गया था। वह 1990 में प्रभादास वैष्णानी की हिरासत में हुई मौत से संबंधित एक अन्य मामले में भी आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं, उस समय भट्ट जामनगर में सहायक पुलिस अधीक्षक थे।
इसी तरह, अप्रैल में उच्चतम न्यायालय ने हिरासत में हुई मौत के मामले में उनकी सजा निलंबित करने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया था। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना करने के लिए जाने जाने वाले भट्ट को कथित रुप से बिना अनुमति के अनुपस्थित रहने के आरोप में 2015 में आईपीएस से बर्खास्त कर दिया गया था। इससे पहले, उन्होंने शीर्ष अदालत में एक हलफनामा दायर कर दावा किया था कि 2002 के गुजरात दंगों में गुजरात सरकार की मिलीभगत थी।



