
सबगुरु न्यूज-सिरोही। जिला मुख्यालय के प्रमुख मंदिर रामझरोखा के विवाद के मामले में कांग्रेस विधायक संयम लोढा ने सत्ताधारी दल की सीधी-सीधी लिप्तता का आरोप लगा दिया है। सोशल मीडिया पर पंचायत राज राज्यमंत्री ओटाराम देवासी के द्वारा जिला कलेक्टर को रामझरोखा मंदिर की भूमि के मामले में सख्त कार्रवाई के आदेश देने की सूचना वायरल है।
इस संदेश में बताया जा रहा है कि कलेक्टर ने भी इस मामले को गंभीरता से लेते हुए इसे जिला सतर्कता समिति के प्रकरणों के तहत दर्ज कर लिया है। लेकिन, वो अपने ही संगठन में इस जमीन को बचाने के लिए गंभीर होने का विश्वास नहीं जता पा रहे हैं। उन्हीं के संगठन के कार्यकर्ताओं का कहना है कि ओटाराम देवासी खुद देवस्थान विभाग के राज्यमंत्री रह चुके हैं और एक मंदिर के पुजारी भी हैं। ऐसे में वो इस बात से नावाकिफ नहीं होंगे कि मंदिर की जमीन को बचाने के लिए सबसे पहला कदम क्या होना चाहिए था। वो अच्छी तरह से वाकिफ होंगे कि फिलहाल इस जमीन पर देवस्थान बोर्ड और सिरोही कलेक्टर को रिसिवर नियुक्ति के आदेश देने की जरूरत है न कि लम्बी खिंचने वाली कार्रवाई करने का गोलमोल आदेश देने की। इसके पीछे भाजपा कार्यकर्ता 2017 में हुए महामंदिर वाले मामले का उदाहरण भी देते हैं, जिसे हस्तांतरित करने पर भाजपा के ही कार्यकर्ताओं के हंगामे पर त्वरित प्रभाव से रिसिवर नियुक्त किया गया था।
-कार्मिकों पर कार्रवाई को कहा
इस वायरल समाचार में मंत्री ओटाराम देवासी ने जिला कलेक्टर को पत्रावलियो मे हुई अनियमितताओ और दस्तावेजो मे हुई गङबङियो के लिए सम्बन्धित व्यक्तियो के खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही करने के भी निर्देश प्रदान किये है। इसमें बताया गया हैं कि जिला प्रशासन को यह सख्त हिदायत दी है कि मन्दिर की भूमि को कोई निजी व्यक्ति अवैध रूप से हथियाने का प्रयास करेगा तो यह बर्दाश्त नहीं करेंगे।
– महीने में होती है एक बैठक
प्रशासन पंचायतराज मंत्री ओटाराम देवासी के सख्त आदेश को किस गंभीरता से लिया है ये ओटाराम देवासी के सख्त आदेश के वायरल समाचार से पता चल रहा है। ओटाराम देवासी के आदेश पर जिस समिति में इस प्रकरण को दर्ज करने की जानकारी दी गई है उस समिति की बैठक महीने में एक बार होती है। वो भी अंतिम गुरुवार को। वो भी तब जब उस दिन कोई जरूरी काम नहीं आ जाए। यदि इससे आवश्यक काम आ जाए तो इस समिति की बैठकें कई बार टल भी जाती है।
-क्यों होती है रिसिवर नियुक्ति
देवस्थान की किसी संपत्ति पर विवाद होने पर उसको खुर्द-बुर्द होने से बचाने और विवादों को रोकने के लिए रिसिवर की नियुक्ति की जाती हैं। राजगुरु द्वारा की ही महामंदिर की संपत्ति का विवाद होने पर प्रशासन ने तुरंत सिरोही कोतवाल को वहां का रिसिवर नियुक्त कर दिया था। कानूनी जानकारों के अनुसार इस तरह के मामलों के किसी ट्रस्ट की संपत्ति के पट्टा बन जाने से इसकी मालिकी ट्रस्ट से चली जाती है। पट्टा निरस्ती की विधिक कार्रवाई में समय लगता है। ऐसे में इस पीरियड में पट्टे एक्टिव रहते हैं। इस दौरान जमीन का मालिक पट्टाधारक ही होगा।
पट्टे में दी गई शर्तों के अनुसार वो भूमि को किसी और को बेच सकता है, रेहन रख सकता है और हस्तांतरण कर सकता है। ऐसा नहीं हो इसके लिए पट्टा निरस्ती की प्रक्रिया पूरी होने तक ट्रस्टों की संपत्ति पर रिसिवर नियुक्त कर दिया जाता है। इस मामले में देवासी ने सख्त कार्रवाई का कहा और उनके अनुसार जिला कलक्टर ने इसे जिला सतर्कता समिति मे दर्ज कर दिया। अब जांच होगी। उसमें समय लगेगा। ऐसे में पट्टे के विधिक रूप से निरस्त करने में समय लगेगा। तब तक जमीन का लीगल मालिक पट्टाधारक या लीजधारक है।
– सांसद ने भी पट्टा निरस्त करने की मांग
जालौर सिरोही सांसद लुंबाराम चौधरी ने सिरोही के रामझरोखा मंदिर की भूमि पट्टे आवंटन को लेकर जिला कलेक्टर अल्पा चौधरी को पत्र लिखा।
पत्र में चौधरी ने बताया कि विभिन्न समाचार माध्यमों जानकारी मिली है कि जिला मुख्यालय सिरोही पर स्थित “रामझरोखा मंदिर” की भूमि निजी व्यक्त्तियों को अवैद्य पट्टे जारी कर दिये गये हैं। नगर परिषद स्तर पर अनियमितता बरतते हुए ये पट्टे जारी किए जाने की जानकारी सामने आई है। सांसद ने लिखा कि यदि पट्टे अवैध हैं तो उन्हें निरस्त करके अनियमितता वाले अधिकारियों खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
– कांग्रेस ने भाजपा जिलाध्यक्ष पर भी साधा निशाना
मामले में अब भाजपा की जिलाध्यक्ष भी कांग्रेस के निशाने आ गई हैं। सोशल मीडिया पर कांग्रेस भाजपा जिलाध्यक्ष रक्षा भंडारी मुख्यमंत्री भजनलाल और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ के साथ भाजपा जिला कार्यकारिणी के साथ मुलाकात को लेकर सवाल पूछने लगी है। सोशल मीडिया में कांग्रेस जिलाध्यक्ष पर सवाल दागते हुए सवाल कर रही है कि इस मुलाकात के दौरान उन्होंने दोनों प्रमुख नेताओं से रामझरोखा के मामले में क्या बात की उन्हें जनता को बताना चाहिए था। उनका आरोप है कि यदि जिलाध्यक्ष सिरोही के मंदिरों की जमीन बेचने की बात मुख्यमंत्री से बताती वो तुरंत ही इसमें शामिल अधिकारियों को निलंबित कर देती। उन्होंने ये भी सवाल पूछा कि जब ये पट्टे जारी हुए तब सिरोही नगर परिषद में एडमिनिस्ट्रेटर बैठ चुके थे फिर किसके आदेश और दबाव में उनके पास पत्रावली नहीं भेजी गई। इसका जवाब भी भाजपा को दे
ना चाहिए।


