विश्व संवाद केंद्र चित्तौड़ अजमेर चैप्टर ने मनाई नारद जयंती
अजमेर। विश्व संवाद केंद्र चित्तौड़ अजमेर चैप्टर की ओर से नारद जयंती के अवसर पर देश में वर्तमान परिपेक्ष में पत्रकारिता जगत की चुनौतियां व उनका निवारण, देवर्षि नारद के जीवन चरित्र के संदर्भ सहित विषय पर विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी के मुख्य वक्ता सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय के प्रोफेसर नारायण लाल गुप्ता थे।
कार्यक्रम की शुरुआत देवर्षि नारद व भारत माता के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर की गई। प्रदीप शर्मा ने मंचासीन अतिथियों का परिचय दिया। समिति के सचिव भूपेंद्र उबाना ने कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में बताया।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर नारायण लाल गुप्ता ने कहा कि नारद जयंती वर्ष में एक बार मनाने वाला कार्यक्रम नहीं बल्कि वर्ष भर मनाने वाले कार्यक्रम होना चाहिए। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। हम इसके पाठक, श्रोता, दर्शक व उपभोक्ता हैं। समाज को आगे बढ़ाने वाला माध्यम मीडिया है। वर्तमान समय में मीडिया व समाज में एक संवादहीनता या कहें एक दूरी आ गई है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। समाज में इस पर चर्चा नहीं हो पाती है।
पिछले 300-400 सालों में मीडिया एक संगठित शक्ति के रूप में कार्य कर रहा है। समाज में क्या हो रहा है, हमें क्या दिखाना है, यह मीडिया के चिंतन का विषय है। वर्तमान में पत्रकारिता करने वालों को भारत से सीखने की जरूरत है क्योंकि संवाद भारत की परंपरा है।
वाद-विवाद और संवादहीनता की स्थिति क्यों आती है। नारद के पास पत्रकारिता की कोई डिग्री नहीं थी लेकिन आज की पत्रकारिता में संवेदना का अभाव है, समाज के लिए पीड़ा होनी चाहिए, उन्हें अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए कि मुझे क्या दिखाना है और क्या नहीं। देवर्षि नारद हमारे आद्य संवाददाता है।
नारद पत्रकारिता की भगवत गीता की तरह है। उनके 84 भक्ति सूत्र आज भी पत्रकारिता के भगवत गीता है, ये सूत्र पत्रकारिता को दिशा देने वाले हैं। हमारे देश का राज्य चिन्ह सत्यमेव जयते सत्य की अभिव्यक्ति देता है, जो आज मीडिया के लिए एक दायित्व भी है। पत्रकारिता एक मिशन है जिसका कार्य समाज को दिशा देना, मार्गदर्शन देना है, लेकिन जिसमें आज इसमें गिरावट आ रही है।
नारद के संवाद किसी विचारधारा, किसी दल विशेष के नहीं है। वे राजा,दानव, देव, इंद्र सभी की आंख में आंख डालकर लोकहित में संवाद करते हैं। व्यंग्य करते हुए अपनी बात कहते हैं। उनकी जीवन मूल्यों पर कोई प्रश्नचिंह नहीं लग सकता, लेकिन आजकल की पत्रकारिता में जीवन मूल्यों का अभाव है।
मीडिया का लोकतंत्रीकरण समय की मांग हैं। हमारा व्यवहार कैसा है उसे पर नजर रखने की जिम्मेदारी मीडिया की है। विदेश में मीडिया द्वारा सत्य दिखाना अपना अधिकार अपने जिम्मेदारी मानी जाती है, वह लाइव दिखाते हैं, परिणाम क्या होगा यह हमारी जिम्मेदार नहीं है, ऐसा उनका मानना है। इसीलिए विदेश में इन्हें वॉच डॉग भी कहा जाता है।
संप्रेषण और संवाद में अंतर है, संप्रेषण सूचना को आगे भेजता है लेकिन संवाद में लोकहित जुड़ा हुआ है। भारत में पत्रकारिता के मापदंड समाज से जुड़े हुए हैं, क्या प्रस्तुत करना क्या प्रस्तुत नहीं करना। ताज होटल पर हमले के समय हमने पत्रकारिता का एक अलग स्वरूप देखा, उसमें किसको फायदा हुआ यह विचारणीय प्रश्न है? हम सत्य तो दिखा रहे हैं, लेकिन क्या यह राष्ट्रीय हित में सही है? नर से नराधम होना सरल है, गिरना सरल है। नरोत्तम बनने के लिए साधना करनी पड़ती है।
नारद जी लोकहित की बात करते हैं। दुर्भाग्य से आज इसी बात का अभाव है। तेज सोच चाहिए कि तेज सूचना चाहिए। मीडिया से तटस्थता नहीं निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं। साथ ही विवेकता व लोकहित की भावना होनी चाहिए जो की सभी के हित में, समाज के हित में हो। शब्द को ब्रह्म कहा जाता है यदि शब्द ब्रह्म से भ्रम बन जाए तो यह चिंता का विषय है। आज सोशल मीडिया समाज की दशा व दिशा निर्धारित कर रहा है। यह हमारे लिए सोचने का प्रश्न है कि हम किस दिशा में जा रहे हैं।
समिति अध्यक्ष एसपी मित्तल ने अतिथियों व महानुभावों का धन्यवाद ज्ञापित किया। राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम का संचालन दीपिका शर्मा ने किया।