कभी कम कभी तेज धड़कन से पीड़ित महिला के लगाया पेसमेकर

लाखों में कोई होता है पीएलएसवीसी श्रेणी का एक ह्रदय रोगी
अजमेर। सीनियर कॉडियोलॉजिस्ट डॉ राहुल गुप्ता ने पर्सिस्टेंट लेफ्ट सुपीरियर वेना कावा (पीएलएसवीसी) श्रेणी की महिला ह्रदय रोगी का अजमेर के मित्तल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में सफलतापूर्वक उपचार किया। ऐसे ह्रदय रोगी लाखों में एक-दो ही होते हैं।

शरीर में बाईं तरफ की नसें ह्रदय के दाएं हिस्से में नहीं जाकर बाएं तरफ ही रह जाने के कारण ऐसे रोगी दुलर्भ कहलाते हैं। ऐसी स्थिति में रोगी के पेसमेकर लगाते हुए बहुत ही मुश्किलों का सामना करना होता है। आमतौर पर इस तरह के प्रोसीजर बड़े चिकित्सा संस्थानों में किए जाते हैं जिसे आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की उपलब्धता के चलते अजमेर में ही कर दिया गया।

डॉ राहुल गुप्ता ने बताया कि महिला ह्रदय रोगी केसरगंज निवासी मधु जैन उनके पास आउटडोर में परामर्श के लिए आई थीं। महिला ह्रदय रोगी ने चक्कर आने और कभी बेहोश होने जैसी स्थिति की शिकायत की थी। रोगी उच्च रक्तचाप और मधुमेह रोग का उपचार पहले से ले रही थी। महिला की होल्टर जांच में पाया गया कि उनकी दिल की धड़कन असामान्य होने के अतिरिक्त अनियंत्रित भी थी। उन्हें पेसमेकर लगाए जाने की सलाह दी गई।

डॉ राहुल गुप्ता ने बताया कि मरीज एक दो दिन में लौटकर आने की बात कह कर घर चली गई थी किन्तु उन्हें अगले ही दिन इमरजेंसी में दोबारा लाया गया। इस अवस्था में मरीज के दिल की धड़कन कम हो गई थी और शरीर ठण्डा पड़ गया था। रोगी का तुरंत उपचार शुरू किया गया। उन्हें मशीनों पर निगरानी में रखा गया। इसी दौरान मरीज की धड़कन अचानक तेज हो गई। नियंत्रित करने के लिए बिजली के झटके देने पड़े। मरीज की पल्स कम व ब्लड प्रेसर अधिक रहने लगा। मरीज के अस्थाई पेसमेकर लगाने की तैयारी की गई। रोगी के परिवारजनों को सभी स्थितियों से अवगत कराया गया।

डॉ राहुल के अनुसार रोगी के पैर से अस्थाई पेसमेकर डालने का निर्णय किया गया तो पेसमेकर का तार ह्रदय के दाएं चेम्बर में नहीं जा रहा था। यह बहुत ही जटिल था। आखिर तार को आरए (राइट एट्रियम) में डाल कर मरीज की स्थिति को नियंत्रित किया गया।

जब स्थाई पेसमेकर लगाने का समय आया तो यहां रोगी के दुर्लभ श्रेणी के होने का पता चला। रोगी पर्सिस्टेंट लेफ्ट सुपीरियर वेना कावा श्रेणी का था। ऐसे अवस्था में रोगी की बाईं तरफ की जो नसें थीं वह ह्रदय के सीधे हिस्से में नहीं जाकर बाएं तरफ ही जा रही थीं। लाखों रोगियों में से एक—दो को ही ऐसी अवस्था होती है। इस तरह के मरीज को पेसमेकर लगाना बहुत मुश्किल होता है। मित्तल हॉस्पिटल में चूंकि आधुनिक चिकित्सा सेवा और सुविधाएं उपलब्ध हैं रोगी को यहीं उपचार लाभ दिया गया और अगले तीन दिन में छुट्टी दे दी गई।

इस प्रोसीजर में एनेस्थीसियोलॉजिस्ट डॉ अनुराग नेल्सन, डॉ राहुल चौहान, कैथलैब इंचार्ज प्रियंका टाक, वरिष्ठ कैथ लैब टेक्नीशियन दीन दयाल, दीपक नामा, नितिका, वरिष्ठ नर्सिंग स्टाफ गणपत वैष्णव, धर्मराज, नमोसिंह और अनिल कुमरावत का सराहनीय योगदान रहा।