नेताओं ने दिखाई पीठ, कृष्णगंज विवाद दे गया नई सीख 

सबगुरु न्यूज-सिरोही। करीब 13 साल पहले कृष्णगंज में हुए सांप्रदायिक विवाद में नामजद दोनों पक्षों के लोगों को अब अपने अंतिम मुकदमे से भी राहत मिलती दिख रही है। राजस्थान की भाजपा सरकार द्वारा अत्ता मोहम्मद बनाम राजस्थान सरकार के प्रकरण को वापस लेने के निर्णय को एडीजे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद दोनों पक्षों के नामजद एकसाथ मिलकर हाइकोर्ट पहुंचे जहां उन्हें राहत मिली।

 

सिरोही जिले की कृष्णगंज तहसील में साल 2012 में सांप्रदायिक विवाद हुआ था। पंद्रह अगस्त पर जिले भर में झंडारोहण के बाद जब पूरा जिला देश को आजाद करवाने वाले महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता जता रहा था तो कृष्णगंज में बच्चों के खेलने को लेकर उठे विवाद में सांप्रदायिक रंग ले लिए और पथराव आदि हुआ। इस मामले में तीन एफआईआर हुई। एक एफआईआर हिंदू पक्ष ने मुस्लिम पक्ष पर करवाई। दूसरी मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष पर करवाई और तीसरी एफआईआर पुलिस ने दोनों पक्षों के करीब 43 लोगों पर दर्ज की। जिनमें से हिन्दू पक्ष के 29 और मुस्लिम पक्ष के 14 लोग नामजद थे।

 

इनमें से कई नामजद रोजगार के लिए बाहर भी चले गए थे। मुकदमों में नाम आने के एक दशक से लोगों को पेशियों पर चक्कर लगाने पड़ रहे थे। निर्णय पक्ष में नहीं आने पर सजा होने का डर अलग से सता रहा था। हिंदू पक्ष के 29 नामजदों में कुछ लोग कुछ प्रमुख संगठन के समर्पित कार्यकर्ता भी थे। ये लोग 2012 से लेकर 2021 तक भाजपा और कांग्रेस शासन में भाजपा और उसके मूल संगठन के अलावा कांग्रेस नेताओं के शासन में भी इनसे मुकदमे हट जाने की आशा में रहे। लेकिन, किसी सरकार इनके केस वापसी नहीं हो पाई। इसके बाद जो कदम उठाया वो विभिन्न विचारधाराओं के बहकावे में आपस में उलझ पड़ने वाले लोगों के लिए एक नजीर बन गया।

– सौहार्द से निपटाया उन्माद का मामला

कृष्णगंज के सांप्रदायिक उन्माद के बाद तीन मुकदमे दर्ज हुए थे। इनमें से हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष ने आपस में और तीसरा सरकार द्वारा दोनों पक्षों पर दर्ज करवाया गया था। इन मुकदमों के कायम होने के बाद प्रदेश में और सिरोही में भाजपा का राज हो गया। 2018 में प्रदेश और सिरोही मेंप्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कांग्रेस का राज आ गया। सभी संगठनों के शासन में इन्हें मुकदमे वापसी को लेकर मायूसी मिली तो 2021 में इन लोगों ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं की जगह गांव के सौहार्द पर विश्वास करके एक जाजम पर बैठे और दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर किए मुकदमे वापस ले लिए। ये निर्णय राजनीतिक पार्टियों और उनके मूल व अनुषांगिक संगठनो के प्रति समर्थकों के अविश्वास की शुरुआत थी। इस तरह सांप्रदायिक उन्माद से शुरू हुए तीन में से दो मामले सांप्रदायिक सौहार्द से निपटा दिए गए।

– अब मिला था एडीजे कोर्ट में झटका

कृष्णगंज उन्माद के बाद 2023 में भाजपा की दूसरी सरकार आ गई। तब तीन में से एक मुकदमा कायम था। ये मुकदमा था अत्ता मोहम्मद बनाम राजस्थान सरकार का । इसमें सरकार द्वारा हिंदू और मुस्लिम पक्ष पर किया गया था। पूर्ववर्ती सरकारों में भी जाने-अनजाने में मुकदमे में शामिल कर लिए गए मूल व अनुषांगिक संगठन के कार्यकताओं ने संगठन के नेताओं से अनुरोध किया। कथित रूप से मूल संगठन से दबाव भी बनवाया गया। लेकिन, सरकार ने ध्यान नहीं दिया।लेकिन अपने ही फॉलोवर्स में बढ़ती नाराजगी को देखते हुए इस बार सरकार को अता मोहम्मद व अन्य पर से मामला वापस लेने को मजबूर होना पड़ा। इस बार सरकार पर फिर से दबाव बनाया गया तो केस वापसी की सहमति सरकार ने सिरोही भेजें लेकिन, सिरोही एडीजे कोर्ट ने इसे अस्वीकार कर दिया।

-फिर दोनों पक्ष आए साथ और पाई राहत

सिरोही एडीजी कोर्ट के द्वारा भाजपा की भजनलाल सरकार के द्वारा भेजे गए मुकदमे वापसी के प्रस्ताव को एडीजे कोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। इसके बाद फिर से इस मुकदमे में शामिल दोनों पक्षों के 43 नामजद एकसाथ आए। इन लोगों ने एडीजे कोर्ट के निर्णय के खिलाफ हाइकोर्ट में अपील की। हाइकोर्ट के न्यायाधीश मनोज कुमार गर्ग ने 43 लोगों के द्वारा दायर पिटिशन पर निर्णय देते हुए मुकदमा वापसी लेने का आदेश जारी किया। न्यायाधीश ने आपसी सहमति से मुकदमा वापसी का पुराना रेफरेंस देते हुए हिंदु और मुस्लिम पक्षों के उसी निर्णय का हवाला दिया जो उन्होंने तीन साल पहले करके एक दूसरे पर किया मुकदमा वापस लिया था। तरह राजनीतिक पार्टियों से मायूस हो चुके नामजदों ने राहत पाई।

– व्यथित हो गए थे कलेक्टर

कृष्णगंज विवाद हुआ था तब सिरोही में जिला कलक्टर थे बन्नालाल और पुलिस अधीक्षक थी लवली कटियार। विवाद होने की सूचना मिलने पर दोनों ही काफी पुलिस बल के साथ वहां पहुंचे। जालौर से अतिरिक्त पुलिस जाब्ता मंगवाया गया था। कृष्णगंज पीएचसी को कंट्रोल रूम बनाया था। वहां का माहौल देखकर तत्कालीन जिला कलेक्टर आहट हुए थे। पत्रकारों के बीच उन्होंने मन की व्यथा बताते हुए वो दुखी मन से बोले थे कि कैसे कोई इस तरह से एक दूसरे के लिए बैर पाल सकता है। स्वतंत्रता दिवस के दिन लॉ एंड ऑर्डर को लेकर उठी समस्या के पुलिस द्वारा दर्ज प्रकरण को पुलिस अधीक्षक लवली कटियार ने खुदके मार्गदर्शन इन्वेस्टिगेट किया और पुख्ता सबूतों के साथ पत्रावलियों को तैयार किया। तब जिला पुलिस में वीडियोग्राफी विंग भी स्थापित हो चुकी था तो विवाद के वीडियो सबूत भी थे। इस प्रकरण को जिला पुलिस से लेकर क्राइम ब्रांच जयपुर को भेजने के आदेश हुए थे। तब सरकार पर इस मामले में आरोपितों को बचाने की कोशिश करने के आरोप भी लगे थे। अब ये प्रकरण निर्णय के स्थिति में था। वर्तमान राज्य सरकार द्वारा प्रकरण की वापसी के लिए भेजे गए प्रस्ताव को एडीजे कोर्ट द्वारा खारिज करने की एक वजह ये भी बताई जा रही है। इस विवाद के पहले कृष्णगंज सिरोही के सबसे ज्यादा संवेदनशील क्षेत्र था। लेकिन पुलिस के द्वारा दर्ज पुख्ता मुकदमे में हर राजनीतिक और धार्मिक विचारधारा के नामजद लोगों की पेशी पर पेशी में आने और सजा होने की आशंका से सबक लेते हुए इस क्षेत्र में लंबे समय से कोई बहुत बड़ा विवाद देखने को नहीं मिला। दोनों पक्षों की सूझबूझ से न्यायालयों से मिली राहत के बावजूद अन्य मामलों की तरह इस प्रकरण में भी नेताओं में श्रेय लेने की होड़ भी मच जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।