जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ऋषि गालव भाग की ओर से जयपुर प्रांत घोष दिवस के अवसर पर नाद गोविंदम् कार्यक्रम आयोजित किया गया। तोपखाना संघ स्थान से, पांच बत्ती, एम आई रोड, अजमेरी गेट, न्यू गेट होते हुए रामनिवास बाग स्थित अल्बर्ट हॉल तक घोष पथ संचलन निकाला। घोष वाद्य यंत्रों की स्वरलहरियों के साथ कदम से कदम मिलाते हुए पथ संचलन अल्बर्ट हॉल पहुंचा। कार्यक्रम में कुल 91 घोष वादक स्वयंसेवकों ने भाग लिया।
इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक बाबूलाल ने कहा कि संगीत ना केवल चर बल्कि अचर जगत की संवेदनाओं को भी प्रभावित करता है। जगदीश चंद्र बसु को केस्टोग्राफ से पता चला कि किसी वनस्पति के पास भी कोई वादन करते हैं तो वह भी उत्साह प्रकट करता है, भारतीय संगीत परंपरा में अगर वर्षा नही होती है तो उसके लिए संगीत है, रोग ठीक नहीं होता है उसके लिए भी संगीत है। हमारे यहां सुख में भी संगीत बजता है और दुख में भी संगीत बजता है। अर्थात जन्म और मरण दोनों पर गीत वादन भारत संस्कृति की परंपरा है।
संघ में संगीत यानी घोष विभाग ने ऐसी स्वदेशी रचनाओं का निर्माण किया है जिनका उपयोग आज भारतीय सेना भी कर रही है। ये बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक बाबूलाल ने ऋषि गालव भाग की ओर से जयपुर प्रांत घोष दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम नाद गोविंदम् के अवसर पर स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कही।
ऐतिहासिक अल्बर्ट हॉल पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथी प्रसिद्ध संगीतज्ञ व सात्विक वीणा के जनक पंडित सलिल विश्वमोहन भट्ट, जयपुर के ऋषि गालव इकाई के भाग संघचालक अशोक जैन सहित क्षेत्र प्रचारक बाबूलाल जयपुर प्रान्त प्रचारक मुख्य वक्ता के रूप में मंच पर उपस्थित रहे।
कार्यक्रम की तैयारी के लिए सात नगरों में नगरशः साप्ताहिक घोष केंद्रो पर अभ्यास की सक्रियता बनी। निरंतर चले इस अभ्यास क्रम में अनेकों नवीन घोष वादकों का निर्माण हुआ। सामूहिक अभ्यास की दृष्टि से भाग पर सभी नगरों का तीन बार सामूहिक अभ्यास रखा गया, जिसमें नवीन रचनाओं के वादन अभ्यास के साथ संचलन, समता एवं व्यूह निर्माण का अभ्यास भी स्वयंसेवकों ने किया।