सुप्रीम कोर्ट का वक्फ (संशोधन) अधिनियम पर पूरी तरह से रोक लगाने से इनकार

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर पूरी तरह से रोक लगाने से सोमवार को इनकार कर दिया, लेकिन कहा अंतिम निर्णय आने तक कुछ प्रावधानों पर रोक रहेगी। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संबंधित कानून के संशोधन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतरिम आदेश पारित किया।

पीठ ने कहा कि अदालतों को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की वैधता माननी चाहिए और केवल दुर्लभतम मामलों में ही स्थगन देना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने प्रत्येक धारा को दी गई चुनौती पर प्रथम दृष्टया विचार किया है। हमने पाया है कि कानून के संपूर्ण प्रावधानों पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता। हालांकि, कुछ धाराओं को कुछ संरक्षण की आवश्यकता है। पीठ ने कहा कि कलेक्टर को नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों का न्यायनिर्णयन करने की अनुमति नहीं दी जा सकती और यह शक्तियों के पृथक्करण का उल्लंघन होगा।

पीठ ने न्यायाधिकरण में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति के संबंध में कहा कि यद्यपि यह न्यायालय कोई निर्देश जारी नहीं कर रहा है, फिर भी केंद्र के लिए यह उचित होगा कि वह 11 सदस्यीय केंद्रीय वक्फ परिषद में तीन से अधिक गैर-मुस्लिमों को नामित न करे। शीर्ष अदालत ने यह देखते हुए कि वक्फ बोर्ड में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते और कुल मिलाकर चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते, स्पष्ट किया कि जहां तक संभव हो, वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी एक मुस्लिम होना चाहिए। शीर्ष अदालत ने यह बात एक गैर-मुस्लिम को मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देने वाले संशोधन पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कही।

शीर्ष अदालत ने वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 के कुछ प्रावधानों के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए वक्फ के लिए संपत्ति दान करने के लिए 5 साल तक इस्लाम का पालन करने के मानदंड के कार्यान्वयन पर भी रोक लगा दी।
अदालत ने कहा कि जब तक नियम नहीं बन जाते, तब तक वक़्फ़ संपत्ति घोषित करने से पहले पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त (धारा 3(आर)) पर भी रोक रहेगी। अदालत ने कहा कि बिना किसी तंत्र के यह (धारा) मनमानी शक्ति के प्रयोग को बढ़ावा देगा।

पीठ ने वक्फ निकायों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने के प्रावधान पर के मामले में कहा कि फिलहाल राज्य वक्फ बोर्ड में 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल नहीं किए जाने चाहिए और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में कुल मिलाकर 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य शामिल नहीं किए जाएगे। अदालत ने 22 मई को अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह पर अंतरिम रोक लगाने के अनुरोध पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था।

शीर्ष अदालत ने 25 अप्रैल को सुनवाई के दौरान केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने संशोधित वक्फ अधिनियम 2025 का बचाव करते हुए एक प्रारंभिक हलफनामा दायर किया। केंद्र ने संसद द्वारा पारित संवैधानिकता की धारणा वाले किसी भी कानून पर अदालत द्वारा किसी भी तरह की पूर्ण रोक का विरोध किया था। अदालत ने तीन दिनों तक दलीलें सुनीं, जिसमें केंद्र ने तर्क दिया कि संसद द्वारा विधिवत अधिनियमित इस कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के लिए केवल कानूनी प्रस्ताव या काल्पनिक तर्क पर्याप्त नहीं हैं।

केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया था कि वक्फ प्रबंधन ने स्मारकों का दुरुपयोग किया है। उसने दुकानों के लिए जगहें बनाई हैं और अनधिकृत परिवर्तन किए हैं। केंद्र सरकार ने पहले आश्वासन दिया था कि किसी भी वक्फ संपत्ति (जिसमें उपयोगकर्ता द्वारा स्थापित संपत्तियां भी शामिल हैं) को गैर-अधिसूचित नहीं किया जाएगा। उसने यह भी कहा था कि 2025 के अधिनियम के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद या राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति नहीं की जाएगी।

शीर्ष अदालत के समक्ष इस अधिनियम के खिलाफ 100 से अधिक याचिकाएँ दायर की गई थीं। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गत पांच अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को अपनी मंजूरी दी थी, जिसे पहले संसद ने दोनों सदनों – लोकसभा और राज्यसभा में गरमागरम बहस के बाद पारित किया था।