वनतारा को एसआईटी की क्लीन चिट, सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकारी रिपोर्ट

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने रिलायंस फाउंडेशन के वन्यजीव बचाव, पुनर्वास और संरक्षण केंद्र ‘वनतारा’ को पशुओं की देखभाल को लेकर कथित अनियमितताओं के मामले में क्लीन चिट दे दी है।

न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति पीबी वराले की पीठ ने शीर्ष अदालत की ओर से गठित जांच दल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि अधिकारियों ने वंतारा मामले में अनुपालन और नियामक उपायों के मुद्दे पर संतुष्टि व्यक्त की है। पशुओं को गोद लेकर उसकी देखभाल करने के मामले में नियमों की अनदेखी करने समेत अन्य आरोपों में प्रथम दृष्टया सचाई नहीं दिखती।

पीठ ने आगे कहा कि न्यायालय द्वारा गठित विशेष जाँच दल को कोई गड़बड़ी नहीं मिली। अदालत ने कहा कि पशुओं को गोद लेना नियामक तंत्र के अंतर्गत आता है। शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जस्ती चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाले एसआईटी ने शुक्रवार को इस न्यायालय को अपनी रिपोर्ट सौंपी। अदालत ने सोमवार को इस रिपोर्ट का अवलोकन किया। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट के निष्कर्ष में कहा कि अधिग्रहण नियामक कानूनों के अनुसार थे और सभी वैधानिक अनुपालनों पर अधिकारियों की संतुष्टि दर्ज की गई।

शीर्ष अदालत ने कहा कि हमने रिपोर्ट का सारांश पढ़ लिया है। इसमें विद्वतापूर्ण नियामक अनुपालन का उल्लेख है। इसमें यह भी उल्लेख है कि संबंधित पक्षों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। अधिकारियों ने नियामक अनुपालन पर संतुष्टि व्यक्त की है। पीठ ने आगे कहा कि वह एसआईटी की रिपोर्ट के अनुसार काम करेगी और संकेत दिया कि आगे किसी भी व्यक्तिगत शिकायत पर विचार नहीं किया जाएगा।

गुजरात सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने, वंतारा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे की दलीलों से सहमति जतायी और कहा कि एसआईटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि रिपोर्ट को वंतारा अधिकारियों से साझा किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे टीम की विभिन्न सिफारिशों पर कार्रवाई करें। श्री साल्वे ने पीठ से अनुरोध किया कि इस विवाद को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया जाए।

उन्होंने एसआईटी रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने का विरोध करते हुए कहा कि कुछ हद तक व्यावसायिक गोपनीयता बनाए रखना आवश्यक है। यह सुविधा दुनिया में अपनी तरह की अनूठी है। हमें इस मुद्दे का सम्मानपूर्वक निपटारा करना होगा।

शीर्ष अदालत ने 25 अगस्त को वकील सीआर जया सुकिन और देव शर्मा की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद एक एसआईटी के गठन का आदेश दिया था। अदालत ने यह भी निर्देश दिया था कि एसआईटी के तीन अन्य सदस्य न्यायमूर्ति राघवेंद्र चौहान (उत्तराखंड और तेलंगाना उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश), हेमंत नागराले, आईपीएस (पूर्व पुलिस आयुक्त, मुंबई), अनीश गुप्ता, आईआरएस (अतिरिक्त आयुक्त सीमा शुल्क) होंगे।

आदेश में कहा गया था कि एसआईटी को अन्य बातों के अलावा, भारत और विदेशों से जानवरों, विशेष रूप से हाथियों के लाने में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और अन्य प्रासंगिक कानूनों के प्रावधानों के अनुपालन की जाँच करनी होगी।

पीठ ने इससे पहले 25 अगस्त को अपनी सुनवाई में कहा था कि याचिका में बिना किसी सहायक सामग्री के केवल आरोप लगाए गए हैं। साथ ही, इसने स्पष्ट किया कि सामान्यतः ऐसी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।