अंबेडकर जयंती पर ‘समरसता के साथ समानता’ विषयक संगोष्ठी

अधिवक्ता परिषद राजस्थान अजयमेरू इकाई
अजमेर। अधिवक्ता परिषद राजस्थान क्षेत्र चित्तौड़ प्रांत की अजयमेरू इकाई की ओर से रविवार को भारत रत्न डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की 133वीं जन्म जयंती समरसता दिवस के रूप में मनाई।

इस मौके पर समरसता के साथ समानता विषय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि राजस्थान हाईकोर्ट के न्यायाधिपति फरजंद अली रहे। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सम्राट पृथ्वीराज चौहान महावीर राजकीय महाविद्यालय अजमेर के प्रोफेसर डॉ नारायण लाल गुप्ता थे। अध्यक्षता जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डा चंद्रभान सिंह राठौड़ ने की।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए न्यायाधिपति फरजंद अली ने संस्था के मूल उद्देश्य उसके द्वारा अंगीकृत किए ध्येय वाक्य न्यायः मम धर्मः को फलीभूत होना दर्शाते हुए इस बात की प्रशंसा की कि अधिवक्ता परिषद ध्येय वाक्य को सार्थक कर रही है तथा समाज के सबसे निचले स्तर के व्यक्ति तक न्याय को सुलभ रूप से पहुंचाने का कार्य कर रही है।

न्यायाधीपति अली ने अधिवक्ताओं के महत्व को बताते हुए विशेष रूप से कहा कि बिना अधिवक्ताओं के न्यायालय और न्यायिक व्यवस्था का कोई महत्व नहीं है। उन्होंने कहा कि डॉ भीमराव आंबेडकर ने अपनी विषम परिस्थितियों में भी समाज को राष्ट्र को बहुत बड़ा योगदान दिया है।

मुख्य वक्ता प्रोफेसर डॉक्टर नारायण लाल गुप्ता ने अपने उद्बोधन में डॉक्टर भीमराव आंबेडकर के राष्ट्र के प्रति विचार के बारे में बताते हुए कहा कि उन्होंने हर परिस्थिति में समाज, जाति और धर्म से उठकर राष्ट्रहित के लिए सदैव तत्पर खड़े रहने की बात कही। आंबेडकर के जीवन को बिना पढ़े उनके विचार नहीं समझे जा सकते, केवल सुनी सुनाई बातों से समाज में केवल भ्रांतियां ही फैलेगी।

अनुच्छेद 370 हो या समान नागरिक संहिता हो, डॉक्टर अंबेडकर का विचार स्पष्ट रूप से राष्ट्र की एकता और अखंडता को बनाए रखने वाला रहा। आंबेडकर सदैव बंधुत्व के भाव को आगे लेकर चलते रहे। बिना बंधुत्व के सामाजिक समरसता का जो भाव है वह अग्रसर नहीं हो सकता। समाज में जब तक बंधुत्व की भावना नहीं होगी तब तक एक दूसरे के प्रति द्वेष कम नहीं होगा।

इसलिए बंधुत्व की भावना सर्वोपरि है और सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय सभी को प्राप्त हो उसके लिए आवश्यक है कि बंधुत्व की भावना सभी में हो। आंबेडकर के बलिदान के कारण ही आज वह ईश्वर की तरह पूजनीय हो गए हैं। विशेष रूप से जय भीम का जो आज उद्बोधन प्राय: एक दूसरे के साथ किया जाता है वह उनके विशाल व्यक्तित्व को दर्शाता है।

आंबेडकर का विशाल व्यक्तित्व पद, पैसे, पीढ़ी से नहीं आए। अपमान का विष पीकर डॉक्टर आंबेडकर ने समाज, राष्ट्र को अमृत दिया और इसी कारण ईश्वर की तरह पूजनीय हुए। वर्ष 1946 से 56 तक के जीवन के वर्ष देश राष्ट्र के प्रति जो उन्होंने अपनी भावनाएं और अपने उद्बोधन दिए उसे स्पष्ट रूप से है कि उन्होंने समाज धर्म और जाति से ऊपर उठकर राष्ट्र को प्रथम स्थान दिया है।

वर्ष 1891 से 1924 वर्ष तक डॉ भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन में भेदभाव झेला और उसका उत्तर ज्ञान के रूप में दिया और वह निरंतर इन वर्षों में ज्ञान प्राप्त करते रहे। इसके पश्चात वर्ष 1925 से 1935 तक एक तरह उनका जीवन सत्याग्रह के रूप में रहा। उन्होंने भागवत गीता को उद्रत करते हुए प्रश्न किया व्यक्तिगत स्वतंत्रता जन्मसिद्ध अधिकार है या नहीं? हिन्दू धर्म के अंग होते हुए भी अस्पृश्यता क्यों? अंबेडकर ने समाज में फैली हुई रूढ़ियों पर खुलकर आक्रमण किया और उन्होंने एक राष्ट्र पुरुष की भूमिका निभाई।

उनका मानना था की राष्ट्र में भले से वंश है लेकिन वंश से ऊपर उठकर भौगोलिक के साथ-साथ सांस्कृतिक एकता भी रही है और इस प्रकार वंश से बढ़कर भारत की एकता है। जाति और पंथ से ऊपर देश को, राष्ट्र को प्रथम मानना उनका मुख्य वाक्य रहा रहा है। उन्होंने प्रस्तावना में जो बंधुत्व शब्द जोड़ने की बात कही वह केवल मात्र काल्पनिक नहीं है। बाबा साहब का मानना था कि बंधुत्व की कारण ही सामाजिक समरसता जीवंत रहेगी।

अनुच्छेद 370 हो या भिन्न भिन्न नागरिक कानून या धर्म को अफीम की गोली कहना इन सबको बाबा साहब ने गलत माना। बाबा साहब ने बताया कि धार्मिक भावना के कारण ही उनमें जो गुण है उन्हीं गुणों ने बंधुत्व की भावना को प्रबल किया है।

चित्तौड़ प्रांत के अध्यक्ष बसंत विजयवर्गीय ने अधिवक्ता परिषद की कार्य प्रणाली एवं संरचना से सभी को अवगत करवाया तथा संस्था द्वारा समाज के निचले स्तर तक के व्यक्ति को सुलभ न्याय पहुंचने के उद्देश्य के लिए किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी। कार्यक्रम में अजयमेरू इकाई की उपाध्यक्ष कविता शर्मा भी मंचासीन रही। अजयमेरू इकाई के अध्यक्ष भवानी सिंह रोहिल्ला ने अंत में सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया।

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