मानहानि मामला : आभासी माध्यम से कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुए गहलोत

नई दिल्ली। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की ओर से दायर मानहानि मामले में नई दिल्ली स्थित राउज एवेन्यू जिला अदालत के समक्ष आभासी माध्यम से पेश हुए।

शेखावत ने अदालत में गहलोत के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई कि राजस्थान के मुख्यमंत्री ने उन्हें बदनाम किया है और उन पर 900 करोड़ रुपए के संजीवनी क्रेडिट सोसायटी घोटाले में शामिल होने का झूठा आरोप लगाया है। उन्होंने दलील दी कि जब राजस्थान सरकार ने मामले की जांच की, तो उनका नाम कहीं भी सामने नहीं आया।

शेखावत का आरोप है कि आरोपी (गहलोत) ने प्रेस कॉन्फ्रेंस, मीडिया रिपोर्ट/सोशल मीडिया पोस्ट आदि के माध्यम से सार्वजनिक रूप से कहा है कि संजीवनी घोटाले में केवल शिकायतकर्ता (शेखावत) और उसके परिवार के सदस्य आरोपी हैं।

शेखावत के वकील ने आरोप लगाया कि आरोपियों ने अलग-अलग मौकों पर मीडिया को संबोधित किया और वीडियो भी अपलोड किए। उन्होंने कहा कि झूठे बयानों के माध्यम से शिकायतकर्ता को दुर्भावनापूर्ण रूप से बदनाम करने के लिए गहलोत ने अपने सोशल मीडिया खातों पर पोस्ट किया है, विशेष रूप से यह कहते हुए कि संजीवनी घोटाले में शिकायतकर्ता के खिलाफ आरोप साबित हो गए हैं और गरीब तथा निर्दोष निवेशकों के धन के दुरुपयोग/गबन का अपराध है।

शेखावत ने अदालत से अनुरोध किया कि गहलोत पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के प्रावधानों के तहत परिभाषित आपराधिक मानहानि का मुकदमा चलाया जाए। उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के नुकसान के लिए उचित वित्तीय मुआवजे की मांग की। अदालत ने पहले गहलोत के खिलाफ अदालत में पेश होने के लिए आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत समन जारी करने का आदेश पारित किया था।

गहलोत के वकील ने पहले मामले में बरी करने की मांग करते हुए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 256 के तहत एक आवेदन दायर किया था। शेखावत भी आभासी माध्यम से अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (एसीएमएम) हरजीत सिंह जसपाल की अदालत में उपस्थित हुए।

शेखावत और गहलोत की ओर से वकीलों ने सीआरपीसी की धारा 256 के तहत आवेदन पर अदालत के समक्ष विस्तार से बहस की। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालय द्वारा पारित प्रासंगिक निर्णयों को भी रिकॉर्ड पर रखा गया। एसीएमएम जसपाल ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मामले को आदेश के लिए 19 सितंबर तिथि तय की।