धर्म व संस्कृति के उत्थान में पूरा योगदान दें : आचार्य सुनील सागर महाराज

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कुटुम्ब एकत्रीकरण
अजमेर। दिगम्बराचार्य सुनीलसागर महाराज ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आह्वान किया कि वे धर्म और संस्कृति के उत्थान में पूरा योगदान दें और देश सेवा को सर्वोपरि रखे। आमजन का आवहान करते हुए यह भी कहा कि सिर्फ स्वयं के बारे में सोचने से कुछ नहीं होगा, हमें देश के लिए, देश के भविष्य के लिए, एकांत मुद्रा को छोड़कर अनेकांत पर ध्यान देना होगा। राष्ट्र है तो समाज है, हम है, तुम हो, राष्ट्र नहीं तो कुछ नहीं है।

वे रविवार को विद्यासागर तपोवन छतरी योजना में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अजयमेरु महानगर के कुटुम्ब एकत्रीकरण में आए करीब 2000 से भी अधिक कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे।उन्होंने कहा कि संस्कृति की रक्षा करना हर भारतीय का फर्ज है। देश को इंडिया कहकर संबोधन करना गलत होगा, भारत ही हमारी संस्कृति है।

आचार्य ने ‘जीओं और जीने दो’ के भगवान महावीर के सिद्धांत को विस्तार से समझाते हुए कहा कि प्रत्येक जीवन का सम्मान, प्रत्येक आत्मा का बहुमान किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जैन धर्म और भारतीय संस्कृति में जीव जन्तुओं को सताना भी महापाप है। हम सब भारतीय सौभाग्यशाली हैं, जो भारत जैसे बहुविधाओं, बहुसंस्कृति तथा बहुधर्म वाले देश में रहकर जीवन जी रहे हैं। उन्होंने आवाह्न किया कि हम सभी को मानवधर्म का पालन करते हुए देश को आगे बढ़ाने के काम में लगे रहना चाहिए।

एकजुटता की निष्ठा प्रत्येक नागरिक की रगों में बहानी चाहिए तभी भारत विश्व गुरु की श्रेणी मे प्रतिष्ठित होगा। जैन संप्रदाय में 20 तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के रहे हैं। श्रीराम भी इक्ष्वाकु वंश से हैं। अतः हम किसी का भी अनुसरण करें, हमारा डीएनए एक ही है। सैद्धांतिक रूप से कुछ सिद्धांतों को लेकर जैन जैन हैं, लेकिन जब सांस्कृतिक रूप से बात करते हैं तो जैन भी हिन्दू ही हैं। भारत देश श्रेष्ठ राजा भरत, श्रीराम के अनुज व शकुंतला के पुत्र चक्रवर्ती राजा भरत के गौरव से जाना जाता है। अतः हमारी पहचान इंडिया नहीं भारत है।

लव जिहाद पर सख्त हुए जैनाचार्य, दी नसीहत

लव जिहाद को लेकर होने वाली घटनाओं को लेकर जैनाचार्य ने बडे सख्त लहजे में कहा कि यह लव जिहाद हमारी संस्कृति को छिन्न भिन्न कर रहा है। वक्त आ गया कि हमारी बेटियों को समझाना पड़ेगा। बेटियों को भी अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य बोध होना चाहिए। कानून भले ही हमें आजादी देता हो पर इस आजादी में कर्तव्य को बिसराने के परिणाम भयानक आते हैं।

हमारी विरासतों के संरक्षण की जरूरत

आचार्य सुनील सागर ने कहा कि ढाई दिन के झोपड़े के बारे में काफी बार धार्मिक इतिहास के विषय में जानना चाहा, पढ़ा भी। अजमेर आने पर मन में भाव उत्पन्न हुआ कि एक बार तो उस संस्कृति के दर्शन करने ही चाहिए। वहां भ्रमण पर जाने पर भी विरोध हो रहा है। वहां का वास्तु, इतिहास कभी हमारे देश का गौरव रहा है। जैनाचार्य ने कहा कि दिगंबर मुद्रा को क्यों छिपाया जाए। हमारी संस्कृति दिगंबर है, हम कभी भी अपनी संस्कृति का हरण नहीं कर सकते। बदलना है तो आप बदल जाओ, हम कभी भी अपनी संस्कृति को नहीं खोना चाहेंगे। भगवान राम भी 500 वर्षों बाद ही अपने मूल अवस्था में विराजमान हो गए। ठीक ऐसे ही बहुत कुछ जो अस्त व्यस्त हुआ है उसे सुधारना आवश्यक है। अपने भवनों, संस्कृति, मंदिर आदि की सुरक्षा करना हमारा दायित्व एवं कर्तव्य है। हमें उन्हें हर हाल में सुरक्षित रखना चाहिए। उन्हें छोड़ देना या बेच देना कोई सही रास्ता नहीं है, बल्कि उन्हें संरक्षित करना चाहिए।

हमारा कर्म, धर्म और गर्व भारत

आचार्य सुनील सागर ने कहा कि अंग्रेजी भाषा की तरफ जो आकर्षण है उसे हिंदी की तरफ मोड़ दो। हर भाषा अपने स्थान पर ठीक है पर जब भी भारत की बात आए तो हमें हिंदी बोलकर गर्व महसूस करना चाहिए। अंग्रेजी का अंधानुकरण नहीं होना चाहिए। सनातन पद्धति एक व्यवस्था है, किसी को भी इस व्यवस्था में छेड़खानी का अधिकार नहीं है। हम अपनी मर्यादाओं का पालन करते हैं। दूसरों को अपनी मर्यादाओं का पालन करना है। हमें क्या करना है वह हमें सीखने की आवश्यकता नहीं है। हमारी कर्मभूमि भारत, हमारा धर्म भारत और हमारा गर्व भारत ही है।

अधिकारों के उपयोग के साथ कर्तव्य पालना जरूरी

जैनाचार्य ने वर्तमान भारत की सीमाओं के खंडित होने पर भी चिंता व्यक्त करते हुए सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक के समय की देश की स्थिति और साथ ही आदिकाल में श्रीराम, श्रीकृष्ण के समय की स्थितियों का पुनः स्मरण करवाया। उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति आदिकाल से है। वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी, अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं था। सामाजिक समरसता, सभी से आत्मीय प्रेम अति आवश्यक है। वर्तमान में समाज में एक विषम असंतुलन पैदा हो रहा है। इस पर गंभीरता से विचार करें। जहां आवश्यक हो वहां मर्यादित शौर्य, उचित स्थान पर, उचित तरीके से अवश्य रखिए। सार्वजनिक स्थानों का दुरुपयोग, गंदगी फैलाना, राजस्व नहीं चुकाना, बिजली चोरी, नागरिक शिष्टाचार का अनुसरण नहीं करना देश से गद्दारी करने जैसा ही है। हमारा गौरव जाग्रत हुआ है, श्रेष्ठ कार्यों के लिए सबको मिलकर चलना है। देश की संस्कृति, शस्त्र, शास्त्र की रक्षा व अनुसरण कर शाकाहार, सदाचार करने की भावना उन्होंने प्रकट की।

‘विज्ञान भवन से’ पुस्तक का विमोचन

अजमेर जैन समाज के प्रवक्ता संदीप बोहरा ने बताया कि जैनाचार्य के जीवन वृतांत पर विज्ञान भवन से पुस्तक का विमोचन हुआ। पुस्तक में आचार्य सुनील सागर जी ने राष्ट्रीय संस्कारों को कैसे प्रतिपादित किया जाए, अनेक राजनीतिक अभिव्यक्तियों के सामने अपनी बात को दृढ़ता के साथ रखने आदि प्रसंगों का इसमें समावेश है। पुस्तक का विमोचन विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, धर्मेश जैन, जगदीश राणा, सुनील जैन, पुखराज पहाड़िया, आरएसएस प्रचारक शिवराज आदि ने किया। बड़ा धड़ा पंचायत के प्रदीप पाटनी बसंत सेठी अरुण सेठी मनीष सेठी आदि ने उपस्थित सभी अतिथियों का अभिनंदन किया। मंच संचालन प्रवक्ता संदीप बोहरा ने किया। अंत में आरएसएस के चितौड प्रांत संघचालक एडवोकेट जगदीश राणा ने मार्गदर्शन के लिए जैनाचार्य का आभार जताया।