बॉलीवुड के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता असरानी का निधन

जयपुर/मुंबई। बॉलीवुड के प्रसिद्ध हास्य अभिनेता असरानी का सोमवार को यहां निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे। असरानी के निजी सचिव बाबूभाई ने उनकी मौत की पुष्टि की है।

पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे असरानी को गत चार दिन पहले मुंबई में जुहू स्थित आरोग्यनिधि अस्पताल में भर्ती कराया गया था जहां आज दोपहर उन्होंने अंतिम सांसे ली। दिवंगत अभिनेता का आज शाम को ही मुंबई के सांताक्रूज़ इलाक़े के शास्त्री नगर स्थित श्मशान भूमि में अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस मौके पर उनके परिवार के सदस्य समेत क़रीबी लोग मौजूद थे।

हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर है

बॉलीवुड में असरानी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाएगा, जिन्होंने अपने जबरदस्त कॉमिक अभिनय से दर्शकों के दिलो में पांच दशक से सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाया हुआ है।

एक जनवरी 1941 को जयपुर में जन्में गोवद्धन असरानी बचपन के दिनों से ही अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते है। वर्ष 1963 में अभिनेता बनने का सपना लिए असरानी मुंबई आ गए जहां उनकी मुलाकात किशोर साहू और ऋषिकेष मुखर्जी जैसे फिल्मकारों से हुई जिनके कहने पर असरानी ने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया पुणा में दाखिला ले लिया।

असरानी की पढ़ाई जयपुर के सेंट जेवियर स्कूल और राजस्थान कॉलेज में हुई। जयपुर में वह मित्रों के बीच चोंच नाम से मशहूर थे। असरानी 1962 में मुंबई पहुंचे। उनकी 1963 में अचानक किशोर साहू और ऋषिकेश मुखर्जी से मुलाकात हुई तो उन्होंने पुणे में एफटीआईआई से अभिनय का कोर्स करने की सलाह दी।

वर्ष 1966 में पुणे फिल्म इंस्टीच्यूट से अभिनय की पढ़ाई पूरी करने के बाद असरानी को शुरुआती संघर्ष का सामना करना पड़ा, जिसके बाद उन्होंने एफटीआईआई में प्रशिक्षक की नौकरी कर ली। काम की तलाश में, वह हर शुक्रवार को मुंबई जाते थे।

वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म हरे कांच की चूडि़यां से उन्होंने अभिनय जीवन की शुरूआत की।इन सबके बीच असरानी ने कुछ गुजराती फिल्मों में भी काम किया। वर्ष 1971 मेंप्रदर्शित फिल्म मेरे अपने के जरिये असरानी कुछ हद तक नोटिस किए गए।

वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म अभिमान के जरिये असरानी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। ऋषिकेष मुखर्जी के निर्देशन में बनी फिल्म अभिमान में असरानी ने अमिताभ बच्चन के दोस्त की भूमिका निभायी थी। इस फिल्म में अपने दमदार अभिनय के लिए असरानी सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांकित भी किए गए।

वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म शोले असरानी के सिने करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। रमेश सिप्पी के निर्देशन में बनी फिल्म शोले में असरानी ने एक जेलर की भूमिका निभायी थी। इस फिल्म में असरानी का बोला गया यह संवाद..हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर है..आज भी सिनेप्रेमी नहीं भूल पाए है।

असरानी ने फिल्म शोले में अपनी चर्चित भूमिका अंग्रेजों के जमाने का जेलर के लिए बड़ी तैयारी की थी। उन्हें सलीम-जावेद ने एक पुस्तक लाकर दी-वर्ल्ड वॉर सेकेंड जिसमें अडोल्फ हिटलर की तस्वीरें थीं। उन्हें वैसा ही लुक बनाने के लिए कहा गया। कॉस्ट्यूम तैयार करने के लिए अकबर गब्बाना और विग बनाने वाले कबीर को बुलाया गया।

पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में हिटलर की रिकॉर्डेड आवाज थी, जो छात्रों को ट्रेनिंग देने के काम आती थी। इसमें हिटलर जिस अंदाज में कहता है-आई एम आर्यन। ठीक उसी अंदाज में असरानी ने डायलॉग बोला-हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं। बाद में हा हा भी इसमें वैसे ही आता था। हिटलर अपनी आवाज के इस घुमाव से पूरे देश को हिप्नोटाइज कर देता था।

वर्ष 1977 में प्रदर्शित फिल्म चला मुरारी हीरो बनने के जरिये असरानी ने फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। इस फिल्म में असरानी ने मुख्य अभिनेता की भूमिका निभायी थी। इस फिल्म में असरानी के अपोजिट बिंदिया गोस्वामी थी। कॉमेडी से भरपूर इस फिल्म को दर्शको ने बेहद पसंद किया था।

चला मुरारी हीरो बनने की सफलता के बाद असरानी ने सलाम मेम साब, हम नही सुधरगें, दिल ही तो है और उड़ान जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। असरानी को अपने सिने करियर में दो बार सर्वश्रेष्ठ हास्य कलाकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। असरानी ने अपने दौर के सभी दिग्गज कलकारो के साथ काम किया। असरानी ने सुपरस्टार राजेश खन्ना के साथ 25 फिल्मों में काम किया।

बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के साथ भी असरानी ने कई फिल्मों में काम किया। असरानी ने अपने सिने करियर में लगभग 400 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया है।

असरानी बचपन से ही जयपुर में रेडियो से जुड़ गए थे। बाद में उन्होंने रेडियो में नाटक भी किए। जब उन्होंने मुंबई जाने का फैसला किया तो जयपुर में रंगकर्मी दोस्तों ने उनकी मदद के लिए दो नाटक किए- जूलियस सीजर और पीएल देशपांडे का अब के मोय उबारो। इसमें मदन शर्मा, गंगा प्रसाद माथुर, नंदलाल शर्मा आदि लोगों ने हिस्सा लिया और नाटकों के टिकट से जो थोड़ी-बहुत आय प्राप्त हुई, वह असरानी को मुंबई जाने के लिए दे दी गई।

असरानी के पिता 1936 में कराची से जयपुर आ गए थे। असरानी के बड़े भाई नंद कुमार असरानी जयपुर की न्यू कॉलोनी में पिछले लगभग पचास साल से लक्ष्मी साड़ी स्टोर्स नाम से दुकान चलाते हैं।