सरकार बदली तो फिर शुरू हुआ सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने का खेल

सिरोही जिला मुख्यालय पर साढ़े तीन करोड़ की वो सरकारी ज़मीन जिसे संगठित समूह ने औने पौने दामों पर खुर्द बुर्द करने की कोशिश की।

सबगुरु न्यूज-सिरोही। सिरोही शहर और राज्य में चेहरे और सरकार बदलते ही सिरोही जिला मुख्यालय पर सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने का 5 साल पुराना खेल फिर से शुरू हो गया।

पिछले पांच सालों में प्रदेश में सिरोही में गवर्नेंस के चाहे जो हालात रहे हों लेकिन, सिरोही जिला मुख्यालय पर सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने वाले दर्जन भर लोगों को समूह पूरी तरह से सुसुप्तावस्था में था।
-पिछले भाजपा शासन में भी थे सक्रिय
पांच साल पहले जब ओटाराम देवासी सिरोही के विधायक और प्रदेश में वुसंधरा राजे सरकार थी । तब भी सिरोही जिला मुख्यालय पर सरकारी जमीनों को खुर्दबुर्द करने वाले लोगों का ये समूह सक्रिय था। इस बार फिर से ये कॉम्बीनेशन बनने पर सक्रिय हो गया। पिछली बार इसी कारण ओटाराम देवासी को सिरोही नगर परिषद क्षेत्र के लोगों का आक्रोश झेलकर सिरोही शहर से हार का सामना करना पड़ा था।दरअसल, सिरोही शहर में ओटाराम देवासी हों या संयम लोढ़ा, इन सबका नसीब तय करने वाले किसी जाति या समूह के मतदाताओं की बजाय फ्लोटिंग वोटर हैं। इनकी किसी नेता या राजनीतिक पार्टी से प्रति प्रतिबद्धता नहीं होकर शहर की गवर्नेंस के प्रति प्रतिबद्धता है।

यही कारण रहा है कि जाति विशेष की महत्वाकांक्षाओं को पोषित करने के बाद भी जिस बुरी तरह से ओटाराम देवसी हारे थे उसी बुरी तरह से संयम लोढ़ा हारे। दोनों की ही हार का प्रमुख केन्द्र रही सिरोही नगर परिषद में इन दोनों के द्वारा फेल की गई गवर्नेंस। दरअसल, अहंकार में दोनों ही इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे कि सिरोही जिला मुख्यालय सिरोही विधानसभा का हार्ट है। जिस तरह से हार्ट खून को पूरे शरीर में पम्प करता है उसी तरह सिरोही शहर जिला अधिकारियों व नगर निकाय तक के अधिकारियों द्वारा फेल की गई गवर्नेंस की बदनामी को पूरे विधानसभा में पम्प करता है। जो हार का प्रमुख कारण बनती है।
-बजट बैठक में हुआ हंगामा
मांडवा हनुमान मंदिर के सामने की जमीन को खुर्दबुर्द करने को लेकर हाल में सिरोही नगर परिषद के द्वारा आयोजित करवाई गई बोर्ड बैठक में भी हंगामा हुआ। बजट बैठक में कांग्रेस के पार्षदों के द्वारा इस जमीन को खुर्दबुर्द करने को लेकर किए गए प्रयासों को लिखित रूप से नवनियुक्त आयुक्त को बताया। इसके साथ राजीव नगर योजना और हवाई पट्टी के निकट वाली जमीन को भी खुर्दबुर्द करने को लेकर जांच की मांग की।
-जमीन खुर्दबुर्द करने को जमा हो गए पैसे
आरोप ये लग रहा है कि सिरोही जिला मुख्यालय पर हाइवे से मांडवा की तरफ जाने वाली सड़क के किनारे मांडवा हनुमान के ठीक सामने वाली जमीन को कुछ लोगों के संगठित समूह ने खुर्दबुर्द करवाने का काम शुरू कर दिया। इस जमीन को नगर परिषद ने अपनी आय बढ़ाने के लिए अक्टूबर में करीब तीन करोड़ रुपये में निलाम कर दिया था। कथित रूप से इस जमीन पर कब्जा होने का दावा करके हाईकोर्ट से स्टे लिया। जबकि मौके पर ये जमीन खाली थी। जमीन के विवादित होने का माहौल बनाकर सरकार की साख को निलामी में भूमि खरीदने वालों के बीच धूमिल किया।
आरोप ये भी लग रहा है कि करोड़ों की इस जमीन को औने पौने दामों पर खुर्दबुर्द करने के लिए इसके पट्टे भी तैयार हो गए थे, लेकिन, सभापति के हस्ताक्षर नहीं होने से जारी नहीं हो पाए। प्रदेश में सरकार और सिरोही में विधायक बदलने के बाद नगर परिषद आयुक्त योगेश आचार्य के कार्यकाल में इन पट्टों के लिए पैसे भी जमा करवा लिए थे। सूत्रों की मानें तो ये राशि निलामी में प्राप्त होने वाली राशि की एक प्रतिशत भी नहीं थी।

इस बीच हंगामा मच गया तो इसकी पत्रावली को ही गायब बता दिया गया। नगर परिषद आयुक्त ने इससे हाथ झाडऩे की कोशिश की लेकिन, केशबुक ने सारा राज खोल दिया। आयुक्त ही नगर परिषद का आहरण वितरण अधिकारी थे। उनकी सहमति के बिना नगर परिषद में न तो एक पैसा जमा हो सकता है और न ही एक पैसे की निकासी हो सकती है। आयुक्त आज्ञा के बिना ये पैसे जमा हुए तो इसके लिए वो कार्मिक जवाबदेह है जिसने ये पैसे जमा किए।
-पट्टों पर सभापति ने नहीं किए हस्ताक्षर
इत्तेफाक से इस जमीन को खुर्दबुर्द करने में जिन लोगों का नाम आ रहा है सोशल मीडिया पर वायरल फोटो में वो सभी चुनाव के बाद नई सरकार को माला पहनाने और गले लगाने में सबसे आगे थे। इसी माला के पैसों की वसूली भाजपा सरकार के काबिज होते ही दिसम्बर के अंतिम पखवाड़े में इस जमीन के पट्टे औने पौने दामों में जारी करने के लिए नगर परिषद में पैसे भी जमा करवा लिए गए। आरोप ये लगा कि 23 दिसम्बर के आसपास पट्टा संख्या 23, 24, 25, 26, 27 और 28 तैयार भी कर लिए गए थे। सभापति ने इन पर हस्ताक्षर नहीं किए और रायता फैल गया।
सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि स्थानीय राजनीति को इस तरह साधा गया कि जिस आयुक्त के कार्यकाल में ये सब करके भाजपा की नवगठित सरकार और नवनिर्वाचित विधायक का नाम खराब करने की कोशिश की गई उसके यहां से स्थानांतरण होने पर भाजपा के नगर परिषद के पार्षदों ने ही उन्हें यहां रखने के लिए सबसे ज्यादा प्रयास करते किए। इन लोगों ने स्थानीय विधायक से लेकर मुख्यमंत्री के आबूरोड आने तक ज्ञापनबाजी की।

वहीं इस सौदे में कथित भूमिका वाले लोगों ने इस स्थानांरतण पर सोशल मीडिया पर हंगामा काटे रखा। नगर परिषद सूत्रों की मानें तो इस मामले पर शोर मचते ही अतिरिक्त जिला कलेक्टर ने इसकी पत्रावली तलब की, लेकिन पत्रावली तो गायब बता दी गई। फिर नगर परिषद के क्लर्कस और अकाउण्ट सेक्शन के कार्मिकों को तलब कर उन लोगों की जानकारी ली जिन्होंने इस पूरे प्रकरण में जमीन कथित रूप से खुर्दबुर्द करने में भूमिका निभाई।