कार्तिक महाराज ने रेप मामले में दर्ज FIR रद्द करने के लिए कलकत्ता हाईकोर्ट का रूख किया

कोलकाता। साधु एवं पद्मश्री पुरस्कार विजेता कार्तिक महाराज ने दुष्कर्म के मामले में अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग को लेकर मंगलवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। यह याचिका न्यायमूर्ति जॉय सेनगुप्ता के समक्ष प्रस्तुत की गई और इस पर बुधवार को सुनवाई तय की गई है।

बेलडांगा में भारत सेवाश्रम संघ से जुड़े धार्मिक नेता को पूछताछ के लिए नबाग्राम पुलिस ने बुलाया था। इसके बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया। पीड़ित महिला का दावा है कि 2013 में कार्तिक महाराज ने नबाग्राम के स्कूल में उसके लिए अध्यापक की नौकरी की व्यवस्था की और उसे स्कूल की पांचवीं मंजिल पर रहने की जगह मुहैया कराई। उसने आरोप लगाया है कि वहां कई मौकों पर उसका यौन उत्पीड़न किया और बाद में उसे बेलडांगा आश्रम में बुलाया, जहां कथित तौर पर लगातार पांच दिनों तक उसके साथ दुष्कर्म किया गया।

शिकायत में आगे कहा गया है कि जब वह गर्भवती हो गई, तो उसे गर्भपात कराने के लिए मजबूर किया गया। नबाग्राम और बेलडांगा दोनों थानों के पुलिस अधिकारियों ने सोमवार को आश्रम में समन तामील करने का प्रयास किया, लेकिन कार्तिक महाराज कथित तौर पर मौजूद नहीं थे। नोटिस उनके एक प्रतिनिधि को सौंप दिया गया।

इस मामले ने राजनीतिक विवाद को भी जन्म दे दिया है। तृणमूल कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोपियों को बचाने का आरोप लगाया है। तृणमूल कांग्रेस ने एक्स पर शिकायतकर्ता का एक वीडियो साझा किया, जिसमें उसने दावा कि उस पर शिकायत दर्ज करने के लिए दबाव नहीं डाला गया था।

तृणमूल कांग्रेस ने पोस्ट में कहा कि अपने बलात्कारी सहयोगी कार्तिक महाराज को बचाने के प्रयास में भाजपा इस मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रही है। यह एक ऐसी पार्टी है जो दुष्कर्मियों से सहानुभूति रखती है और पीड़ितों को छोड़ देती है। पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा है कि उसकी शिकायत राजनीति से प्रेरित नहीं है। उसके दशक भर के आघात को स्वीकार करने के बजाय, भाजपा उसे चुप कराने का प्रयास कर रही है। क्या राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस पर ध्यान दिया है? अगर नहीं, तो क्यों? जब आरोपी भाजपा से जुड़ा हो तो क्या पीड़ितों का कोई महत्व नहीं रह जाता।