एमएमयू ने जम्मू-कश्मीर में वंदे मातरम के गायन प्रतियोगिता पर आपत्ति जताई

श्रीनगर। जम्मू कश्मीर के इस्लामी संगठनों के सबसे बड़े समूह मुत्ताहिदा मजलिस-ए-उलेमा (एमएमयू) ने बुधवार को कुछ सरकारी विभागों की ओर से आयोजित की जा रही वंदे मातरम गायन प्रतियोगिता पर आपत्ति जताई।

एमएमयू ने एक बयान में कहा कि गैर-इस्लामी विश्वास प्रणालियों से जुड़ी भक्ति या धार्मिक भाव वाले गीत उन मुसलमानों के लिए शरीयत से संबंधित गंभीर चिंताएं पैदा करते हैं। इसमें कहा गया है कि इस्लाम धार्मिक अभिव्यक्तियों को सख्ती से नियंत्रित करता है और ऐसे कार्यों में भाग लेने की अनुमति नहीं देता है जो प्रतीकात्मक या मौखिक रूप से किसी भी बनाई गई वस्तु (इकाई) को पवित्र मानते हैं या उसे देवता का दर्जा देते हैं।

बयान में कहा गया कि इस्लाम में इस स्थापित धार्मिक स्थिति को देखते हुए, एमएमयू उन सभी लोगों को सलाह देता है जिनका धार्मिक विवेक इस्लामी शिक्षाओं से निर्देशित है वे सम्मानपूर्वक ऐसे कार्यक्रमों में भाग लेने से बचें।

एमएमयू के प्रमुख और कश्मीर के मुख्य मौलवी मीरवाइज उमर फारूक ने स्थानीय समाचार पत्रों द्वारा जम्मू-कश्मीर की धार्मिक पहचान और आस्था की सीमाओं के प्रति संवेदनशीलता दिखाए बिना ऐसी प्रचार सामग्री को छापने और बढ़ावा देने पर भी चिंता व्यक्त की है।

एमएमयू ने दोहराया कि सामाजिक सद्भाव और सह-अस्तित्व के लिए धार्मिक विश्वास और विवेक का सम्मान आवश्यक है और सभी संबंधित संस्थानों से सार्वजनिक संवाद और पहुंच में अधिक सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनशीलता बरतने की जरूरत है।

गौरतलब है कि एमएमयू ने नवंबर में स्कूलों को वंदे मातरम की वर्षगांठ मनाने के लिए कहने वाले सरकारी निर्देश का विरोध किया था और इस कदम को ‘गैर-इस्लामी’ बताते हुए प्रशासन से आदेश वापस लेने का आग्रह किया था। उस समय जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्पष्ट किया था कि उनके प्रशासन ने स्कूलों में वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ मनाने को अधिकृत नहीं किया था।