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'सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद से तीन तलाक के 100 मामले' - Sabguru News
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‘सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद से तीन तलाक के 100 मामले’

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‘सुप्रीमकोर्ट के फैसले के बाद से तीन तलाक के 100 मामले’
100 cases of instant triple talaq in the country since the Supreme Court judgment
100 cases of instant triple talaq in the country since the Supreme Court judgment

नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गुरुवार को लोकसभा में तीन तलाक विधेयक पेश करने के बाद इस पर विचार करने व इसे पारित करने का प्रस्ताव रखा। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के अगस्त में तीन तलाक को असंवैधानिक ठहराए जाने के फैसले के बाद से तीन तलाक के करीब 100 मामले हुए हैं।

भोजनवकाश से पहले के सत्र में पेश किए गए मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2017 पर कुछ घंटे बाद चर्चा शुरू की गई। प्रसाद ने विधेयक को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि यह धर्म या विश्वास का मुद्दा नहीं, बल्कि लैंगिक समानता व लैंगिक न्याय का मुद्दा है।

प्रसाद ने कहा कि सरकार को उम्मीद थी कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद हालात में सुधार होगा। मंत्री ने कहा कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायलय में यह कहते हुए हलफनामा दिया कि वह अपनी वेबसाइट, प्रकाशनों व सोशल मीडिया प्लेटफार्म के जरिए एक परामर्श जारी कर निकाहनामे के समय दूल्हे से कहेगा कि वह तलाक-ए-बिद्दत का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

प्रसाद ने कहा कि हमें उम्मीद थी। फैसला 22 अगस्त को आया। 2017 में तीन तलाक के 300 मामले हुए हैं जिसमें से 100 मामले सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद हुए हैं। इससे एक बड़ा सवाल पैदा होता है।

उन्होंने गुरुवार के मीडिया खबरों का जिक्र किया जिसमें उत्तर प्रदेश के रामपुर की घटना में एक महिला को देर से जगाने के कारण तीन तलाक देने का जिक्र था।

उन्होंने कहा कि हम किसी के शरिया में दखल नहीं देना चाहते। यह सिर्फ तलाक-ए-बिद्दत के बारे में है, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने असंवैधानिक ठहराया है। इस पर इस्लामिक देशों में नियमन है। भारत धर्मनिरपेक्ष देश है, क्या हमें महिलाओं के प्रति अन्याय बर्दाश्त करना चाहिए। प्रसाद ने सदस्यों से विधेयक को राजनीतिक दृष्टिकोण से नहीं देखने का आग्रह किया।

प्रसाद ने कहा कि इस विधेयक को राजनीति के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए, इसे धर्म के संदर्भ में नहीं लेना चाहिए और इसे वोट बैंक के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।

सर्वोच्च न्यायालय के 3:2 के फैसले का जिक्र करते हुए जिसमें उसने तलाक-ए-बिद्दत को मनमाना करार दिया था, प्रसाद ने कहा कि दो न्यायाधीशों ने इसे असंवैधानिक करार दिया था, एक ने गैरकानूनी व दो अन्य ने तीन तलाक पर कम से कम छह महीने निषेध का आदेश दिया था और कहा था कि इसके बाद सरकार इस मुद्दे पर कानून बनाने पर विचार कर सकती है।

इस विधेयक में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के मद्देनजर मुस्लिम पतियों द्वारा तलाक-ए-बिद्दत (एक बार में तीन तलाक) को गैरकानूनी घोषित करने व इसे आपराधिक कृत्य बनाने का प्रस्ताव है।

विधेयक में कहा गया है कि तलाक-ए-बिद्दत गैरकानूनी व दंडनीय अपराध होगा। इसमें पति से आजीविका के लिए गुजारा भत्ता व पत्नी व आश्रित बच्चों की रोजमर्रा की जरूरतों के लिए दैनिक सहायता की व्यवस्था भी शमिल है। इसमें पत्नी के पास नाबालिग बच्चों की निगरानी का अधिकार भी होगा। प्रसाद ने कहा कि तलाक-ए-बिद्दत कई मुस्लिम बहुल देशों में प्रतिबंधित है।

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