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तूफानों में जलते हौसलों के चिराग - Sabguru News
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तूफानों में जलते हौसलों के चिराग

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तूफानों में जलते हौसलों के चिराग

सबगुरु न्यूज। आंधियां कितनी भी मिट्टी लाकर आकाश को क्यों ना ढंक दे, लेकिन वर्षा की चन्द बूंदें उन आंधियों का अस्तित्व मिटा देती है और सर्वत्र सब कुछ दिखने लग जाता है।

सभ्यता ओर संस्कृति के विपरीत व्यवहार करने वाला व्यक्ति भले ही बलवान क्यों न हो, अपने छल बल से अपने काले कारनामे छुपा ले और क़लम भी उसकी वाहवाही के राग अलपा ले मगर सच की चिन्गारी एक दिन अपना आकार बढाकर विशाल ज्वालामुखी का रूप धारण कर लेतीं हैं। हर काले कारनामे को जला कर उसे राख बना कर छोड़ देतीं हैं।

अस्तित्व के इस शक्ति संतुलन में अपने हौसलो को बुलंद रखने वाला व्यक्ति भारी गतिशील तूफानों में भी चिराग को रोशन कर देता है। यहां तक की भावुकता की कालाबाजारी भी भारी गुला मंटिया खाकर औंधे मुंह गिर कर अपनी बरबादी पर आंसू बहाती है।

इतिहास के झरोखे से झांकती एक कथा बताती है कि ऋषि अत्रि की पत्नी अनसूया अपने पति की सेवा मे इतनी लीन थी कि ऋषि अत्रि के समाधि के समय भी वह उनके चारों ओर परिक्रमा
करतीं तथा ऋषि का ही नाम लेती रहतीं थी।

एक नारद जी ने यह देखा तो स्वर्ग में बैठी त्रिदेवों की पत्नियों के सामने सति अनसूया की तारीफ की। इस बात पर इन तीनों देवियों ने त्रिदेवों को अनसूया की परीक्षा लेने भेजा। त्रिदेवों ने साधु का वेश धारण किया और अनसूया के पास आकर अपनी इच्छा की भिक्षा मांगने लगे।अनसूया को चुनौती देते हुए उन त्रिदेवों ने कहा हम आप से तभी भिक्षा लेंगे जब आप नग्न होकर हमें अपने स्तन पान कराएं।

इस चुनौती को स्वीकार कर अनसूया तनिक घबराई, विकट स्थिति को देख कर अगले ही पल वह अपने कमरे में गई और परमात्मा के सामने असहाय होकर आंसू बहाने लगी। वह हौसला रखकर बाहर आई तो त्रिदेव दूध पीते बच्चे बन गए और अनसूया ने उन्हें उठा अपने गले लगाकर स्तन पान करा दिया। इस तरह भारी तूफानों में भी अपने ही हौसले से चिराग जला दिए।

संत जन कहते हैं कि हे मानव तू सोच रहा है कि यह सब संभव नहीं है लेकिन इस प्रकृति के रहस्यों को आज तक कोई व्यक्ति और विज्ञान भी नहीं समझ पाया है और वह जिस सत्य और तर्क की दुहाई देते हैं केवल वही सत्य नहीं होता। यदि आज का मानव अपनी तकनीक से दूर के ग्रहों पर पहुंच गया है और अभी तक खोज किए जा रहा है फिर भी सत्य आज भी उनसे कोसों दूर है।

इसलिए हे मानव तू जिस सभयता और संस्कृति के आधार पर वर्तमान में खड़ा है उसकी नींव भी उस प्राचीन सभ्यता व संस्कृति के मानव ने रखी। उस संस्कृति के विज्ञान को भी आज तक कोई समझ नहीं पाया। वह विज्ञान भी कितना उन्नत था और उस काल की इमारतों का निर्माण भी आज तक कोई नहीं कर पाया। इसलिए हर कथा का विज्ञान सत्य ही रहा होगा। हे मानव तू एकाग्रता से आगे बढ़ तेरी हर मुश्किल को आसान हो जाएगी और विपरीत परिस्थितियों में भी तू विजयी होकर रहेगा।

सौजन्य : भंवरलाल