नई दिल्ली। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर विपक्षी दलों के विरोध का सामना कर रही मोदी सरकार की मुश्किलें बढने वाली हैं। अब केंद्र सरकार को उसके घर से ही चुनौती मिलने लगी है।
भाजपा के सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने मंगलवार को इसी मुद्दे को लेकर जंतर मंतर पर स्वदेशी जन संसद आयोजित कर मोदी सरकार से अहंकार त्याग अध्यादेश को नहीं लागू करने की अपील की।
जन संसद में स्वेदशी विचारक गोविंदाचार्य, स्वदेशी जागरण मंच के कशमीरी लाल, अश्वनी महाजन, कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा और उत्तर पूर्वी दिल्ली से भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने भी अपने विचार रखे।
मनोज तिवारी ने सरकार का बचाव करते हुए कहा कि मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विषय पर चिंतनशील है, इसके बावजूद यदि कोई कमी इसमें है तो उसे बताया जाये ताकि उसे सरकार के समक्ष उठाया जा सके।
कृषि वैज्ञानिक देवेंद्र शर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने कहा था कि भूमि अधिग्रहण होने दो इससे 30 करोड नौकरियों का सर्जन होगा, जो तुम्हारे परिवार के सदस्यों को मिलेंगी। उन्होंने कहा कि इतनी नौकरियों तो आजादी के बाद से अब तक नहीं हुई तो अब कैसे हो जाएगी असल में सरकार हमें मूर्ख बना रही है।
सरकारी योजनाओं के लंबित पडे होने के तर्क पर सवाल उठाते हुए कहा कि ताजा रिपोर्ट के मुताबिक केवल 8 फीसदी प्रोजेक्ट भूमि अधिग्रहण नहीं होने के चलते लंबित है। उन्होंने कहा कि सरकार को अपना अहंकार छोडकर इस अध्यादेश को वापस लेना चाहिए।
स्वदेशी जन संसद की मांग है कि भूमि सीमित साधन होने के नाते टुकड़ों-टकड़ों में विचार करने के स्थान पर सरकार को इसके उपयोग में लाने का एक समुचित नीति बनानी चाहिए। जिसके अंतर्गत खेती, वन, उद्योग, सड़कों इत्यादि के लिए उपयोग में ला सकने वाली भूमि की सीमा बांधी जानी चाहिए।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् आज तक सरकारों द्वारा अधिग्रहित भूमि और बड़े उद्योगपतियों के पास पड़ी बेकार भूमि, उसके वर्तमान उपयोग तथा खाली पड़ी शेष भूमि के बारे में एक श्वेत पत्र जारी किया जाए।
खेती तथा वन भूमि को किसी भी कीमत पर अन्य उपयोगों के लिए अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। निजी उद्योगों की भूमि आवश्यकता की पूर्ति सरकार की जिम्मेदारी नहीं होना चाहिए।
इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए अधिग्रहित भूमि का संयमपूर्वक सदुपयोग होना चाहिए तथा विशेष आर्थिक क्षेत्रों और इंडस्ट्रीयल पाक्र्स के नाम पर अधिग्रहित भूमि जो अब बेकार पड़ी है को सर्वप्रथम उपयोग में लाया जाए।
भूमि अधिग्रहण में किसानों की सहमति सुनिश्चित हो। भूमि अधिग्रहण से पहले उसकी जरूरत, सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन हो।