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बैंकों की लोन ग्रोथ 54 साल के निचले स्तर पर

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बैंकों की लोन ग्रोथ 54 साल के निचले स्तर पर
Banks' credit growth at 54-year low
Banks' credit growth at 54-year low
Banks’ credit growth at 54-year low

मुंबई। बैंकों की लोन ग्रोथ 54 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है। नोटबंदी के बाद बिजनेस सेंटीमेंट डाउन होने के चलते कंपनियों ने लोन लेना कम कर दिया है, जबकि आम लोगों ने रोजमर्रा के सामान को छोड़कर दूसरी खरीदारी कम कर दी है।

हालांकि, एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक का दावा है कि कमजोर लोन ग्रोथ का सबसे बुरा दौर गुजर गया है। उनके मुताबिक, कैश की सप्लाई नॉर्मल होने और बिजनस सेंटीमेंट सुधरने के बाद लोन की मांग तेजी से बढ़ेगी।

आरबीआई के डेटा के मुताबिक, 9 दिसंबर को खत्म हुए पिछले 15 दिनों में लोन ग्रोथ 6 पर्सेंट से नीचे 5.8 पर्सेंट पर चली गई। यह 1962 के बाद की सबसे कम ग्रोथ है। उस वक्त बैंकों का राष्ट्रीयकरण नहीं हुआ था। 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों को बैन किए जाने के बाद बैंकों के पास डिपॉजिट बढ़ा है।

बैंक 13 लाख करोड़ से अधिक के डिपॉजिट पर ब्याज चुका रहे हैं, जबकि लोन की मांग बहुत कम हो गई है। एसबीआई जैसे कुछ बैंकों ने तो लोन ग्रोथ बढ़ाने के लिए इंट्रेस्ट रेट में कटौती भी की है, लेकिन अभी तक इसका बहुत असर नहीं हुआ है क्योंकि कंपनियां नोटबंदी की समस्या से जूझ रही हैं। हालांकि, अगली तिमाही से रिटेल लोन की मांग बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।

एचडीएफसी बैंक के डेप्युटी मैनेजिंग डायरेक्टर परेश सुकथांकर ने कहा, ‘हालात सामान्य होने के बाद मार्च तिमाही से खुदरा लोन की मांग बढ़नी चाहिए। मुझे नहीं लगता है कि नोटबंदी का बहुत लंबे समय तक बैंकों की लोन ग्रोथ पर असर पड़ेगा।’

बैंक लोन प्रोसेसिंग ऐप्लिकेशन को क्लीयर करने में भी सुस्ती बरत रहे हैं। उसकी वजह यह है कि उनका पूरा स्टाफ नोट बदली में लगा हुआ है। हालांकि, डिपॉजिट बढ़ने के चलते बैंकों के आने वाले समय में लोन सस्ता करने की उम्मीद है। इससे लोन ग्रोथ बढ़ाने में मदद मिलेगी, लेकिन कॉर्पोरेट सेगमेंट को दिया जाने वाला लोन का बिजनस सुस्त रह सकता है।

एक्सिस बैंक के डेप्युटी मैनेजिंग डायरेक्टर वी श्रीनिवासन ने कहा, ‘नोटबंदी के चलते दिसंबर क्वॉर्टर में लोन की जो मांग कम हुई है, वह जनवरी-मार्च के बीच वापस आनी चाहिए। हालांकि, कॉर्पोरेट लोन ग्रोथ में सुस्ती बनी रहेगी क्योंकि कंपनियां अभी कम रेट पर विदेश से फंड जुटा रही हैं।’

8 नवंबर से पहले भारत में 90 पर्सेंट ट्रांजैक्शंस कैश में हो रहे थे। ऐसे में अचानक नोटबंदी के चलते उपभोक्ताओं का खर्च कम हुआ और इससे बिजनेस ऐक्टिविटी सुस्त पड़ गई। इससे कंपनियों के नए प्रॉजेक्ट्स में निवेश रुक गया है। इन प्रॉजेक्ट्स को ट्रैक पर आने में अधिक समय लग सकता है।