Home Entertainment Bollywood काले धन का बॉलीवुड से रहा है गहरा रिश्ता

काले धन का बॉलीवुड से रहा है गहरा रिश्ता

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काले धन का बॉलीवुड से रहा है गहरा रिश्ता
Bollywood connection with black money
Bollywood connection with black money
Bollywood connection with black money

मुंबई। काले धन की गंभीर समस्या को खत्म करने के मकसद से मोदी सरकार ने हाल ही में बड़ी करेंसी को लेकर जो फैसले किए, उनका देश के सभी लोगों पर कहीं न कहीं असर हुआ है।

जब काले धन की बात आती है तो बॉलीवुड की दुनिया इससे अछूती नहीं रह पाती। एक वक्त था, जब माना जाता था कि काले धन की बड़ी खपत बॉलीवुड की फिल्मों में होती है।

खास तौर पर 90 के दशक में तो बॉलीवुड कालेधन की जकड़ में बुरी तरह से फंसा हुआ था। अंडरवर्ल्ड और दूसरे काले कारोबार के फिल्मों में पैसा लगाने को लेकर सबसे आगे होते थे।

90 के बाद बॉलीवुड में कॉरपोरेट घरानों के आने से इस स्थिति में सुधार हुआ। अगर इतिहास के पन्नों को पलट कर देखे, तो अपने जन्म के समय से भारतीय सिनेमा छोटे स्तर की फिल्में बनाता था जिसमें काले धन की कोई गुंजाइश नहीं होती थी।

50 के दशक में स्टूडियोज की स्थापना हुई जो खुद फिल्मों का प्रोडक्शन करते थे। प्रभात टाकिज से लेकर मुंबई टाकीज और रुपतारा स्टूडियो फिल्म निर्माण में सक्रिय हुए।

देश को मिली आजादी के बाद निजी कारोबारियों ने फिल्में बनाने में दिलचस्पी दिखानी शुरु की। उस दौर में कलाकारों को फिल्मों में काम करने के लिए महीने की सैलरी से भुगतान हुआ करता था।

60-70 के दशक में विशुद्ध रुप से फाइनेंसरों का आना शुरु हुआ जिन्होंने ब्याज पर निर्माताओं को पैसा देना शुरु किया। उस वक्त निर्माता की हैसियत और सितारों को देखकर ब्याज की रकम तय हुआ करती थी।

जिन निर्माताओं की फिल्में समय पर नहीं बन पाती थीं उनमें से कई निर्माता भरी ब्याज की रकम न चुका पाने की वजह से आर्थिक बर्बादी का सामना करना पड़ा।

उस दौर के तमाम ऐसे किस्से हैं जब निर्माताओं को अपना ब्याज घर और पत्नी के जेवर बेचकर पैसा चुकाना पड़ा, फिर भी वह खुद को बर्बाद होने से नहीं रोक पाए।

80 के दशक में जब बड़े स्टारों की मल्टीस्टार फिल्मों का चलन शुरु हुआ तो काले धन ने बॉलीवुड में पैर पसारने शुरु किए। खास तौर पर मुंबई के अंडरवर्ल्ड ने बॉलीवुड का रुख किया और फिल्म निर्माण में दखल देना शुरु किया।

करीम लाला से लेकर दूसरे बड़े अंंडरवर्ल्ड के गैंग फिल्म इंडस्ट्री में कूदने लगे। यह गैंग फिल्म निर्माताओं को बेनामी पैसा देने और इस बूते पर बड़े सितारों को प्रभावित करने लगे।

काले कारोबार की कमाई से लेकर राजनीतिक रसूख वाले इन गैंगस्टरों ने 80 के दशक में बड़ी फिल्मों को अपना निशाना बनाया तो 90 का दशक आते आते तक स्थिति और ज्यादा गंभीर होती चली गई।

दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी से लेकर छोटा राजन तक हर गैंग बालीवुड में सक्रिय हो गया। ये गैंग फिल्में भी बनाते थे। कलाकारों से रंगदारी भी मांगते थे।

उस दौर में इन गैंगस्टरों की महफिलों में मुंबई से लेकर दुबई तक बॉलीवुड के तमाम सितारे नजर आने लगे। उस दौर में यह गैंग बॉलीवु़ड पर इतने हावी हो गए कि कोई बड़ा कलाकार इनसे अछूता नहीं रहा।

यह गठजोड़ इतना भयंकर रुप ले चुका था कि इसमें गुलशन कुमार सहित कई फिल्मकारोंकी हत्याएं हुईं। राकेश रोशन पर गोलियां चलीं। संजय दत्त गिरफ्तार हुए। पुलिस ने भी इस गठजोड़ को खत्म करने के लिए कई कड़े कदम उठाए।

नई सदी आते आते तक फिल्म इंडस्ट्री में कॉरपोरेरट घरानों के आने से इस स्थिति में सुधार आना शुरु हुआ। इन बड़े घरानोंं ने कानूनी तरीकों से फिल्मवालों को पैसा देना शुरु किया।

पैनकार्ड का चलन तेज हुआ और 2010 आते आते तक काले धन की दुनिया से बॉलीवुड काफी हद तक दूर होता चला गया। मौजूदा दौर में जितनी तेजी से कारपोरेट घरानों के पांव उखड़ रहे हैं, उसे देखते हुए आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं बॉलीवुड फिर से कालेधन के कुबेरों के दरबार में न जा पंहुचे।

हालांकि फिल्म निर्माण को सरकारी तौर पर इंडस्ट्री घोषित किए जाने के बाद फाइनेसं के लिए बैकों की सक्रियता भी एक विकल्प के तौर पर सामने है लेकिन इसे लेकर निर्माताओं में ज्यादा सक्रियता नहीं है।

कॉरपोरेट घरानों के पलायन के बाद यही उम्मीद की जा रही है कि ब्याज पर रकम देने वाले व्यापारी एक बार फिर आगे आएंगे लेकिन इनमें काले धन को सफेद बनाने की नीयत रखने वालों से कैसे बचाया जाए। यह फिल्म इंडस्ट्री को तय करना है।