Home Entertainment Bollywood ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना…

ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना…

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ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना…
bollywood remembers kalyanji on his death anniversary
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bollywood remembers kalyanji on his death anniversary

मुंबई। जिंदगी से बहुत प्यार हमने किया मौत से भी मोहब्बत निभाएंगे हम रोते रोते जमाने में आए मगर हंसते हंसते जमाने से जाएंगे हम, जिंदगी के अनजाने सफर से बेहद प्यार करने वाले हिन्दी सिने जगत के मशहूर संगीतकार कल्याण जी का जीवन से प्यार उनकी संगीतबद्ध इन पंक्तियों में समाया हुआ है।

कल्याणजी वीर जी शाह का जन्म गुजरात में कच्छ के कुंडरोडी में 30 जून 1928 को हुआ था। बचपन से ही कल्याण जी संगीतकार बनने का सपना देखा करते थे हालांकि उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी लेकिन अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए वह मुंबई आ गए।

मुंबई आने के बाद उनकी मुलाकात संगीतकार हेमंत कुमार से हुई जिनके सहायक के तौर पर कल्याण जी काम करने लगे। बतौर संगीतकार सबसे पहले वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म सम्राट चंद्रगुप्त में उन्हें संगीत देने का मौका मिला लेकिन फिल्म की असफलता से वह कुछ खास पहचान नहीं बना पाए।

अपना वजूद तलाशते कल्याण जी को बतौर संगीतकार पहचान बनाने के लिए लगभग 2 वर्ष तक फिल्म इंडस्ट्री मे संघर्ष करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने कई बी और सी ग्रेड की फिल्में भी की। वर्ष 1960 मे उन्होंने अपने छोटे भाई आनंद जी को भी मुंबई बुला लिया। इसके बाद कल्याणजी ने आंनद जी के साथ मिलकर फिल्मों मे संगीत देना शुरू किया।

वर्ष 1960 में ही प्रदर्शित फिल्म छलिया की कामयाबी से बतौर संगीतकार कुछ हद तक वह अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गए। फिल्म छलिया में उनके संगीत से सजा यह गीत डम डम डिगा डिगा, छलिया मेरा नाम श्रोताओं के बीच आज भी लोकप्रिय है।

वर्ष 1965 में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म हिमालय की गोद में की सफलता के बाद कल्याणजी-आनंद जी शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। कल्याण जी के सिने कैरियर के शुरूआती दौर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत खूब जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले कल्याण जी को फिल्म उपकार के लिए संगीत देने की पेशकश की।

कल्याणजी आनंद जी ने अपने संगीत निर्देशन में फिल्म उपकार में इंदीवर के रचित गीत कस्मे वादे प्यार वफा के जैसा दिल को छू लेने वाला संगीत देकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इसके अलावा मनोज कुमार की ही फिल्म पूरब और पश्चिम के लिए भी कल्याण जी ने दुल्हन चली वो पहन चली तीन रंग की चोली और कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे जैसा सदाबहार संगीत देकर अलग ही समां बांध दिया। कल्याण जी के सिने कैरियर मेें उनकी जोड़ी गीतकार इंदीवर के साथ खूब जमीं।

छोड दे सारी दुनिया किसी के लिए, चंदन सा बदन और मैं तो भूल चली बाबुल का देश जैसे इंदीवर के लिखे न भूलने वाले गीतों को कल्याण जी आनंद जी ने ही संगीत दिया था।

वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म जानी मेरा नाम में नफरत करने वालों के सीने मे प्यार भर दू, पल भर के लिए कोई मुझे प्यार कर ले जैसे रुमानी संगीत देकर कल्याणजी-आंनद जी ने श्रोताओं का दिल जीत लिया।

मनमोहन देसाई के निर्देशन मे फिल्म सच्चा-झूठा के लिए कल्याणजी-आनंद जी ने बेमिसाल संगीत दिया। मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां को आज भी शादी के मौके पर सुना जा सकता है। वर्ष 1989 में सुल्तान अहमद की पिल्म दाता में उनके कर्णप्रिय संगीत से सजा यह गीत बाबुल का ये घर बहना एक दिन का ठिकाना है, आज भी श्रोताओं की आंखों को नम कर देता है।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म सरस्वती चंद्र के लिये कल्याणजी-आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का नेशनल अवार्ड के साथ-साथ फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया। इसके अलावा वर्ष 1974 मे प्रदर्शित कोरा कागज के लिए भी कल्याणजी-आनंद जी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया।

कल्याणजी ने अपने सिने कैरियर मे लगभग 250 फिल्मों को संगीतबद्ध किया। वर्ष 1992 मे संगीत के क्षेत्र मे बहुमूल्य योगदान को देखते हुए वह पद्मश्री से सम्मानित किए गए। लगभग चार दशक तक अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले कल्याण जी 24 अगस्त 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।