Home Delhi वैवाहिक रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई 4 दिसंबर तक टली

वैवाहिक रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई 4 दिसंबर तक टली

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वैवाहिक रेप पर दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई 4 दिसंबर तक टली
Delhi High Court adjourns marital rape case till Dec 4
Delhi High Court adjourns marital rape case till Dec 4
Delhi High Court adjourns marital rape case till Dec 4

नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 4 दिसंबर तक के लिए टाल दी है।

इसके पहले हाईकोर्ट ने पिछले 4 सितंबर को यह कहते हुए सुनवाई टाल दी थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट में भी इसी मामले पर सुनवाई हो रही है तो हाईकोर्ट में सुनवाई का कोई मतलब नहीं रह जाता।

उसके बाद 8 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे वकील गौरव अग्रवाल ने कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली बेंच को बताया था कि सुप्रीम कोर्ट 15 से 18 वर्ष की नाबालिगों के साथ वैवाहिक रेप के मामले पर सुनवाई कर रही है जबकि हाईकोर्ट संपूर्ण रूप से वैवाहिक रेप के मामले पर सुनवाई कर रही है। उसके बाद हाईकोर्ट ने वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन को इस मसले पर कोर्ट की मदद के लिए एमिकस क्यूरी नियुक्त किया।

उल्लेखनीय है कि पिछले 30 अगस्त को कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने फिलीपींस सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को उद्धृत किया था। जिसमें कहा गया है कि विवाह के बाद भी जबरन बनाया गया यौन संबंध अपराध होता है।

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने नेपाल सुप्रीम कोर्ट के 2001 के एक फैसले का उदाहरण दिया था और कहा था कि ये कहना कि कोई पति अपनी पत्नी का रेप कर सकता है तो ये महिला के स्वतंत्र अस्तित्व को नकारना है।

इस मामले में 29 अगस्त को केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से शादी जैसी संस्था अस्थिर हो जाएगी और ये पतियों को प्रताड़ित करने का एक जरिया बन जाएगा।

केंद्र ने कहा था कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों के प्रमाण बहुत दिनों तक नहीं रह पाते। केंद्र ने कहा था कि भारत में अशिक्षा, महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त न होना और समाज की मानसिकता की वजह से वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में नहीं रख सकते। केंद्र ने कहा था कि इस मामले में राज्यों को भी पक्षकार बनाया जाए ताकि उनका पक्ष जाना जा सके।

केंद्र ने कहा था कि अगर किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ किए गए किसी भी यौन कार्य को अपराध की श्रेणी में रखा जाएगा तो इस मामले में फैसले एक जगह आकर सिमट जाएंगे और वो होगी पत्नी। इसमें कोर्ट किन साक्ष्यों पर भरोसा करेगी यह भी एक बड़ा सवाल होगा।

उल्लेखनीय है कि 11 अक्टूबर को ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 18 साल से कम, खासकर 15 से 18 वर्ष की नाबालिगों के साथ पतियों द्वारा बनाए जबरन यौन संबंध को रेप करार दिया।

जस्टिस मदन बी लोकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लंघन माना। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि हमारे फैसले का प्रभाव आगे से होगा। यानि इससे पूर्व हुए विवाह के मामलों पर नहीं।