Home Bihar छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए होती है सूर्य की अराधना

छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए होती है सूर्य की अराधना

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छठ देवी को प्रसन्न करने के लिए होती है सूर्य की अराधना
goddess of Chhath devi : worship of the sun
goddess of Chhath devi : worship of the sun
goddess of Chhath devi : worship of the sun

सहरसा। कोसी क्षेत्र में लोक आस्था का महान पर्व छठ नहाय खाय के साथ शुरू हो गया है। छठ का त्योहार सूर्योपासना का पर्व है।

प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि दृष्टि डालें तो यह पूजा महाभारत काल के समय से देखा जा रहा है। छठ देवी सूर्यदेव भगवान की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती हैं तथा गंगा यमुना या किसी भी पवित्र नदी अथवा पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न की जाती है।

छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण पर्व है। इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी को समाप्त हो जाता है। छठ व्रती 36 घंटे निर्जला व्रत करती हैं। व्रत समाप्ति के बाद ही अन्न एवं जल ग्रहण करती हैं।

कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी शुक्रवार को नहाय खाय से छठ शुरू किया गया। खरना पूजन के साथ ही घर घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है। जिसकी तैयारियों पूरी कर ली गई हैं। शनिवार रात्रि को खरना पूजन किया गया। पवित्रता एवं सादगी से छठ व्रती पूजन का कार्य करते हैं।

घरों में छठ मैया पर आधारित लोकगीतों से माहौल भक्ति मय बना हुआ है। खरना पूजन में प्रसाद के रूप में गन्ने की रस से बनी चावल की खीर, घी पूरी, चावल का पिट्ठा बनाकर छठ व्रती भगवान को भोग लगाते हैं। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करके छठ व्रती 36 घंटा निर्जला उपवास में रहेगी।

कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को (तीसरे दिन) छठ प्रसाद बनाया जाता हैं। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, चावल का लडुआ, सभी के फल शामिल रहते हैं। शाम को पूरी व्यवस्था के साथ बांस की टोकरी में अर्घ का सुप सजाया जाता है और छठ व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ देने के लिए घाट की ओर चल पड़ते हैं।

सभी छठ व्रती एक नियत तालाब या नदी किनारे इक्ट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ दान सम्पन्न करते हैं। तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती हैं। भगवान सूर्य को जल एवं दुध का अर्घ दिया जाता हैं।

पंडित अजय कांत ठाकुर बताते हैं कि रविवार की संध्या अस्ताचलगामी सूर्य को 4:31 मिनट के बाद ओर 5:15 के पहले अर्घ देने का शुभ मुहूर्त है। चौथे दिन सोमवार सुबह 6:23 मिनट के बाद उदीयमान भगवान सूर्य को दिया जाएगा।

व्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहां उन्होंने शाम को अर्घ दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती हैं। छठ व्रती सभी को घाट पर आशीर्वाद देती हैं। पुनः घर आकर शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद ग्रहण कर व्रत पूर्ण करते हैं।