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लक्ष्मी जी रूठ कर चली गई

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लक्ष्मी जी रूठ कर चली गई

सबगुरु न्यूज। जब बलशाली व सर्व गुण सम्पन्न व्यक्ति को छोटा समझ कर नकार दिया जाता है तब प्रकृति महाकाल बन कर प्रहार करती है और अपने अंश को स्थापित करने के लिए बड़े बलशाली व अधिकार युक्त व्यक्ति को जमीन दिखा देती है। काल बल के माध्यम से वह बलवान को दुर्बल से और बुद्धिमान को बुद्धिहीन से पराजित करा कर नकारे गए व छोटे समझे गए व्यक्ति को राजा बना सारा खेल क्षण भर में बदल देती हैं।

कुछ ऐसे ही घटनाक्रम को पौराणिक काल के इतिहास में बताया गया है कि जब एक बार भंयकर युद्ध में जीतकर ब्रहमा विष्णु व महेश तीनों ही शक्तियों को अंहकार हो गया था। उन्होंने शक्ति व लक्ष्मी जी को स्त्री व छोटा समझ कर नकार दिया था। इस बात से लक्ष्मी जी रूठ गई ओर इस सृष्टि से चली गई।

शक्ति व लक्ष्मी जी के चले जाने से शिव शव के समान तथा विष्णु जी श्री हीन हो गए। जगत में शक्ति व श्री के बिना सब आधारहीन हो गए। जगत के पालनकर्ता व संहारकर्ता की यह दशा देख जगत पिता ब्रहमा जी सब देवों को हिमालय पर्वत ले गए और आद्या शक्ति की उपासना की।

कई साल के बाद आकाशवाणी हुई की इन दोनों को एक झूंठा अंहकार हो गया है कि इस जगत को हम ही चलाते हैं। इसलिए मेरी दोनों शक्तियां शक्ति व श्री इस जगत से लोप हो गई। तुम सभी एकाग्र होकर मेरा ध्यान करों। मेरी प्रसन्नता पर शक्ति व लक्ष्मी अवतरित होंगी। शक्ति हिमालय के यहां तथा लक्ष्मी समुद्र मंथन से निकल कर प्रकट होंगी।

दैव और दानवों ने समुद्र मंथन किया ओर जगत की महालक्ष्मी अपने वैभवशाली रूप के साथ प्रकट हुईं। यह देखकर विष्णु जी ने तुरंत लक्ष्मी जी को वरमाला पहनाकर वरण किया तथा सृष्टि में लक्ष्मी जी पुनः स्थापित हुई। इस प्रकार लक्ष्मीजी का प्रादुर्भाव जगत में लक्ष्मी व दीपावली के रूप माना जाता है। लक्ष्मी जी के सम्मान में सर्वत्र खुशियां मनाई ओर देवों की यह दीपावली जगत की दीपावली बनीं।

कथाएं कई हैं लेकिन सार रूप से संकेत देती है कि बलवान व्यक्ति अंहकार का जामा पहन सभी को हर तरह से कुचल कर घायल कर देता है तो प्रकृति उसकी शक्ति का हरण कर उसे जमीन पर चित पटक कर उसका अंत कर एक बिषहीन सर्प की तरह बना देती है और वह शक्तिशाली केवल फुफकारता ही रह जाता है।

संत जन कहते है कि हे मानव तू कितना भी शक्ति शाली बन जाए लेकिन तू अंहकार मत रख, कल्याण के मार्ग की ओर बढ़ लक्ष्मी जी खुद तेरे घर चली आएंगी।

सौजन्य : भंवरलाल, सातु बहना उपासक