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जल गया दीपक राख हुई बाती

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जल गया दीपक राख हुई बाती

सबगुरु न्यूज। मातम सा छा गया उस रात सितारों की दुनिया में, जब चांद का कत्ल हो गया था और कोई अंधेरे में बैठा खुशी मना रहा था और एक भ्रम को अपने गले लगा रहा था।

अगली ही सुबह आंखों में आंसू ले सूरज भी निकला, चांद के कातिल को ढूंढने। अपने हाथों में शव रखकर छोड़ दिया उसे प्रकृति की गोद में। कितना बड़ा धोखा मेरे महबूब ने किया ये बयां वो ख़ून का कतरा कर रहा था।

दीपक, तेल और बाती की भी प्रीत निराली होती हैं। दीपक सोचता है कि तेल और बाती को जलाकर मेरा अस्तितव बना लूं और जगत में नाम कर दूं कि मै सबको अंधकार से प्रकाश की ओर ले आया हूं।

तेल, बाती को तथा बाती, तेल को मिटा देने के लिए कवायद करती है। इन तीनों की योजनाएं खत्म करने के लिए प्रकृति आग बन कर आती है और अपना गुण दिखा तीनों की गुप्त योजनाओं जिसमें एक दूसरे को भविष्य में धोखा देकर, अपना अस्तित्व साबित करने की सोच थी, जला कर राख कर देती है।

पहले बाती को, फिर तेल को और उसके बाद इन दोनों का आधार जो दीपक उसकी प्रतिष्ठा में आग लगा कर दिए के चिपटे हुऐ तेल को जलाना शुरू कर दिये को भी जला काला कर देती है।

नाग के जहर से लाभ उठाने वाला ही अगर नाग को मार देता है तो उसे भी नागिन का शिकार होना पड़ता है हैं और काजल की कोठरी में कितना भी सयाना क्यो न घुस जाए उसे काजल की रेख आखिर लग जाती है।

संत जन कहते हैं कि तू थोड़े दिन जीने को अपनी सफलता के लिए असंगत को गले लगा लेता है और फिर उन असंगत वालों को तू सबक देने की कवायद करता है। इस सबक का परिणाम असफलता के रूप में तुझे भी चुकाने पडेंगे। इसलिए मानव भले ही तू इस दुनिया में गुमनाम होकर जी, तुझे देख खूब आनंद आएगा लेकिन सत का संगत कर असत की नहीं।

सौजन्य : भंवरलाल