Home Breaking पलायन के साये में कैसे बढ़ेगा इंडिया?

पलायन के साये में कैसे बढ़ेगा इंडिया?

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पलायन के साये में कैसे बढ़ेगा इंडिया?
How India will grow in the shadows flee?
How India will grow in the shadows flee?
How India will grow in the shadows flee?

विस्थापन अथवा पलायन -एक ऐसी परिस्थिति जिसमें मनुष्य किसी भी कारणवश अपना घर व्यवसाय जमीन आदि छोड़ कर किसी अन्य स्थान पर जाने को मजबूर हो जाता है या फिर कर दिया जाता है। जीवन की सुरक्षा सर्वोपरि बन जाती है और अपनी सभी सुख सुविधाओं से युक्त वर्तमान परिस्थितियों को त्याग कर वह किसी ऐसे स्थान की तलाश में भटकने के लिए मजबूर हो जाता है जहाँ वह शांति से जीवन यापन कर सके।

भारत में अब तक होने वाले विस्थापनों की बात करें तो सबसे बड़ा विस्थापन 1947 में भारत और पाकिस्तान के बँटवारे के दौरान हुआ था जिसकी पीड़ा आज भी कुछ दिलों को चीर जाती होगी। इसी प्रकार 1990 में कश्मीरी पंडितों को घाटी छोडऩे पर मजबूर होना पड़ा था -इन 26 सालों में सिर्फ एक ही परिवार वापस जा पाया है।

1992 में असम से पलायन हुआ था जिसकी आँच बैंगलुरु, पूना, चेन्नई और कोलकाता तक पहुँच गई थी और उत्तर पूर्व के लोगों को अपनी नौकरी व्यापार सब कुछ छोड़ कर पलायन करना पड़ा था। केरल और बंगाल भी इससे अछूते नहीं रहे हैं।

योजना आयोग द्वारा प्रस्तुत 11वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेजों के अनुसार किसी प्रांत से उसी प्रांत में और एक प्रांत से दूसरे प्रांत में पलायन करने वालों की संख्या पिछले एक दशक में नौ करोड़ सत्तर लाख तक जा चुकी है इसमें से 6 करोड़ 60 लाख लोगों ने ग्रामीण से ग्रामीण इलाकों में और 3 करोड़ 60 लाख लोगों ने गाँवों से शहरों की ओर पलायन किया है।

दरअसल समाज में जब-जब मानवीय मूल्यों का ह्रास होता है और अधिकारों का हनन होता है मानव पलायन के लिए विवश होता है। यह अलग बात है कि बेहतर भविष्य की तलाश में हमारे देश में तो छात्रों और प्रतिभाओं का भी पलायन सालों से होता आया है। आज विस्थापन की आग उत्तर प्रदेश के शामली जिले के कैराना कस्बे तक पहुंच गई है।

जो गांव आज तक देश का एक साधारण सा आम कस्बा हुआ करता था और जहां के लोग शांतिपूर्ण तरीके से अपनी जिंदगी जी रहे थे वह कस्बा आज अचानक लाइम लाइट में आ गया है और राजनैतिक दलों एवं मीडिया की नई कर्मभूमि बन चुका है। नेता इसका राजनैतिक उपयोग करने और मीडिया इसके द्वारा अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिए होड़ में लगे हैं।

कैराना सर्वप्रथम 2013 में साम्प्रदायिक हिंसा के कारण चर्चा में आया था और आज पुन: सुर्खियों में है। स्थानीय सांसद हुकुम सिंह ने प्रेस कान्फ्रेन्स कर मीडिया के सामने वर्ष 2014 से पलायन करने वाले 346 परिवारों की सूची जारी की है और कहा है कि कैराना को कश्मीर बनाने की साजिश की जा रही है। सांसद ने 10 ऐसे लोगों की सूची भी सौंपी जिनकी हत्या रंगदारी न देने पर कर दी गई थी और कहा कि हालात बेहद संवेदनशील हैं।

उन्होंने जहानपुरा का उदाहरण प्रस्तुत किया जहां पहले 69 हिन्दू परिवार थे किन्तु आज एक भी नहीं है। इस पूरे मामले को प्रशासनिक जांच में सही पाया गया है। इसके प्रत्युत्तर में कांग्रेस नेता नीम अफजल का कहना है कि ये लोग रोजगार अथवा कारोबार के कारण पलायन कर रहे हैं।

वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि कारागार में बन्द गैंगस्टर मुकिमकला के गुण्डों द्वारा लूट और रंगदारी के कारण परिवारों को पलायन को मजबूर होना पड़ा। इस मामले का संज्ञान लेते हुए मानव अधिकार आयोग ने भी यू पी सरकार को नोटिस जारी कर के एक सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

उधर भाजपा की नौ सदस्यीय जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पलायन के पीछे संगठित अपराधी गिरोह है जो कि एक समानांतर सरकार की तरह कार्य कर रहा है और लाचार लोगों द्वारा पुलिस में शिकायत करने पर पुलिस भी एडजस्ट करने का सुझाव देकर अपनी कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है।

यह बात तो कांग्रेस भी मान रही थी और भाजपा भी मान रही है कि पलायन हुआ है स्थानीय प्रशासन भी इस तथ्य को स्वीकार कर रहा है तो इन आरोप प्रत्यारोपों और जाँचों के बीच पलायन केवल एक राजनैतिक उद्देश्य प्राप्ति का मुद्दा बनकर न रह जाए।

आम आदमी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है और हमारे नेता रोम के सम्राट नीरो की तरह अपनी-अपनी बाँसुरी बजाने में व्यस्त हैं। बेहतर होता कि पलायन के मूलभूत कारणों को जानकर उन्हें जड़ से खत्म करने की दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए जाते न कि खोखली बयानबाजी!

जिस आम आदमी के कीमती वोट की बदौलत आप सत्ता की ताकत एवं सुख को प्राप्त कर जीवन की ऊँचाइयाँ हासिल करते हैं वह स्वयं तो आजादी के 70 सालों बाद भी वहीं का वहीं खड़ा है।

हमारे प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि हमारे देश के एक अरब लोग ही हमारी असली ताकत हैं और यदि वे सब एक कदम भी आगे बढ़ाएँगे तो देश आगे बढ़ जाएगा लेकिन साहब ये लोग बढ़ें तो कैसे? कभी स्थानीय नेताओं द्वारा संरक्षित गुण्डे तो कभी प्रशासन,कभी स्थानीय सरकार तो कभी मौसम की मार ये सब उसे बढऩे नहीं देते।

सरकारें टैक्स तो वसूल लेती हैं लेकिन सुरक्षा और सुविधाएं दे नहीं पातीं। चाहे नेता हों या अफसर कोई भी अपनी कुर्सी से उठकर एक कदम आगे बढ़ाकर अपने-अपने क्षेत्र का निरीक्षण तक नहीं करता सारी सरकारी मशीनरी कागज़़ों पर ही चल रही है एक फाइल तो दक्षिणा के बिना आगे बढ़ती नहीं।

आज का सरकारी कर्मचारी चुनी हुई सरकार से तनख्वाह लेता है काम करने की और समानांतर सरकार चलाने वालों से काम न करने की (हालांकि सभी सरकारी अधिकारी ऐसे नहीं है कुछ ईमानदार भी हैं भले ही वे मुट्ठी भर हैं लेकिन शायद इन्हीं की बदौलत देश चल रहा है )।

अगर हमारे नेता और हमारे अफसर एक-एक कदम भी ईमानदारी से बढ़ाकर देश की सेवा के लिए उठा लें तो हमारा आम आदमी अनेकों कदम आगे चला जाएगा, उसका जीवन स्तर सुधर जाएगा। किन्तु जिस देश का आदमी पलायन कर के कदम पीछे की ओर ले जाने को मजबूर होता हो उस देश का भविष्य तो आप स्वयं ही समझ सकते हैं कहां जाएगा।
डॉ. नीलम महेंद्र