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गठबंधन करके चुनाव क्यों नहीं लड़ती कांग्रेस?

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गठबंधन करके चुनाव क्यों नहीं लड़ती कांग्रेस?
Why Congress not contest elections with alliance in uttar pradesh?
Why Congress not contest elections with alliance in uttar pradesh?
Why Congress not contest elections with alliance in uttar pradesh?

उत्तर प्रदेश कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी एवं राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने राज्य के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पार्टी को मजबूत करने को अपनी पहली प्राथमिकता बताते हुए कहा है कि अगला चुनाव धर्मनिरपेक्षता और साम्प्रदायिकता के बीच लड़ा जाएगा।

यहां यह उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी ने मधुसूदन मिस्त्री से उत्तरप्रदेश का प्रभार वापस लेकर गुलाम नबी आजाद को यह जिम्मेदार सौंपी है। ऐसे में राज्य के कांग्रेस जनों का उत्साहित होना स्वाभाविक है क्यों कि आजाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं तथा उनसे उम्मीद की जा सकती है कि उनके सुदीर्घ राजनीतिक अनुभव का लाभ कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक पुनरुत्थान में मददगार साबित होगा।

उत्तारप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस अपनी पूरी ताकत झोंकना चाहती है ताकि राज्य की राजनीतिक संभावनाओं को पार्टी के अनुरूप बनाया जा सके। हालाकि यहां पर यह कहना जरूरी है कि उत्तरप्रदेश की सत्ता में अपनी वापसी सुनिश्चित करने या राज्य में अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए कांग्रेस को सुनियोजित रणनीति के तहत काफी मेहनत करनी होगी।

उत्तरप्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक प्रदर्शन इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्य के कांग्रेस नेताओं ने आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का उपयोग किस हद तक किया।

क्योंकि राज्य की राजनीति में दूसरे सशक्त विकल्पों अर्थात् सपा व बसपा जैसे दलों के उदय के बाद राज्य में कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर होती गई है तथा यह भी कहा जा सकता है कि राज्य की राजनीतिक गतिविधियां भी काफी हद तक दिल्ली पर ही निर्भर रही हैं।

अर्थात् राज्य स्तर पर कांग्रेस पार्टी का मजबूत संगठनात्मक ढांचा तैयार करके संगठनात्मक, सृजनात्मक व आंदोलनात्मक गतिविधियां पिछले कई सालों से राज्य में न के बराबर ही देखने को मिली हैं। ऐसे में विधानसभा चुनाव के ऐन मौके पर मजबूत संगठन तैयार करके चुनावी व्यूह रचना तैयार करके चुनावी जंग जीतने के लिए पार्टी को काफी मेहनत करनी पड़ेगी तथा सिर्फ हवा हवाई दावों व बयानबाजी से कोई चमत्कार नहीं होने वाला है। वैसे कांग्रेस की एकला चलो की रणनीति भी पिछले कई चुनावों में पार्टी के लिए घाटे का सौदा साबित होती आई है।

महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव में यदि कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा गया होता तो राज्य की सत्ता से इस गठबंधन की विदाई की नौबत नहीं आई होती क्योंकि यह गठबंधन लगातार 15 साल तक राज्य की सत्ता में रहा लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन के दोनों घटक दलों कें बीच तालमेल गड़बड़ाने के कारण दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जिसका नतीजा यह हुआ कि राज्य में इस गठबंधन की सत्ता को कायम नहीं रखा जा सका।

इसी प्रकार अभी हाल ही में संपन्न असम विधानसभा चुनाव का भी यही हाल हुआ, जिसमें कांग्रेस व बदरुद्दीन अजमल की पार्टी के बीच गठबंधन होना था लेकिन तरुण गोगोई की हठधर्मिता के चलते यह गठबंधन नहीं हो पाया।

जिसका नतीजा राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के रूप में सामने आया। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि अब आगामी चुनावों में कांग्रेस गठबंधन या सीटों के तालमेल पर ध्यान दे ताकि समान विचारधारा वाले दलों के सहयोग से उसके राजनीतिक हित भी पूरे हो जाएं तथा संबंधित दल भी इससे लाभान्वित हों।

यदि कांग्रेस पार्टी द्वारा तालमेल की राजनीति पर गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया गया तो यह फार्मूला कांग्रेस के लिये राजनीतिक दृष्टि से काफी मूल्यवान साबित हो सकता है। क्यों कि सपा जैसी पार्टियों ने अगर खसकर यूपी की राजनीति में कांग्रेस पार्टी को खत्म हो चुकी मान लिया है, उससे यी भी साबित होता है कि राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों को इस पार्टियों द्वारा अभी भी गंभीरतापूर्वक नहीं लिया जा रहा है।

सुधांशु द्विवेदी