Home Delhi चीन का मुकाबला करने के लिए ​कितने तैयार हैं हम

चीन का मुकाबला करने के लिए ​कितने तैयार हैं हम

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चीन का मुकाबला करने के लिए ​कितने तैयार हैं हम
is india ready for war with china?
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प्रशान्त झा
भारत चीन सीमा पर विवाद एक बार फिर गहरा रहा है, भारतीय सीमा से सटी भूटान की भूमि पर चीन अपना दावा कर रहा है और चीनी अधिकारीयों और मीडिया की ओर से लगातार आ रही युद्व की धमकियां वातावरण को गंभीर बना रही हैं।

उधर, हिन्द महासागर में चीन ने अपनी एक और परमपरागत डीजल चालित पनडुब्बी तैनात कर दी है जिसे मिलाकर इस क्षेत्र में उसकी कुल तैनात पनडुब्बियों की संख्या सात हो गई है। ऐसे में दोनों देशों की वर्तमान सैन्य ताकत की तुलना करें तो स्थितियां चीन के पक्ष में नजर आती हैं।

चीन भारत को एक ओर हिमालय क्षेत्र से घेर रहा है तो दूसरी ओर हिन्द महासागर में उसकी मौजूदगी दिन पर दिन बढती जा रही है वहीं वह पाकिस्तान में इकनोमिक कोरिडोर के नाम पर अपने सैनिक भेज रहा है। ऐसे में भारत को सावधान तो रहना ही होगा एवं वर्तमान उपलब्ध संसाधनों से काम चलाते हुए उन्हें हमेशा पूरी तरह से तैयार भी रखना होगा।

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भारत की वायु सैना और नौसेना इस समय हथियारों और संसाधनों की भारी कमी से जूझ रही हैं जो अत्यंत चिन्ता जनक है। पुराने पड चुके युद्धक विमानों को सेवा से हटाए जाने के बाद वायु सैना के पास वर्तमान में कुल स्वीकृत 42 युद्धक विमान स्कवाड्रनों के मुकाबले सिर्फ 33 ही उपलब्ध हैं।

वहीं नौसेना में भारत के पास पुरानी पड चुकी 13 परम्परागत डीजल चालित पनडुब्बियों सहित 2 परमाणु पनडुब्बियां ही हैं जबकि चीन के पास 10 परमाणु पनडुब्बियों सहित 60 से अधिक पनडुब्बियां मौजूद हैं।

भारतीय वायु सैना ने गत वर्ष फ्रांस से 36 राफेल लडाकू विमान खरीदने का समझौता किया है जिनकी पहली खेप अगले तीन वर्षों में प्राप्त होगी जो 4+ पीढी का विमान है। भारत और रूस द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किए जाने वाले पांचवी पीढी के लडाकू विमान पर तकनीकी हस्तांतरण एवं कीमत को लेकर अभी तक कोई सहमति नहीं बन पाने से सौदा अभी अधरझूल में ही है एवं विकास के क्रम तक भी नहीं पहुंच पाया है।

ऐसे हालात में इन अति उन्नत रेडार को भी चकमा देने वाले स्टैल्थ विमानों को हासिल करने में अभी भी कम से कम 5 से 7 साल का समय और लगेगा। उधर भारतीय वायु सेना में 60 व 70 के दशक के पुराने पड चुके मिग 21 और मिग 27 विमानों को भी तेजी से सेवा से पृथक किया जाना है जिससे स्थिति और भी अधिक चिंताजनक हो जाएगी।

इनकी पूर्ति भारत स्वदेश निर्मित हल्के लडाकू विमान तेजस से कर रहा है लेकिन इनके उत्पादन में लगने वाला समय और इनकी सीमित क्षमता के कारण हमारी चिंता बढती जा रही हैै। इस कमी को पूरा करने के लिए भारत एक इंजन वाले विमानों की खरीद पर भी विचार कर रहा है जिसमें अमरीका का एफ 16 और स्वीडन का ग्रिपिन विमान प्रमुख दावेदार हैं।

भारत पूर्व में मध्यम श्रेणी के बहुउद्देशीय लडाकू विमान के चुनाव के समय इन दोनों ही विमानों को खारिज कर फ्रान्स के दो इन्जन वाले विमान राफेल को चुन चुका है परन्तु अब एक इन्जन वाली श्रेणी में ये प्रमुख दावेदार हैं।

एफ 16 का पहला संस्करण 1978 में अमरीकी वायू सेना में पहली बार शामिल किया गया था। यह विमान 1970 के दशक के डिजाइन पर आधारित है, हालांकि भारत को इसका आधुनिकतम संस्करण ब्लाक 70 पेश किया गया है परन्तु इस विमान में भविष्य में बहुत अधिक बदलाव व सुधार किए जाने संभव नहीं होंगे।

इसके विपरीत स्वीडन की कम्पनी साब का विमान ग्रिपिन एक नए डिजाइन पर आधारित प्लेटफार्म है जिसपर इस बार भारत को नए उन्नत ए.ई.एस.ए. रेडार और एवियोनिक्स के साथ पेश किया गया है जिसपर भविष्य की तकनीकि जरूरतों के आधार पर बदलाव किए जाने भी संभव हैं।

एक ओर जहां एफ 16 युद्ध की क्षमताओं पर जांचा परखा विमान है वहीं ग्रिपिन एक नया विमान है जो भविष्य में एफ 16 के मुकाबले अधिक समय तक सेवा में बना रह सकता है। दोनों ही कम्पनियां डिजाईन और इंजन खुद तैयार करती हैं व तकनीकि हस्तांतरण के साथ भारत में ही उत्पादन करने को तैयार हैं।

ऐसे में भारत को अपना विमान ए.एम.सी.ए. (एडवांस मल्टीरोल काम्बैट एयरक्राफ्ट तैयार करने में इंजन विकास और तकनीकी मदद भी मिल सकेगी और साझा विकास पर भी विचार किया जा सकता है।

वायू सैना की मारक क्षमता बनाए रखने हेतु हमें भारत में ही विकसित ​एक इंजन वाले हल्के लडाकू विमान तेजस के उत्पादन को बढा कर​ हम विमानों की कमी को कुछ कम कर सकते हैं व तेजस के उन्नत संस्करण को विकसित करने पर भी विचार कर सकते ​हैं। साथ् ही साथ हमें रूस से 5वीं पीढी के स्टैल्थ लडाकू विमान हासिल करने के बारे में तेजी से कदम उठाने होंगे।