Home Rajasthan Ajmer अजमेर में धूमधाम से मनाई गई महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती

अजमेर में धूमधाम से मनाई गई महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती

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अजमेर में धूमधाम से मनाई गई महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती
mahatma jyotiba phule 190th birth anniversary celebrations in ajmer
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अजमेर। देश में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती के उपलक्ष्य में मंगलवार को अनेक कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। रक्तदान, फल वितरण, दीपदान, वाहन रैली समेत कई कार्यक्रमों ने समूचे शहर को ज्योतिबा मय कर दिया। मुख्य समारोह अजमेर क्लब के समीप स्थ्ति महात्मा ज्योतिबा फुले सर्किल पर हुआ जिसमें समस्त माली समाज जुटा और ज्योतिबा फुले को याद किया।

मालूम हो कि फुले ने गरीब, पिछड़े, दलित एवं शोषित वर्ग के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था। माली समाज की इस महाल विभूति को पूरे देश ने उनकी जयंती पर याद किया।

गरीब और पिछडों के मसीहा थे महात्मा ज्योतिबा फुले

महात्मा ज्योतिबा फुले 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। देश में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले ने गरीब, पिछड़े, दलित एवं शोषित वर्ग के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

फुले का जन्म 1827 ई. में पुणे में हुआ था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। इसलिए माली के काम में लगे ये लोग ‘फुले’ के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा ने कुछ समय पहले तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढाई पूरी की।

इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक मशहूर समाजसेवी बनीं। दलित व स्‍त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किया। ज्‍योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे। ज्योतिबा की संत-महत्माओं की जीवनियां पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना चाहिए।

mahatma jyotiba phule 190th birth anniversary celebrations in ajmer
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स्त्री शिक्षा के प्रति रहे चिंतित

उन्‍होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया। उन्होंने इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1848 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया।

उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।

सत्यशोधक समाज की स्थापना

दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने ‘सत्यशोधक समाज’ स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे।

अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं- तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी

सीएम वसुंधरा राजे ने दी बधाई

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे ने महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती (11 अप्रेल) के अवसर पर प्रदेशवासियों को हार्दिक बधाई दी है।

अपने संदेश में राजे ने कहा कि महात्मा फुले देश में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। उन्होंने गरीब, पिछड़े, दलित एवं शोषित वर्ग के उत्थान तथा उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने तथा महिला शिक्षा में भी उनका अहम योगदान रहा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सभी महात्मा ज्योतिबा फुले के जीवन-आदर्शों से प्रेरणा लेकर सामाजिक समरसता की विरासत को अधिक समृद्ध करने में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं।

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