Home Breaking मन की बात : पीएम मोदी ने की पानी की बूंद बूंद बचाने की अपील

मन की बात : पीएम मोदी ने की पानी की बूंद बूंद बचाने की अपील

0
मन की बात : पीएम मोदी ने की पानी की बूंद बूंद बचाने की अपील
mann ki baat : protecting water and forest is our duty says pm modi
mann ki baat : protecting water and forest is our duty says pm modi
mann ki baat : protecting water and forest is our duty says pm modi

नई दिल्ली। जंगल और पानी को बचाना हर एक व्यक्ति का दायित्व बताते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी ने रविवार को मन की बात कार्यक्रम के दौरान कहा कि आने वाले चार महीने बूंदबूंद पानी के लिए जल बचाओ अभियान के रूप में परिवर्तित करना है और हमें ऐसी फसलों को अपनाना होगा, जिनमें कम पानी का इस्तेमाल होता हो। मोदी ने कहा कि यह सिर्फ सरकारों का ही नहीं, राजनेताओं का ही नहीं, यह जन-सामान्य का भी काम है।

अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने सूखे की समस्या के स्थायी समधान और खेती में सूक्ष्म सिंचाई एवं प्रौद्योगिकी के उपयोग के महत्व को भी रेखांकित किया। मोदी ने देश में खेल एवं खिलाड़ियों के लिए माहौल बनाने और ओलंपिक में जाने वाले खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने की भी चर्चा की।

उन्होंने सीबीएसई 12वीं बोर्ड परीक्षा में सफल छात्रों को बधाई दी तथा छात्रों एवं अभिभावकों से नकारात्मकता से बचने की सलाह दी। मोदी ने 21 जून को योग दिवस एवं आरोग्य में योग एवं स्वच्छता के महत्व को भी रेखांकित किया और जनधन योजना के माध्यम से कैशलेस सोसइटी की ओर बढ़ने की पहल का जिक्र किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं देशवासियों को भी कहता हूं कि जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर, इन चार महीनों में हम तय करें, पानी की एक बूंद भी बर्बाद नहीं होने देंगे। अभी से प्रबंध करें, पानी बचाने की जगह क्या हो सकती है, पानी रोकने की जगह क्या हो सकती है। ईश्वर तो हमारी जरूरत के हिसाब से पानी देता ही है, प्रकृति हमारी आवश्यकता की पूर्ति करती ही है, लेकिन हम अगर बहुत पानी देख करके बेपरवाह हो जाए और जब पानी का मौसम समाप्त हो जाए, तो बिना पानी परेशान रहें, तो ये कैसे चल सकता है?

उन्होंने कहा कि और ये कोई पानी मतलब सिर्फ किसानों का विषय नहीं है। ये गांव, गरीब, मजदूर, किसान, शहरी, ग्रामीण, अमीर गरीब। हर किसी से जुड़ा हुआ विषय है और इसलिए बारिश का मौसम आ रहा है, तो पानी ये हमारी प्राथमिकता रहे। मोदी ने कहा कि गर्मी बढ़ती ही चली जा रही है। आशा करते थे, कुछ कमी आएगी, लेकिन गर्मी बढ़ती ही जा रही है। बीच में ये भी खबर आ गई कि शायद मानसून एक सप्ताह विलम्ब कर जाएगा, तो चिंता और बढ़ गई। करीब करीब देश का अधिकतम हिस्सा गर्मी की भीषण आग का अनुभव कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि पारा आसमान छू रहा है। पशु हो, पक्षी हो, इंसान हो, हर कोई परेशान है।

पर्यावरण के कारण ही तो ये समस्याएं बढ़ती चली जा रही हैं। जंगल कम होते गए, पेड़ कटते गए और एक प्रकार से मानवजाति ने ही प्रकृति का विनाश करके स्वयं के विनाश का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उन्होंने कहा कि 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस है। पूरे विश्व में पर्यावरण के लिए चर्चाएं होती हैं, चिंता होती है। इस बार संयुक्त राष्ट्र ने विश्व पर्यावरण दिवस पर वन्यजीव के कारोबार पर कतई बर्दाश्त नहीं करने के रूख को विषय बनाया है। इसकी तो चर्चा होगी ही होगी, लेकिन हमें तो पेड़-पौधों की भी चर्चा करनी है, पानी की भी चर्चा करनी है, हमारे जंगल कैसे बढ़ें।

मोदी ने कहा कि आपने देखा होगा, पिछले दिनों उत्तराखण्ड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर – हिमालय की गोद में, जंगलों में जो आग लगी, आग का मूल कारण ये ही था कि सूखे पत्ते और कहीं थोड़ी सी भी लापरवाही बरती जाए, तो बहुत बड़ी आग में फैल जाती है और इसलिए जंगलों को बचाना, पानी को बचाना – ये हम सबका दायित्व बन जाता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि पिछले दिनों मुझे अधिक सूखे की स्थिति वाले 11 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ विस्तार से बातचीत करने का अवसर मिला जिनमें उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा जैसे राज्य शामिल थे। मैं सभी सूखा प्रभावित राज्यों की एक ही बैठक कर सकता था, लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया। मैंने हर राज्य के साथ अलग अलग बैठक की। एक-एक राज्य के साथ करीब करीब दो-दो, ढाई-ढाई घंटे बिताए, राज्यों को क्या कहना है, उनको बारीकी से सुना।

उन्होंने कहा कि कई राज्यों ने बहुत ही उत्तम प्रयास किए हैं, पानी के संबंध में, पर्यावरण के संबंध में, सूखे की स्थिति से निपटने के लिए, पशुओं के लिए, प्रभावित लोगों के लिए और एक प्रकार से पूरे देश के हर कोने में, किसी भी दल की सरकार क्यों न हो, ये अनुभव आया कि इस समस्या की, लम्बी अवधि की परिस्थिति से, निपटने के लिए स्थायी समाधान क्या हों, उपचार क्या हो, उस पर भी ध्यान था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक प्रकार से मेरे लिए वह सीखने वाला अनुभव भी था और मैंने तो मेरे नीति आयोग को कहा है कि जो सर्वश्रेष्ठ पहल हैं, उनको सभी राज्यों में कैसे लिया जाए, उस पर भी कोई काम होना चाहिए। कुछ राज्यों ने, खास करके आन्ध्र ने, गुजरात ने प्रौद्योगिकी का भरपूर उपयोग किया है। मैं चाहूंगा कि आगे नीति आयोग के द्वारा राज्यों के जो विशेष सफल प्रयास हैं, उसको हम और राज्यों में भी पहुंचाए।

मोदी ने कहा कि ऐसी समस्याओं के समाधान में जन-भागीदारी एक बहुत बड़ी सफलता का आधार होती है और उसमें अगर सटीक योजना हो, उचित प्रौद्योगिकी का उपयोग हो और समय-सीमा में व्यवस्थाओं को पूर्ण करने का प्रयास किया जाए तो उत्तम परिणाम मिल सकते हैं, ऐसा मेरा विश्वास है।

उन्होंने कहा कि सूखा प्रबंधन को लेकर, जल संरक्षण को ले कर, बूंद बूंद पानी बचाने के लिए, क्योंकि मैं हमेशा मानता हूं, पानी परमात्मा का प्रसाद है, एक बूंद भी बर्बाद हो, तो हमें पीड़ा होनी चाहिए और इसलिए जल-संचय का भी उतना ही महत्व है, जल-संरक्षण का भी उतना ही महत्व है, जल-सिंचन का भी उतना ही महत्व है और इसीलिए तो ‘हर बूंद अधिक फसल’ और सूक्ष्म सिंचाई की पहल को आगे बढ़ाया है अर्थात कम से कम पानी में होने वाली फसल।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अब तो खुशी की बात है कि कई राज्यों में हमारे गन्ने के किसान भी सूक्ष्म सिंचाई का उपयोग कर रहे हैं, कोई ड्रिप सिंचाई का उपयोग कर रहा है। मैंने राज्यों के साथ बैठक की, तो कुछ राज्यों ने पैडी के लिए भी सफलतापूर्वक ड्रिप सिंचाई का प्रयोग किया और उसके कारण उनकी पैदावार भी ज्यादा हुई, पानी भी बचा और मजदूरी भी कम हुई।

इस संदर्भ में उन्होंने महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश, कर्नाटक और गुजरात, राजस्थान, झारखंड, तेलंगाना के सरकारी और निजी स्तर पर किए जा रहे प्रयासों का भी उल्लेख किया और कहा कि ये बहुत ही सुखद अनुभव है। मोदी ने कहा कि आने वाले चार महीने हम बूंद बूंद पानी बचाए। इस बार जब हम दीवाली मनाए, तो इस बात का आनंद भी लें कि हमने कितना पानी बचाया, कितना पानी रोका। आप देखिए, हमारी खुशियां अनेक गुना बढ़ जाएंगी। मैं आशा करता हूं कि मीडिया पानी बचाने की दिशा में लोगों का मार्गदर्शन करे, अभियान चलाए।