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बाडे से बाहर भाजपा और कांग्रेस के कई प्रत्याशी

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सिरोही। भाजपा के कई प्रत्याशी अभी भी बाडेबंदी से बाहर हैं, बाकी के प्रत्याशियों को रणकपुर ले जाने की जानकारी मिली है, लेकिन पार्षद अभी भी इस बाडेबंदी से बाहर हैं। वैसे कांग्रेस के भी कुछ प्रत्याशी बाहर हैं, लेकिन लोढा के विश्वसनीय सभी प्रत्याशियों के लोढा के साथ होने की बात कही जा रही है, जिन लोगों ने टिकिट मिलने से पहले ही बगावती तेवर दिखा दिए थे टिकिट देने के बाद भी ऐसे प्रत्याशियों को  कांग्रेस ने अपनी बाडेबंदी से दूर ही रखा है।

भाजपा में बगावत के तेवर 22 नवम्बर की शाम को दिखने लगे थे। सबसे पहले सारणेश्वर दरवाजे के पास भाजपा के दो प्रत्याशियों ने उन्हें साथ लेने आने वाले दो नेताओं को आंखें तरेर दी।इनमें से एक खुदको सभापति का दावेदार मान रहे हैं और बताया जा रहा है पार्षदों की हाॅर्स ट्रेडिंग के लिए इन पर शहर के प्रमुख व्यवसायी अपना दाव खेल रहे हैं। फिर एक के बाद एक पांच प्रत्याशियों ने विधायक देवासी और देवल को खाली हाथ लौटाने लगे। इधर, अब अपनी साख बचाने के लिए भाजपा यह दावा कर रही है कि इनमें से तीन जने मुंडारा में ओटाराम देवासी के पास पहुंच गए हैं, वहीं संयम लोढा कांग्रेस के पार्षदों को सिरोही में रखा हुआ है। वैसे इस बाडेबंदी में एक सहूलियत दी हुई है कि सभी प्रत्याशी कम से कम आज तक अपने मोबाइल का इस्तेमाल कर सकते हैं।

भाजपा में तीन गुट
कांग्रेस के पास न सत्ता है और न ही उसके प्रति कोई लालयित है, ऐसे में कांग्रेस में सभापति पद के दावेदारों के नाम सीमित ही हैं, वहीं भाजपा में आधे दर्जन से ज्यादा प्रत्याशी सभापति पद के दावेदार हैं। कांग्रेस ने टिकिट वितरण में सिरोही में एक होशियारी दिखाई। आमतौर पर जो लोग सिरोही में संयम लोढा के विरोधी माने जाते थे, वे सभी इस बार टिकिट लेकर चुनाव लड रहे हैं। राजेन्द्र सांखला की पत्नी उज्जवल सांखला वार्ड संख्या20 से तो प्रवीणसिंह चैहान वार्ड संख्या 16 से कांग्रेस उम्मीदवार बनाए गए है। वहीं सभापति जयश्री राठौड को टिकिट नहीं मिलने से वह वार्ड बीस से निर्दलीय उम्मीदवार हैं। वहीं भाजपा में फिलहाल तीन गुट हैं।

अगर शहर के हिसाब से बात करें तो पैलेस रोड से सारणेश्वर मंदिर के बीच का इलाका एक व्यवसायी गुट के कब्जे में हैं, पैलेस रोड से अम्बेडकर सर्किल तक का इलाका कुछ हद तक निष्पक्ष और भाजपा के जिले के सबसे बडे जनप्रतिनिधि के विश्वस्तों के पास हैं, वहीं अम्बेडकर सर्किल से शहर के दक्षिणी छोर के इलाके में तीसरा गुट सक्रिय है। तीनों ही गुट बाकी दो गुटों को चित करने के मूड में हैं। हालात यह हो गए हैं कि एक गुट के सभापति पद के प्रत्याशी को दूसरे गुट के पार्षद पद के प्रत्याशी समर्थन देने को तैयार नहीं हैं। सिरोही में भाजपा पर वर्चस्व की लडाई के लिए यह लोग ये जरूरी मान रहे हैं कि उन्हीं के गुट का सभापति नगर परिषद में काबिज होवे।

इधर, कांग्रेस ने यहां पर पिछले जिला परिषद और सिरोही पंचायत समिति की रणनीति खेलते हुए यह दांव फेका है कि उसके पास जितने पार्षद कम पड रहे हैं, वो कमी जो भी पूर्ति कर देगा वही सभापति पद का उम्मीदवार होगा। यह रणनीति दो बार कारगर रही सिरोही नगर परिषद में कारगर रहती है या नहीं यह 26 को पता चलेगा। वहीं भाजपा में जातियों की लडाई छिड गई है, वहां एक जाति को अपना वजूद बचाने के लिए दूसरी जाति के सभापति पद के उम्मीदवार को पटखनी देनी होगी और इसी की खींचतान चल रही है। भाटकडा क्षेत्र और नयावास क्षेत्र के भाजपा पार्षद यह तय करेंगे कि शहर में भविष्य में भाजपा पर कौन आधिपत्य रखेगा और किस गुट का राजनीतिक भविष्य अंधकारमय होगा।

होटल व्यवसाइयों की जंग
यूं देखा जाए तो सिरोही में सभापति के जो तीन प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं, वो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से होटल व्यवसाय से जुडे हुए हैं। इत्तेफाक यह भी है कि इन लोगों के इन होटलों में किसी न किसी  तरह से अनियमित निर्माण के आरोप भी लगते रहे हैं। इनकी होटलों पर उंचाई, निर्माण क्षेत्र आदि को लेकर विवाद होने का आरोप गाहे-बगाहे लगा ही है।

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