Home UP Azamgarh नेताजी सुभाषचंद्र बोस के ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन का निधन

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन का निधन

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नेताजी सुभाषचंद्र बोस के ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन का निधन
Netaji Subhash Chandra Bose's driver-guard Colonel Nizamuddin dies at age 117
Netaji Subhash Chandra Bose's driver-guard Colonel Nizamuddin dies at age 117
Netaji Subhash Chandra Bose’s driver-guard Colonel Nizamuddin dies at age 117

आजमगढ़। आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापक सुभाषचंद्र बोस के चालक 117 वर्षीय ‘कर्नल’ निजामुद्दीन का सोमवार सुबह निधन हो गया। इनका असली नाम सैफ़ुद्दीन था और इनकी मृत्यु आजमगढ़ के मुबारकपुर इलाके में अपने घर पर हुई है।

पिछले कुछ दिनों से उनकी तबियत खराब चल रही थी और सोमवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। निजामुद्दीन के अनुसार नेताजी से उनकी पहली मुलाक़ात सिंगापुर में हुई थी। जहां आज़ाद हिन्द फ़ौज की भर्ती चल रही थी।

‘कर्नल’ की उपाधि उन्हें आज़ाद हिंद फ़ौज के संस्थापक और भारतीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुभाषचंद्र बोस ने दिया था। ‘कर्नल’ निजामुद्दीन ने दावा किया था कि जब वे बर्मा में सुभाष चंद्र बोस के ड्राइवर थे तब नेताजी पर जानलेवा हमला हुआ था।

2014 के आम चुनावों के दौरान वाराणसी में अपने प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी निजामुद्दीन को स्टेज पर बुलाकर उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया था। वर्ष 2015 में सुभाष चंद्र बोस की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी भी निजामुद्दीन से मिलने आजमगढ़ गई थीं।

कर्नल निजामुद्दीन ने सोमवार तड़के चार बजे 117 साल की उम्र में अंतिम सांस ली। उनके छोटे बेटे मोहम्मद अकरम ने बताया कि वह काफी समय से बीमार चल रहे थे। कर्नल निजामुद्दीन मुबारकपुर के ढ़कवा गांव के रहने वाले थे। उन्हें नेता जी का बेहद विश्वसनीय अंगरक्षक माना जाता था और वह पूरे दस सालों तक उनके साथ अहम गतिवधियों के दौरान साथ रहे।

कर्नल निजामुद्दीन की अहमियत का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वह विभिन्न राष्ट्रों के शासकों, सेनानायकों और विशिष्ट व्यक्तियों की नेताजी से मुलाकात के दौरान उनके साथ रहे। इनमें जर्मनी के तानाशाह हिटलर भी शामिल हैं।

भारत की आजादी के लिए सहयोग मांगने को लेकर नेताजी ने हिटलर से मुलाकात की थी, तब कर्नल निजामुद्दीन भी उनके साथ थे। कर्नल निजामुद्दीन लगभग 24-25 वर्ष की उम्र में अपनी मां को बिना बताये पिता के पास घर से भागकर सिंगापुर चले गए थे।

वहीं कैण्टीन में काम करने के दौरान उन्हे आजाद हिन्द फौज के लिए नौजवानों की भर्ती की जानकारी मिली और इसके बाद वह इस फौज का अहम हिस्सा बन गए। इसके बाद उन्होंने टोकियो, जापान, नागासाकी, हिरोशिमा, वियतनाम, थाईलैण्ड, कम्बोडिया, मलेशिया का दौरा भी नेताजी के साथ किया और विभिन्न गोपनीय प्रोजेक्ट का हिस्सा रहे।

कर्नल निजामुद्दीन के मुताबिक 18 अगस्त 1945 को जिस समय नेताजी के मौत की खबर रेडियो पर चली, उसे वह नेताजी के साथ ही बैठकर वर्मा के जंगल में सुन रहे थे।

इसके बाद उन्होंने 20 अगस्त 1947 को नेताजी को बर्मा में छितांग नदी के पास आखिरी बार नाव पर छोड़ा था। इसके बाद उनकी नेताजी से मुलाकात नहीं हुई। लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान तब भाजपा के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने कर्नल के पैर छूकर उनका आशीर्वाद भी लिया था।