
नाडोल।। लोकमान्य संत वरिष्ठ प्रवर्तक शेरे राजस्थान रूपमुनि महाराज ने कहा कि पूर्व में उपार्जीत कर्म को भाग्य कहते हैं। भाग्य अर्थात होनहार जीवन की घटनाओं को घटित करने वाला अदृश्य तल। सर्वत्र भाग्य ही देता है पुरुषार्थ नहीं। भाग्य की परिभाषा गढ़ते हुए उन्होंने कहा कि जो आकाश में विहार करता है अधंकार का नाश करता है हजार किरणों को धारण करता है।…