
नाडोल। लोकमान्य संत वरिष्ठ प्रवर्तक शेरे राजस्थान रूपमुनि महाराज ने कहा कि त्याग करने योग्य एवं ग्रहण करने योग्य वस्तु के ज्ञान को विवेक कहते हैं विवेक एक स्वाभाविक निर्मल नेत्र है। विवेक के बिना ज्ञान नहीं होता है। विवेक गुरू तरह कृत्य व अकृत्य का मार्ग दिखाता है। वे मुक्ता मिश्री रूपसुकन दरबार में रविवार को आयोजित धर्मसभा मे प्रवचन कर रहे थे।….