Home Business अब मार्च की बजाय दिसम्बर तक हो सकता है वित्त वर्ष

अब मार्च की बजाय दिसम्बर तक हो सकता है वित्त वर्ष

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अब मार्च की बजाय दिसम्बर तक हो सकता है वित्त वर्ष
PM Modi pitches for jan-dec financial year : FY change with GST may create additional
PM Modi pitches for jan-dec financial year : FY change with GST may create additional
PM Modi pitches for jan-dec financial year : FY change with GST may create additional

नई दिल्ली। केन्द्र की मोदी सरकार ने आम बजट को लेकर वर्षो पुरानी चली आ रही परंपरा में बदलाव किया था। भाजपा सरकार ने आम बजट की तारीख बदल दी थी एवं रेल बजट को भी आम बजट के साथ पेश करने की नई परंपरा शुरू की गई।

अब मोदी सरकार की नजर वित्त वर्ष की तारीख बदलने पर है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात के संकेत नीति आयोग की प्रशासनिक सभा की बैठक में दिए।

रविवार को हुई बैठक के समापन में मोदी ने कहा कि वित्त वर्ष जनवरी से दिसम्बर करने को लेकर सुझाव आए है। उन्होंने राज्यों से इस बारे में पहल करने की अपील की।

बाद में इसके बारे में पूछे जाने पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष अऱविंद पनगढ़िया ने कहा कि अभी प्रधानमंत्री ने जिक्र किया है, अभी इसे लागू करने के लिए कोई समय-सीमा या विस्तार से योजना नहीं बनायी गयी है।

वैसे पनगढिया ने ये भी कहा कि फसल के मौसम को देखते हुए वित्त वर्ष के स्वरूप में बदलाव की सिफारिश है। मोदी का ये मत ऐसे समय में आया है जब वित्त वर्ष के नए स्वरुप को खंगालने वाली शंकर आचार्य समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है।

हालांकि अभी समिति की रपट सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन मोदी की बातों से यही समझा जा सकता है कि समिति तारीख बदलने के पक्ष में है। यदि समिति के सुझाव पर अमल हुआ तो वित्त वर्ष की शुरुआती और अंतिम तारीख बदल जाएगी। देश में वित्त वर्ष, कैलेडेंर वर्ष से इतर होता है।

वित्त वर्ष दो कैलेंडर सालों में में फैला होता है। इसकी शुरुआत पहले कैलेडेंर वर्ष में 1 अप्रैल से होती है जबकि अंत अगले वर्ष 31 मार्च को। मसलन, वित्त वर्ष 2017-18 की शुरुआत 1 अप्रैल 2017 को हुई है जबकि अंत 31 मार्च 2018 को होगी। दूसरी ओर कैलेंडर वर्ष 1 जनवरी से शुरु होकर 31 दिसम्बर को खत्म होता है।

आर्थिक गतिविधियों जैसे बजट और कंपनियों के वित्तीय नतीजों में वित्त वर्ष का इस्तेमाल होता है। वित्त वर्ष की तारीख बदलने के पीछे कई मुद्दों पर विचार किया गया है, मसलन केंद्र और राज्य सरकार की खर्च और आमदनी का सही अनुमान लगाना।

अलग-अलग फसली सत्र पर असर। वित्त वर्ष का कामकाज के सत्र से संबंध। टैक्स व्यवस्था और प्रक्रिया। सांख्यिकी और आंकड़ों का संग्रहण। बजट से जुड़े विधायी कार्य को पूरा करने के लिए कार्यपालिका की सहूलियत इत्यादि।

देश में दो कैलेंडर वर्ष में वित्त वर्ष की व्यवस्था 1867 में शुरु की गयी थी। उसके पहले वित्त वर्ष की शुरुआत पहले कैलेडर वर्ष में 1 मई को शुरु होती थी और खत्म अगले कैलेंडर वर्ष के 31 अप्रैल को।

1984 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने वित्त वर्ष की व्यवस्था में बदलाव की संभावनाएं खंगालने और नयी व्यवस्था के बारे में सिफारिश देने के लिए एल के झा कमेटी का गठन किया।

कमेटी ने मानसून के असर को देखते हुए वित्त वर्ष की शुरुआत जनवरी से शुरु करने की सिफारिश की थी, यानी कैलेंडर वर्ष और वित्त वर्ष के बीच कोई अंतर नहीं रखना।

हालांकि, कमेटी ने ये भी सुझाव दिया कि अगर व्यावहारिक दिक्कत हो तो वित्त वर्ष की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं किया जाए, वैसे तत्कालीन सरकार ने व्यवस्था में किसी तरह के फेरबदल से इंकार कर दिया।

वैसे बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार वित्तीय परम्पराओं में बदलाव करने के लिए जानी जाती रही है। यदि वाजपेयी सरकार (1999-2004) के दौरान आम बजट पेश करने का समय शाम बजे से बदलकर सुबह 11 कर दिया गया तो मोदी सरकार ने फरवरी के आखिरी कार्यदिवस के बजाए पहले कार्यदिवस को बजट पेश करने का फैसला किया था।

दुनिया के कई देशों में वित्त वर्ष और कैलेंडर वर्ष मे कोई फर्क नहीं होता, जबकि कुछ देशों में अलग-अलग तारीख है। मसलन, अमेरिका में वित्त वर्ष 1 अक्टूबर से शुरु होकर अगले वर्ष 30 सितम्बर को खत्म होता है तो ब्रिटेन और जापान में भारत की तरह की पहली अप्रैल से 31 मार्च तक वित्त वर्ष चलता है।