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संसद में विदाई भाषण : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कही मन की बात

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संसद में विदाई भाषण : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कही मन की बात
president pranab mukherjee farewell speech in parliament
president pranab mukherjee farewell speech in parliament
president pranab mukherjee farewell speech in parliament

नई दिल्ली। बतौर राष्ट्रपति 25 जुलाई को पद छोड़ने जा रहे मुखर्जी ने रविवार को संसद के सेंट्रल हाल में अपने विदाई समारोह में बेबाकी से बोले और सत्ता पक्ष और विपक्ष को नसीहत का पाढ भी पढाया। पांच साल राष्ट्रपति के रूप में अपने अनुभव की कई बाते सदन में खुलकर शंयर कीं।

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने कहा कि कानून बनाने से पहले उसकी गहन जांच-परख होनी चाहिए और उस पर व्यापक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। मुखर्जी ने इस बात को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया कि कानून बनाने के मामले में संसद में दिया जाने वाला समय लगातार घटता जा रहा है।

मुखर्जी ने कहा कि प्रशासनिक जटिलताओं के मद्देनजर, कानून बनाने की प्रक्रिया गहन जांच पड़ताल और विचार-विमर्श वाली होनी चाहिए। समितियों में समीक्षा, सदन में खुले में होने वाली बहस का विकल्प नहीं हो सकती।

उन्होंने कहा कि जब संसद कानून बनाने में अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर पाती या बिना बहस के कानून बना देती है तो वह लोगों द्वारा उसे दिए गए विश्वास को तोड़ देती है।

संसदीय कार्यवाही में बाधा से विपक्ष को अधिक नुकसान

बतौर राष्ट्रपति प्रणब ने अपने भाषण में कहा कि एक सांसद रहने के दौरान उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि संसदीय कार्यवाही में बाधा से सरकार के बजाए विपक्ष का अधिक नुकसान होता है।

अपने अनुभवों को याद करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि उन दिनों संसद के दोनों सदन सामाजिक एवं वित्तीय विधेयकों पर गर्मजोशी से भरे वाद-विवाद से गुलजार रहते थे। मुझे सत्ता पक्ष और विपक्ष में बैठकर घंटों और दिनों दिग्गजों के भाषण सुनने के साथ इस जीवंत संस्थान की आत्मा से जुड़ाव महसूस होता था। मैंने बहस और असहमति के वास्तविक महत्व को समझा था।

संसद के केंद्रीय हाल में हुए अपने विदाई समारोह में मुखर्जी ने कहा कि मुझे अहसास हुआ था कि सदन की कार्यवाही में बाधा से विपक्ष को सरकार से अधिक नुकसान होता है क्योंकि इससे जनहित के मुद्दों को उठाने का मौका नहीं मिलता।

उन्होंने कहा कि उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू की इस बात को आत्मसात कर लिया था कि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था बदलाव और निरंतरता के सिद्धांत को मूर्त रूप देती है।

राष्ट्रपति ने अपने भाषण में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) का जिक्र करते हुए कहा कि इस साल पहली जुलाई को इस कर प्रणाली का अमल में आना भारतीय संघवाद और भारतीय संसद की परिपक्वता की शानदार मिसाल है।

मुखर्जी ने रूपांतरणीय बदलावों के लिए मोदी की प्रशंसा की

राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ‘देश में किए गए रूपांतरणीय बदलावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि उन्हें मोदी की सलाह और सहयोग से बेहद लाभ पहुंचा। बीते पांच सालों में, मेरी प्रधान जिम्मेदारी संविधान के संरक्षक के रूप में काम करने की थी। जैसा कि मैंने शपथ ली थी, उसी के अनुरूप संविधान को केवल शब्दों में नहीं बल्कि उसकी आत्मा की हिफाजत की पूरी कोशिश की।

मुखर्जी ने कहा कि और, इस काम में मुझे प्रधानमंत्री मोदी द्वारा हर कदम पर दी गई सलाह और सहयोग से बेहद मदद मिली। राष्ट्रपति ने कहा कि ऊर्जा और जोश के साथ वह (मोदी) देश में रूपांतरणीय बदलाव ला रहे हैं। मुझे उनका गर्मजोशी और विनम्रता से भरा व्यवहार हमेशा याद रहेगा।

अपरिहार्य परिस्थितियों में ही करें अध्यादेश का इस्तेमाल

निवर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने रविवार को कहा कि सरकार को कोई कानून लाने के लिए अध्यादेश के विकल्प से बचना चाहिए और सिर्फ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही इसका इस्तेमाल होना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि मेरा दृढ़तापूर्वक मानना है कि अध्यादेश का इस्तेमाल सिर्फ अपरिहार्य परिस्थितियों में ही करना चाहिए और वित्त मामलों में अध्यादेश का प्रावधान नहीं होना चाहिए।

25 जुलाई को राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत्त हो रहे प्रणब मुखर्जी ने जोर देकर कहा कि अध्यादेश का रास्ता सिर्फ ऐसे मामलों में चुनना चाहिए, जब विधेयक संसद में पेश किया जा चुका हो या संसद की किसी समिति ने उस पर चर्चा की हो।

मुखर्जी ने कहा कि अगर कोई मुद्दा बेहद अहम लग रहा हो तो संबंधित समिति को परिस्थिति से अवगत कराना चाहिए और समिति से तय समयसीमा के अंदर रिपोर्ट देने के लिए कहना चाहिए।

उल्लेखनीय है कि अध्यादेश जारी किए जाने के छह महीने तक इसकी वैधता बनी रहती है और उसके बाद यह स्वत: रद्द हो जाता है। सरकार को इसके बाद या तो इसकी जगह कानून पारित करना होता है या फिर से अध्यादेश जारी करना होता है।

देश की मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार शत्रु संपत्ति अध्यादेश पांच बार ला चुकी है, क्योंकि विपक्ष को इसके कुछ प्रावधानों पर आपत्ति है।

प्रणव ने ‘मार्गदर्शक’ इंदिरा गांधी को याद किया

प्रणव मुखर्जी ने देश के राष्ट्रपति के रूप में दिए गए अपने अंतिम भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपनी मार्गदर्शक (मेंटॉर) और ‘विशाल शख्सियत’ के रूप में याद किया। आपातकाल के बाद कांग्रेस की हार के बाद लंदन की एक रोचक घटना का जिक्र करते हुए प्रणव मुखर्जी ने कहा कि मेरे करियर को इंदिरा गांधी ने गढ़ा था जो एक विशाल हस्ती थीं। उनमें हालात जैसे होते थे, उन्हें उसी तरह बुलाने की हिम्मत थी।

उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद कांग्रेस और खुद की हार के बाद वह 1978 में लंदन गई थीं। मीडियाकर्मियों का जमावड़ा लगा हुआ था जो अपने आक्रामक तेवरों के साथ सवाल पूछने का इंतजार कर रहा था।

मुखर्जी ने लंदन की घटना को याद करते हुए कहा कि पहला सवाल (इंदिरा से) पूछा गया कि आपातकाल से आपको क्या लाभ मिला? मीडियाकर्मियों की आंख में सीधे देखते हुए उन्होंने सामान्य सधी हुई आवाज में कहा कि उन 21 महीनों में हम समाज के हर तबके को खुद से अलग करने में कामयाब रहे।

मुखर्जी ने कहा कि कुछ सेकेंड के सन्नाटे के बाद वहां हंसी का फव्वारा फूट पड़ा। उन्होंने कहा कि इसके बाद किसी ने भी आपातकाल पर कोई सवाल नहीं पूछा।