Home Delhi सब धर्म समान तो हजयात्रा पर सब्सिडी क्यो?

सब धर्म समान तो हजयात्रा पर सब्सिडी क्यो?

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सब धर्म समान तो हजयात्रा पर सब्सिडी क्यो?
why does govt of india provide travel subsidy to muslim haj pilgrims but not for pilgrimages of other religions?
why does govt of india provide travel subsidy to muslim haj pilgrims but not for pilgrimages of other religions?
why does govt of india provide travel subsidy to muslim haj pilgrims but not for pilgrimages of other religions?

भारतीय संविधान की विशेषताओं में एक बड़ी विशेषता धर्म निरपेक्षता संबंधी है। हमारा संविधान स्पष्ट रूप से यह आदेश देता है कि भारतीय लोकतंत्र में किसी भी धर्म अथवा जाति के साथ पक्षपात नहीं किया जाएगा। हमारे देश में सभी नागरिक समान है तो फिर धर्म और जाति के आधार पर उन में भिन्नता किस प्रकार हो सकती है?

एक सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह सभी नागरिकों से समान व्यवहार करे। पहली दृष्टि में सिद्धांत अत्यंत लुभावना दिखलाई पड़ता है, लेकिन अपने देश में स्थापित होने वाली सरकारों का प्रथम उद्देश्य यह होता है कि एक बार चुनाव जीत लेने के पश्चात सत्ता पर उनका एकाधिकार येनकेन प्रकारेण स्थापित हो जाए।

वे इस प्रकार के कानून बनाएं और प्रशासकीय तौर तरीके अपनाएं कि उनकी पार्टी निरंतर सत्ता में बनी रहे। हमारे यहां सत्ता दिलाने वाले हथियार का नाम वोट है। इसलिए एक बार सत्ता में आ जाने के पश्चात् कुछ ऐसा किया जाए कि उनकी सत्ता हाथ से सरक नहीं सके और वे लगातार हुकूमत का सुख भोगते रहें।

हमने लोकतंत्र की पद्धति को अपनाया है, इसलिए जब तक किसी पार्टी के पक्ष में वोटों की संख्या अधिक नहीं होती है तब तक वे सत्ता पर अपना अधिकार कायम नहीं कर सकते है। सभी के वोट प्राप्त करना तो सरल बात नहीं है, इसलिए कुछ ऐसा किया जाए कि मतदाता बार-बार उनकी और आकर्षित होता रहे।

इस कटु सत्य को कांग्रेस ने क्रियान्वित करके दिखला दिया। वे बहुमत का तो विश्वास प्राप्त नहीं कर सके, लेकिन पश्चिमी एशिया के तीनों अल्पमत घराने वालों को एक जुट करने में कसर नहीं छोड़ी। इनके सहारे देश के शासक बने रहने के लिए एक स्थाई मार्ग खोज लिया अल्पसंख्यकों की एकता उनके स्वयं के लिए तो सुरक्षा की गारंटी नहीं बन सकी, लेकिन कांग्रेसियों की सत्ता के लिए कवच बन गई।

इसे टिकाए रखने के लिए हर प्रकार के हथकंडों का उपयोग करते रहना उनकी एक मजबूरी बन गई। इसका जीता जागता उदाहरण हज यात्रा के नाम पर दिया जाने वाला अनुदान है। मुस्लिमों को काम मिले या न मिले, इसकी चिंता न करके उनकी धार्मिक आकांक्षाओं को शांत करने के लिए संविधान की हत्या करने का पाप तक कर डाला।

मुस्लिमों के जीवन की बुनियादी आवश्यकताएं पूर्ण हों या न हों, लेकिन हज यात्रा का झुनझुना उनके हाथों में पकड़ा दिया। उदारवादी अर्थ व्यवस्था का युग आते ही यह भांडा फूट गया। उदारीकरण व्यवस्था के तहत हज यात्रा पर दिए जाने वाले अनुदान पर इतने सवाल उठ खड़े हुए है कि अब सरकार के पास उसके बचाव की कोई गुंजाइश ही नहीं बची।

सरकारी स्तर पर इतनी बड़ी संख्या में उपलब्ध यात्रियों को जो कम से कम किराए में उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाएगा, उसका टेंडर स्वीकार कर लिए जाने का नियम अस्तित्व में आ गया। जो आर्थिक बोझ अब तक सरकार सहन करती थी, उसका स्थान कोई व्यापारिक इकाई लेने के लिए तैयार है तो फिर सरकार को इसमें हस्तक्षेप करने का सवाल ही कहां खड़ा होगा?

लेकिन वैश्वीकरण का युग प्रारंभ होते ही न केवल हज यात्रा, बल्कि धर्म के नाम पर चलाई जाने वाली अनेक दुकानों का युग समाप्त हो गया। इन सभी मामलों में हज यात्रा एक ऐसा पारस पत्थर था, जिसके माध्यम से पिछली सरकारें नोट और वोट का जमकर सौदा करती रही।

हज यात्रा के नाम पर होने वाले करोड़ों रुपए के इन घोटालों का न केवल विरोध करने में, बल्कि उसका पर्याय क्या हो सकता है, इस प्रकार का सुझाव देने में भी अब अनेक मुस्लिम बुद्धिजीवी इससे छुटकारा पाने के लिए सरकार पर न केवल दबाव बना रहे हैं, बल्कि ऐसे सुझाव प्रस्तुत कर रहे हैं, जिससे देश को करोड़ों रुपए की बचत हो सकेगी।

इन बुद्धिजीवियों ने जिन विकल्पों के सुझाव दिए हैं, उससे सरकार तो लाभान्वित होगी ही स्वयं यात्रियों को भी इसका भरपूर लाभ होगा। अनुदान के रूप में मुस्लिम समाज हज यात्रा के नाम पर जो अनुदान प्राप्त करता रहा है, वह आर्थिक रूप से तो एक सवाल है ही, लेकिन साथ-साथ धार्मिक कसौटी पर कितना खरा और नैतिक रूप से वैध है, यह सवाल भी अनेक लोगों के मन-मस्तिष्क में घूमता रहा है।

हज यात्रा जो करोड़ों रुपए के मुनाफे से जुड़ी रही है, उस पर अनेक सवाल राजनीतिक रूप से भी उठते रहे हैं। एक सवाल जो बारम्बार उठता है, वह यह कि जब धार्मिक मोर्चे पर इस मामले में होने वाले आर्थिक घोटाले नैतिक रूप से वैध नहीं है तो फिर इस कार्य में सरकार को भागीदार ही क्यों होना चाहिए। प्रति वर्ष हज यात्रा के अवसर पर इस प्रकार के सवाल उठते रहते हैं।

रमजान मास की समाप्ति के पश्चात हज यात्रा का कामकाज हमारे हज हाऊस में प्रारंभ हो जाता है। पाठकों को यह भी बतला दें कि एक समय जल मार्ग से भी लोग हज यात्रा पर रवाना होते थे, जब तक विश्व में आतंकवाद नहीं आया था, उस समय तक सुरक्षा की दृष्टि से यह यात्रा जोखिमदायी नहीं थी, लेकिन अनुभवों के आधार पर सऊदी सरकार ने अपने लिए जोखिमदायी मानकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया।

अरबी महीने की दस जिलहज के दिवस उक्त यात्रा सम्पन्न होती है। इतने लंबे समय तक सऊदी सरकार को व्यवस्था एवं सुरक्षा की दृष्टि से चौकन्ना रहना पड़ता है। अतएव विदेश से आए यात्री यदि स्वदेश शीघ्र लौट जाते हैं तो सऊदी सरकार अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाती है। इसलिए जलयान से होने वाली यात्रा को बंद करके अब केवल वायुयान के मार्ग से ही यात्रियों को प्रवेश दिया जाता है।

सऊदी सरकार तो अपने दायित्व से मुक्त हो जाती है, लेकिन विदेश से आए यात्री जब तक अपने गंतव्य स्थानों तक नहीं पहुंचते हैं, किसी न किसी अनहोनी घटना से हाजी भयभीत रहते हैं। इसलिए जलयान की तुलना में वायुयान ही उत्तम विकल्प है। अधिक किराए को कम कर देने की दृष्टि से भारत सरकार अपने यात्रियों को अनुदान भी देती है। लेकिन इस पवित्र यात्रा के लिए क्या सरकारी सहायता लेना धार्मिक रूप से वैध है? अब मुल्ला मौलवी प्राय: इस मुद्दे पर अपना मुंह नहीं खोलते हैं।

हज यात्रा चूंकि विदेश से जुड़ी हुई है, इसलिए भारत सरकार का विदेश मंत्रालय इस मामले में सभी दायित्वों के लिए उत्तरदायी होता है। प्रत्येक राज्य में केवल सरकारी मान्यता वाली हज कमेटियां ही नहीं होती है, बल्कि अनेक राज्यों की राजधानियों में हज हाऊस का निर्माण भी हो चुका है। यहां से जिन हाजियों का यात्रा के लिए चयन हो जाता है वे अपने निकट के विमानतल से जिद्दा के लिए रवाना हो जाते हैं। वहां से उन्हें मक्का ले जाने की व्यवस्था की जाती है। चूंकि मदीना में पैगम्बर मोहम्मद साहब का मकबरा यानी समाधि है, वहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

हर व्यक्ति को यह यात्रा पूर्ण करने के लिए 40 दिन की अवधि दी जाती है। इस महत्वपूर्ण यात्रा को सफल और सरल बनाने के लिए भारत सरकार कटिबद्ध रहती है। पिछले दिनों भारत सरकार के पूर्व अधिकारी सैयद मेहमूद जो वर्षों से इस यात्रा से जुड़े रहे हैं, उन्होंने इस यात्रा को सस्ती और सरल बनाने के मामले में कुछ मूल्यवान सुझाव प्रस्तुत किए हैं।

उनका कहना है कि भारत सरकार को चाहिए कि वह अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इस मामले में हवाई कम्पनियों से टेंडर आमंत्रित करे, क्योंकि यात्रियों की बड़ी संख्या इस मामले में उन्हें अधिक से अधिक अनुदान प्रदान कर सकती है। यात्रा संबंधी यह मामला तो पूर्णतय: व्यापारिक है। इसलिए यात्रियों की इतनी बड़ी संख्या के लिए अधिक से अधिक लाभ देने के लिए भला कौन तैयार नहीं होगा।

इस व्यवस्था से जहां हाजियों को आर्थिक लाभ होगा, वहीं भारत सरकार का सभी प्रकार का व्यय समाप्त हो जाएगा। अनेक देश अन्तर्राष्ट्रीय विमान सेवाओं के टेंडर प्रति वर्ष मंगवाकर अपने यात्रियों को अधिकतम लाभ पहुंचाते हैं। इस व्यवस्था के कारण भारत सरकार अपनी अनुदान राशि बचा सकेगी और अपने नागरिकों को इस पवित्र यात्रा के अवसर पर अधिकतम आर्थिक लाभ पहुंचा सकेगी। हज जैसा पवित्र त्योहार सरकारी परछाया से मुक्त हो सकेगा।

मुजफ्फर हुसैन