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सेवा भारती की श्रम साधना

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सेवा भारती की श्रम साधना

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हिंदू चिंतन या कहें कि प्राचीन सनातन चिंतन के अनुसार सेवा का मतलब निस्वार्थ भाव से, पूजा भाव से, कर्तव्य भाव से उन सभी को सहयोग करना है, जिन्‍हें कि सहायता की आवश्‍यकता है। स्वामी विवेकानंद भी सेवा का यही अर्थ समझाते हैं। वे कहते हैं कि कर्तव्य भाव का होना ही सेवा करना है।

दुर्भाग्यवश किसी न किसी वजह से जो लोग पीछे रह गए हैं, उनकी उन्नति के लिए, उन्हें आगे लाने के लिए एक साधन सेवा है। राष्‍ट्रीय स्‍वंयसेवक संघ आज सेवाभारती एवं अपने अन्‍य संगठनों के माध्‍यम से यही कार्य कर रहा है कि वह सेवा कार्य के अपने उद्देश्य से सेवित जन के मन में स्वाभिमान जगाने में सफल हो जाए, जिससे कि आज जो सेवा ले रहा है, वह जल्दी से जल्दी सेवा करने वाला बने, आज जो लेने के लिये हाथ आगे बढ़ा रहा है, वह आगे चलकर देने के लिए हाथ बढ़ाएं।

सेवा से सामाजिक समरसता समाज में लाना ही सेवा भारती का ध्येय है। सभी वर्गों में स्वदेश प्रेम, स्वलंबन व राष्ट्र भक्ति की भावना जागृत करना सेवाभारती का कार्य है। सेवा भारती समाज के सेवा कार्यों में बाल शिक्षा संस्कार केन्द्र महिला सिलाई संस्कार केन्द्र, कंप्यूटर केन्द्र, चिकित्सा वैन द्वारा चिकित्सा सुविधा, कोचिंग केन्द्र, महिला मंडली, झोला पुस्तकालय, निशुल्क विधि परामर्श केन्द्र तथा अन्य कई प्रकल्पों का संचालन कर रही है।

रा.स्‍व.संघ के सेवा कार्य का ही परिणाम है कि सेवा लेने वाले आगे चलकर अच्छे कार्यकर्ता बने हैं, स्‍वहित नहीं, परहित ही उनके जीवन का मूल मंत्र बन गया और वे अपना संपूर्ण जीवन पूर्णकालिक के रूप में दूसरे का हित करने में लगा रहे हैं। पुणे की स्वरूपवर्धिनी संस्था में गरीब परिवार की (जिनके माता-पिता दूसरों के घरों में काम कर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे) तीन छात्राएं एमकॉम, बीएएमएस, एमएससी-बीएड की डिग्री हासिल करने के बाद सेवा में लगीं।

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तीनों लड़कियों ने डिग्री पूरी करने के पश्चात सेवा का निश्चय किया और अरुणाचल में तीन साल तक पूर्णकालिक के रूप में वनवासी कल्याण आश्रम के तहत कार्य किया। मन में भावना यह थी कि समाज से हमें जो मिला, उसके बदले समाज को कुछ लौटाया जाए। ऐसे ही उदाहरण सारे देश में सामने आते हैं। केवल सेवित बन कर जीवन भर नहीं रहूंगा, स्वाभिमानी बनूंगा, स्वावलंबी बनूंगा, परिश्रमी बनूंगा, की भावना सेवा कार्य के माध्यम से सेवित जनों के मन में यहाँ जागृत की जा रही है।

सेवाभारती वर्तमान में ग्रामों को नशा मुक्त बनाने, अस्पृश्यता को दूर करने, शिक्षा के प्रसार, नवजातों की सेवा, वनवासी शिक्षा और सेवा, वृद्धों की सेवा जैसे अनेक कार्य कर रही है, जिसका परिणाम यह रहा कि समाज से विषमताओं को दूर करने में सेवाभारती को लगातार सफलता मिल रही है। मलिन बस्ती क्षेत्रों में समाज सेवा के काम काफी कठिन होते हैं। वह भी उन क्षेत्रों के बच्चों को सुधारने का काम जहां लोग शराब, जुऐ जैसी लतों से ग्रसित हैं।

इसके बावजूद सेवा भारती इन्हीं क्षेत्रों में रहकर वहां की महिलाओं तथा बच्चों को साक्षर तथा राष्ट्रवादी बनाने का काम कर रही है। सेवा भारती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से नर सेवा-नारायण सेवा को मूल मंत्र मानकर काम कर रही है। राष्ट्रीय स्तर पर सेवा भारती का कार्य 1978 में प्रारंभ हुआ। संस्था का पंजीकरण 2002 में करवाया गया। पूरे देश में सेवा भारती द्वारा एक लाख 57 हजार से अधिक सेवा प्रकल्प चलाए जा रहे हैं।

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अकेले मध्‍यप्रदेश में ही एक हजार से ज्‍यादा कार्य संचालित हो रहे हैं। इनके माध्यम से दलित, वंचित तथा समाज में उपेक्षित बच्चों एवं परिवारों के साथ तमाम लोगों के हित में कार्य किया जा रहा है। इस संगठन का एक सकारात्‍मक पक्ष यह भी है कि इससे जुड़कर अन्य संगठन भी आज सेवाकार्यों में लगे हैं। एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में राष्ट्रीय सेवा भारती के साथ 800 सेवा संस्थाएं संलग्न (संबद्ध) हैं, इनमें से करीब 40 प्रतिशत सेवा संस्थाएं ऐसी हैं, जो संघ की योजना या स्वयंसेवकों द्वारा नहीं, बल्कि अपनी प्ररेणा से कार्य कर रही हैं और सेवा भारती के साथ संलग्न हैं। ये संस्थाएं निस्वार्थ भाव से सेवा का उद्देश्य लेकर कार्य कर रही हैं।

राष्ट्रीय सेवा भारती के तहत आने वाली संस्थाएं करीब 70 हजार से अधिक सेवा कार्य कर रही हैं। इन संगठनों के अतिरिक्‍त संघ से संबंधित अन्य संगठनों विद्या भारती, विश्व हिंदू परिषद, वनवासी कल्याण आश्रम, सक्षम, आरोग्य भारती, राष्ट्र सेविका समिति, भारत विकास परिषद सहित अन्य संगठनों के सेवा विभाग भी सेवाभारती के माध्यम से सेवा कार्य कर रहे हैं। सभी को मिलाकर देश में कुल एक लाख,52 हजार,388 सेवा कार्य संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं।

सेवाभारती सेवा के मुख्यत: चार आयामों पर अपना विशेष जोर देती है- एक है शिक्षा, दूसरा है स्वास्थ्य, तीसरा है सामाजिक और चौथा है स्वावलंबन। इनके अलावा दो विषय और भी हैं, जिनका कार्य चार आयामों के साथ चलता है। एक है ग्राम विकास, दूसरा है गौ सेवा। राष्ट्रीय सेवा भारती भी इन्हीं के बारे में जानकारी, प्रशिक्षण, मार्गदर्शन करती है।

सेवा भारती के कार्यकर्ता जहां भी सेवा के लिए जाते हैं, वे वहां के स्‍थानीय लोगों के मन में अपने धर्म, संस्कृति, परंपरा के बारे में श्रद्धा का भाव जागृत करते हुए सेवा के माध्यम से उनकी उन्नति का मार्ग प्रशस्‍त करते हैं और उनके दुखों को दूर करने का प्रयास करते हैं। सच यही है कि विवेकानंद, राम कृष्ण परमहंस सहित अन्य महापुरुषों के वचनों के अनुसार पीड़ितों की सेवा करना भगवान द्वारा दिया गया अवसर है और पीड़ित को भगवान के रूप में देखना चाहिए।

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नर सेवा- नारायण सेवा, मानव सेवा- माधव सेवा या जैसे स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि ‘मैं उस प्रभु का सेवक हूं, जिसे अज्ञानवश मनुष्य कहते हैं, वह भगवान ही है।’ इसी मनुष्यरूपी भगवान की सेवा करना ही सेवाभारती का मूल ध्‍येय है, जिसपर कि वह अडिग है। सेवाभारती के लिए जीव सेवा व्यक्तिगत नहीं, संस्थागत या संगठन के स्‍वार्थ के लिए नहीं है और न ही सेवा के बदले सामने वालों से संगठन के स्‍तर पर कोई अपेक्षा ही रहती है।

सेवा भारती के स्‍वयंसेवक देशभर में आज अपने- अपने स्थानों पर सेवा कार्य में रत हैं। इनमें कुछ स्‍थानों पर छोटा कार्य है, कुछ स्‍थानों पर बड़े कार्य हो रहे हैं, लेकिन उद्देश्‍य सभी का एक है- भारत का संपूर्ण विकास और उत्‍थान। यहां यह भी जानना प्रासंगिक होगा कि सेवाभारती यूथ फॉर सेवा नाम से भी एक कार्यक्रम चला रही है। कर्नाटक से शुरू हुआ यह कार्य आज पूरे देश में चल रहा है।

इसका उद्देश्य यही है कि कॉलेज छात्र तथा पढ़ाई पूरी कर नौकरी कर रहे युवाओं को सेवा के साथ जोड़ा जा सके और उन्हें सेवा कार्य करने के लिये प्रेरित कर सकें। वर्तमान में हजारों युवा स्वयंसेवी ऐसे हैं जो इससे जुड़कर नियमित सेवा कार्य कर रहे हैं। कुछ रोज समय देते हैं, कुछ सप्ताह में एक दिन, कुछ माह में सात दिन, कुछ साल में एक माह का समय देते हैं।

वहीं कुछ स्वयंसेवी एक या दो साल की नौकरी से छुट्टी लेकर पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में किसी न किसी क्षेत्र में सेवा कार्य कर रहे हैं। दिल्ली, मध्यप्रदेश, पश्चिमी उत्तरप्रदेश, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र में यूथ फॉर सेवा प्रयोग के आधार पर कार्य चल रहे हैं, जिनमें कॉलेज विद्यार्थी कार्य कर रहे हैं। आज इसके श्रेष्ठ अनुभव सभी के सामने हैं, इसके माध्यम से देश का युवा वर्ग तेजी के साथ सेवा कार्यें से जुड़ रहा है।

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सेवा भारती इस संदर्भ में सेवा संगम के बाद आगे बढ़ते हुए श्रमसाधक संगम करने की दिशा में भी आगे बढ़ी है। देखा जाए तो सबको संगठित कर एक साथ लाना ऐसे श्रमसाधक संगमों का उद्देश्य है। एक स्थान पर एकत्रित होने से श्रम साधकों का विशाल दृश्य देखने को मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि इतनी संख्या में लोग हमारे लिए श्रमसाधक बनकर हमारी सेवा कर रहे हैं।

इसके अलावा इससे समस्त लोगों का एक- दूसरे के प्रति आत्मविश्वास, श्रद्धा और उत्साह बढ़ता है। वहीं ऐसे कार्यक्रमों से श्रम साधकों का गुणात्मक विकास भी होता है। सेवाभारती प्रत्येक पांच वर्ष में एक बार राष्ट्रीय स्तर पर सेवा संगम का आयोजन करती है, पहला सेवा संगम 2010 में आयोजित हुआ था। प्रांत स्तर पर भी पांच वर्ष में एक बार, जिला स्तर पर सेवा मिलन वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। अब सेवाभारती के रजतजयंती वर्ष के उपलक्ष्‍य में भोपाल का श्रमसाधक संगम आप सभी के समक्ष है।

: डॉ. मयंक चतुर्वेदी