Home Headlines शारदीय नवरात्र शुरू, प्रथम दिन शैलपुत्री की हो रही पूजा-अर्चना

शारदीय नवरात्र शुरू, प्रथम दिन शैलपुत्री की हो रही पूजा-अर्चना

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शारदीय नवरात्र शुरू, प्रथम दिन शैलपुत्री की हो रही पूजा-अर्चना
Shardiya Navratri starts, first day worshipping goddess shailputri
Shardiya Navratri starts,  first day worshipping goddess shailputri
Shardiya Navratri starts, first day worshipping goddess shailputri

देहरादून। शारदीय नवरात्र शुरू हो गये है। घट स्थापना के साथ ही लोग सुबह से ही मां दुर्गा की पूजा-अर्चना कर रहे है।

प्रदेश भर के मंदिरों में ब्रह्म मुहूर्त में साफ-सफाई के बाद ही विधि विधान से पूजा-अर्चना का क्रम शुरू हो गया है। नवरात्र के पहले दिन मंदिरों में मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैल पुत्री की लोग बड़े ही भक्ति भाव से आराधना कर रहे हैं।

नवरात्र में विशेषतौर पर महिलाएं घरों में कलश स्थापना के साथ ही नौ दिन का व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र में विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से जहां सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, वहीं भक्तों को सभी रोगों और कष्टों से भी मुक्ति मिलती है।

शास्त्रों के मुताबिक मां दुर्गा के अलग-अगल स्वरूप की आराधना का भी विशेष महत्व है और इसीलिए नवरात्रि के पावन पर्व पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है। नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा करने का विधान है।


नवदुर्गाओं में प्रथम स्वरूप शैलपुत्री का हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं।

यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।


एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए व्याकुल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं।

ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है। सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।


वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।