Home Rajasthan Ajmer अपने सम्प्रदाय और गुरु को मानें सर्वश्रेष्ठ : स्वामी श्रवणानंद

अपने सम्प्रदाय और गुरु को मानें सर्वश्रेष्ठ : स्वामी श्रवणानंद

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अपने सम्प्रदाय और गुरु को मानें सर्वश्रेष्ठ : स्वामी श्रवणानंद
shrimad bhagwat katha and vishnu mahayagya at patel ground in ajmer
shrimad bhagwat katha and vishnu mahayagya at patel ground in ajmer

अजमेर। पटेल मैदान में आयोजित श्रीमदभगवत कथामृत ज्ञान गंगा में मौजूद श्रृद्धालु उस वक्त भावविभोर हो उठे, जब वृंदावन धाम से आए कथा व्यास स्वामी श्रवणानंद सरस्वती ने भक्तगणों को रूकमणी विवाह का प्रसंग संगीत की मधुर सुलहरियों के बीच अपने श्रीमुख से सुनाए।

रूकमणी विवाह सचित्र वर्णन को सुन श्रद्धालु अपने आपको रोक नहीं पाए और श्रीहरि के रंग में रंग कर कदम थिरकने लगे। इससे पूर्व कथा व्यास स्वामी श्रवणानंद सरस्वती ने कथा के दौरान अमृतवाणी में तू कर बंदगी और भजन धीरे-धीरे संकीर्तन जैसे ही शुरू किया सारा माहौल श्रीहरि की भक्ति के रंग में रंग गया।

संन्यास आश्रम के तत्वावधान में वेदांताचार्य स्वामी शिव ज्योतिषानंद जिज्ञासु के सानिध्य में आयोजित कथा की शुरुआत करते हुए स्वामीजी ने कहा कि जन्म लेने वाले की मृत्यु निश्चित है। सुख-दुख में सम रहने वाला व्यक्ति बुद्धिमान है। उपकार को कभी भुलाना नहीं चाहिए। माता-पिता के उपकार से हम कभी भी ऋणमुक्त नहीं हो सकते।

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श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन कर्ता भाव में शून्य है। अतरू मैं, मेरे से परे होने वाले से उन्हें कभी कोई दुख नहीं हुआ। स्वामीजी ने कहा कि श्रीकृष्ण के शरणगति लेने पर सारी विपत्तियां दूर हो जाती है। सात वर्ष की आयु में श्रीकृष्ण ने 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाए रखा, जिससे सब आश्चर्यचकित रह गए।

स्वामीजी ने कथा में मौजूद श्रद्धालुओं को कहा कि हमें अपने सम्प्रदाय व गुरु को श्रेष्ठ मानना चाहिए। परन्तु दूसरों की कभी निन्दा नहीं करनी चाहिए। ममत्व में अमंगल भी भावना रहती है। एकादशी के दिन इंद्रियों को आहार ना दे। कथा के दौरान वरूण द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति श्री जम्भेश्वर श्रीकृष्ण में विचार साम्य है।

भगवान जम्भेश्वर वाणी में उनका कृष्ण चरित्र शाश्वत दृश्य दर्शाता है। उन्होंने कहा कि रास पंचाध्यायी दशम स्कंध की श्रीमद् भागवत का प्राण है। उन्होंने कहा साधु दर्शन मात्र से जीवन को पवित्र कर देते हैं।

कथा का वाचन कर रहे स्वामीजी ने अनेक प्रसंगों का बड़ा सुंदर वर्णन करते हुए कथा को जारी रखा, जिसमें नारद जी ने कंस को मल युद्ध के आयोजन व अक्रुर द्वारा नंद बाबा को बुलाने की राय दी। श्रीकृष्ण इतने प्रेम से बोलते हैं कि सामने वाले अभिमान गल व जल जाते हैं।

श्रीकृष्ण का रजत नाम का धोबी पूर्व के रामावतार में जानकी जी पर आरोप लगाने वाला ही था। श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी स्वामीजी ने किया। कुब्जा के टेड़ेपन को ठीक किया। कुव्लयापीड़ हाथी को पहली बार उसी के दांत से मार गिराया। चाणूर असुर का उद्धार, कंस का वध, संत कृपा से ही कोई संत बनता है।

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उद्धव को संदेश देकर वृंदावन भेजा सहित कई प्रसंगों का सचित्र वर्णन किया। उन्होंने कहा कि भगवान का कोई आकार नहीं होता। जिसकी जैसी भावना वैसा ही रूप बना लेता है। प्रभु कृपा से ही कोई संत बनता है। उन्होंने गुरू का आदर करने का आह्वान करते हुए कहा कि गुरुजन ही राष्ट्र के निर्माता होते हैं।

गुरुकृपा व गुरुसेवा अमोघ होती है सहित कई प्रसंगों का संगीतमय वर्णन सुन भागवत कथा में मौजूद श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे। वहीं कथास्थल पर कथा आयोजन से पूर्व श्री विष्णु महायज्ञ में आए श्रद्धालु और यजमानों ने स्वामी शिवज्योतिषानंद महाराज के सानिध्य में हवन-यज्ञ कर धर्मलाभ कमाया।

इस मौके पर आश्रम के सदस्य कालीचरण खंडेलवाल, शंकर बंसल, किशन बंसल, ओमप्रकाश मंगल, रवि अग्रवाल, पंकज खंडेलवाल सहित बड़ी संख्या में आश्रम के विद्यार्थी और प्रदेश सहित देश के दूर-दराज इलाकों से आए सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से उपस्थित होकर श्रीहरि के निकट होने का अहसास किया।