Home Sirohi Aburoad अतीत मजबूर, वर्तमान मौन, भाजपा का चीर बचाए कौन!

अतीत मजबूर, वर्तमान मौन, भाजपा का चीर बचाए कौन!

0
अतीत मजबूर, वर्तमान मौन, भाजपा का चीर बचाए कौन!
bjp ex office bearer and workers meeting in falvadi near sirohi
bjp ex office bearer and workers meeting in falvadi near sirohi

सबगुरु न्यूज-सिरोही। भाजपा के वर्तमान हालात ने महाकाव्य काल की कुरुसभा की याद दिला दी। जहां चीर हरण हर कोई मौन और मजबूर होकर देखने को मजबूर थे। वहां पीडित और उत्पीडक एक ही परिवार के थे तो सिरोही भाजपा में दोनों ही एक पार्टी के हैं।

यहां नित नवीन घटनाक्रमों और गैरजिम्मेदाराना बयानों व कृत्यों से पार्टी की साख का हरण हो रहा है। कभी नियम विरुद्ध काम, तो कभी अधिकारियों के स्थानांतरण, कभी जनता की संपत्ति को पार्टी की संपत्ति बनाने के लिए तो कभी पार्टी के ठेकेदारों की निविदा विवाद को लेकर भाजपा के पदाधिकारी और कार्यकर्ता ही पार्टी को रौंदने में कोई कसर नहीं छोड रहे हैं। महत्वाकांक्षा की दौड में सत्ता सुख में निज हितों को पोषित करने के लिए पार्टी की साख को चोट पहुचा रहे हैं।

ताजा मामला भाजपा जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी का मीडिया मंे प्रकाशित बयान का है। भाजपा जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी के शनिवार को प्रकाशित बयानों से तो कम से कम यही प्रतीत होता है कि सिरोही  उन्हें गत माह उनके पुत्र और जिला उप प्रमुख कानाराम चौधरी के पीएमजीएसवाय योजना की संस्तुति की बैठक से वाक आउट और इस वजह राज्य सरकार के आदेशों की पालना में हुई देरी से न तो कोई सरोकार लगता है और न ही कोई अफसोस।

जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी के इस बयान ने महाकाव्य काल की कुरु राजसभा की याद दिला दी, जिसमें तत्कालीन सम्राट पुत्रमोह में पुत्रों के द्वारा किए जा रहे चीर हरण को भी न्यायोचित ठहराते रहे और परिणाम हुआ कुरुवंश का नाश। ऐसे ही हालात जिले में भाजपा के हो चुके हैं और जिलाध्यक्ष को अपने पुत्र द्वारा पार्टी की सरकार की गरिमा को ठेस पहुंचाने में कोई बुराई नजर नहीं आ रही है, बल्कि वह बेबाकी से यह कह रहे हैं कि बैठकें तो निरस्त हो जाती हैं।
जिला भाजपा में समर्पित भाजपाइयों का एक बडा समुह कथित रूप से जिलाध्यक्ष लुम्बाराम चौधरी पर पुत्रमोही होने का आरोप लगाते हुए अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पुत्र के माध्यम से पूरी करने का आरोप लगाते रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो पूरा एक समूह ही इसी विचार से बना है।

वैसे जिस तरह से जिलाध्यक्ष ने शनिवार को प्रकाशित अपने बयान में बहिष्कार की बात को नकारते हुए बैठकें कई बार स्थगित होने की दलील दी, उससे कार्यकर्ता भी अब शंका करने लगे हैं कि जिला उपप्रमुख कानाराम चौधरी द्वारा जिला परिषद की विशेष बैठक से वाक आउट करने को लेकर या तो उनकी सहमति थी या वे इसे अपनी ही पार्टी की सरकार के प्रति बगावत नहीं मानते।
वैसे विस्तारक योजना के तहत जिले में आने वाले प्रभारी को दिए अपने पत्र में भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री विरेन्द्रसिंह चैहान राज्य स्तरीय पदाधिकारी को पत्र देकर जिला संगठन द्वारा कार्यक्षमता की बजाय पसंद नापसंद के अनुसार पदों की बंदरबांट का भी आरोप पहले ही लगा चुके हैं।

शुक्रवार को दूरस्थ फलवदी नामक स्थान पर जिले के भाजपा के उपेक्षित कार्यकर्ताओं व पूर्व पदाधिकारियों की बैठक में गत महीने पनिहारी होटल में आयोजित विस्तारकों की कार्यशाला के संख्याबल से भी ज्यादा संख्या में पूर्व पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं की उपस्थिति थी।

यह उपस्थिति यही बता रही है कि जिलाध्यक्ष, तीनों विधायक और सांसद की कार्यप्रणाली तथा संगठन को अपनी पसंद नापसंदगी के अनुसार बंधक बनाने से कथित रूप से जनमत जुटा सकने वाले में भाजपा का स्थापित करने वालों में खासी नाराजगी है और वह इन पांचों पर आक्रोशित भी हैं।

यही कारण है कि सोशल मीडिया में यह पांचों जनप्रतिनिधि व पदाधिकारी विपक्ष से ज्यादा भाजपा के पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं के निशाने पर हैं। ऐसे में वर्तमान में जो नेतृत्व है उसमें भाजपा की स्थिति नाजुक है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पांचों में से कोई भी सिरोही जिले में भाजपा का सर्वमान्य नेता नहीं बन पाया है। वर्तमान में भाजपा के सांसद, विधायक और स्वयं जिलाध्यक्ष पूर्व जिलाध्यक्ष विनोद परसरामपुरिया और पूर्व विधायक तारा भंडारी की तरह स्वयं को जिले में भाजपाइयों के सर्वमान्य नेता के रूप में स्थापित नहीं कर पाए हैं। सभी ने जिले में अपने-अपने इलाके बांट कर खुद को स्थानीय और जातीय क्षत्रप बनाया, लेकिन पार्टी में विस्फोटक होती स्थिति पर ध्यान नहीं दिया।

वैसे इस नाराजगी से भाजपा के इन पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसा इसलिए कि राजनीति का रसास्वादन करने के इच्छुक ऐसे नाराज लोगों को दुत्कार के बाद भी चाकरी की आदत सर्वविदित है। इस कारण आगामी चुनावों में भी वह इन्हीं में से किसी जनप्रतिनिधि की सेवा में पूर्व की तरह ही उपस्थित जरूर नजर आ सकते हैं।

क्योंकि राजनीति में स्वाभिमान की बातें बेमानी होती है और सिरोही में तो देखने आया है कि रात को विरोध के सुर गाने वालों को अगली सवेरे पद मिल जाता है तो दोपहर को वह निंदा के विष की जगह चापलूसी की चाशनी उगलने लगते हैं। फिलहाल देखना है कि यह किनका विरोध पद के लिए है और किनका जनहित को लेकर। भाजपा एक विचारधारा है और इसका प्राकट्य स्वरूप इसके पदाधिकारी और कार्यकर्ता हैं। भाजपा का अपना प्राकट्य स्वरूप होता तो जरूर यह सलाह दे सकते थे कि…
सुनो द्रोपदी अस्त्र उठा लो, अब ना केशव आएंगे।