Home Headlines राहुल गांधी की कथित जासूसी, फिजूल का बखेड़ा

राहुल गांधी की कथित जासूसी, फिजूल का बखेड़ा

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राहुल गांधी की कथित जासूसी, फिजूल का बखेड़ा
why congress raises rahul gandhi snooping row
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जब कोई व्यक्ति लम्बे समय तक मुफ्त की सुविधाओं का लाभ उठाता है, तो एक समय बाद वही सुविधाएं उसका स्वभाव बन जाती हैं, और जब उसकी यह सुविधाएं छूट जाती हैं, तब उसके स्वभाव और आचरण में उसके लिए छटपटाहट आसानी से देखी जा सकती है।

इसके अलावा वह लोकप्रियता के दायरे से बहुत पीछे हो जाए तो वह उसे आसानी से पचा भी नहीं सकता, लेकिन वह अपने बयानों से यही प्रमाणित करने का प्रयास करता है कि उसकी प्रमाणिकता और प्राभाविकता बरकरार है।
कांग्रेस पार्टी के साथ वर्तमान में कुछ इसी प्रकार का घटनाक्रम घटित हो रहा है। लोकसभा चुनावों में अभूतपूर्व पराजय का सामना कर चुकी कांग्रेस के नेता इस प्राकृतिक सत्य को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेसी नेताओं का आचरण आज भी शासक वाला ही दिखाई देता है। कांग्रेसियों के लिए सब कुछ कहे जाने वाले राहुल गांधी आज निर्वासन की मुद्रा में हैं।

वे कहां हैं किसी को भी नहीं पता, कहा जाता है कि राहुल कांग्रेस में बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा के लेकर विदेश (?) यात्रा पर हैं। वर्तमान में कांग्रेसी नेताओं की लम्बी फौज राहुल की तारीफ के पुल बांधने में व्यस्त है, उनको लगता है कि ऐसा करने से शायद उनका भी भविष्य सुरक्षित हो जाए। कांग्रेस में राहुल गांधी तमाम प्रयोग करने के बाद भी असफल ही साबित हुए हैं।
दिल्ली पुलिस द्वारा की गई कथित जासूसी के मामले में कांग्रेस अपने आपको सक्रिय दिखाने का प्रयास कर रही हो, लेकिन यह जासूसी का मुद्दा फिजूल में ही खड़ा कर दिया गया है, जिसके लिए कांग्रेस पार्टी माहिर है। वर्तमान में कांग्रेस के पास राजनीति करने के लिए न तो कोई मुद्दा है और न ही नेतृत्व कर्ताओं के पास दिशादर्शन।

कांग्रेस की राजनीति को देखकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस में जितने भी सदस्य होते हैं वे कार्यकर्ता न होकर केवल नेता बने रहना चाहते हैं। वास्तव में काम तो कार्यकर्ता ही करता है, पर कांग्रेस में कार्यकर्ता ही नहीं है, तब कार्य कौन करेगा, कांग्रेस के सामने आज यही सबसे बड़ा सवाल है।
मुद्दे की तलाश में भटक रही कांग्रेस पार्टी के पास एक ऐसा मुद्दा हाथ हाथ लगा है जो वास्तविकता में मुद्दा है ही नहीं। अतिविशिष्ट लोगों की जानकारी के नाम पर दिल्ली पुलिस द्वारा राहुल गांधी की जानकारी प्राप्त करना वास्तव में उस प्रक्रिया का ही हिस्सा है जो कांग्रेस पार्टी की सरकारों के समय से चली आ रही है। इसे कांगे्रस ने ही प्रारंभ किया है। दिल्ली के पुलिस आयुक्त का साफ कहना है कि हमारे पास सरकार द्वारा बनाया गया एक प्रारूप है, हम उसी प्रारूप के अनुसार ही अपने कार्य को कर रहे हैं।

केवल राहुल गांधी ही नहीं अन्य अतिविशिष्ट लोगों की भी जानकारी हमारे इसी प्रारूप के अनुसार ली गई है। कांग्रेस की समझ देखिए या इसे बौखलाहट में उठाया गया कदम कहिए, उसने इस जांच प्रक्रिया को जासूसी करार दे दिया। 60 वर्षों तक नेहरू गांधी परिवार की कुटिल चालों को समझने में लगी रही जनता अब पूरी तरह इस परिवार की चालाकियों से परिचित हो चुकी है। राहुल बाबा सत्ता से दूर होते ही वीआईपी हो गए हैं।

अब तो लगता है कि उन्हें भारतीय नागरिक की तरह कानून का पालन करना या नियमों का पालन करना भी अपना अपमान महसूस होता है। यही कारण है कि हाल ही में दिल्ली पुलिस ने सामान्य प्रक्रिया के तहत राहुल गांधी के संबंध में पूछताछ क्या की, पूरी कांग्रेस बौखला उठी। यह किसी से छुपी बात नहीं है कि कांग्रेसियों ने ऐसा स्वत: ही बल्कि अपने कांग्रेसी आका के इशारे पर किया है। आखिर क्यों राहुल बाबा आम भारतीय नागरिक से विपरीत आचरण और व्यवहार कर रहे हैं।

दिल्ली के अन्य नागरिकों के समान ही राहुल बाबा अगर हिन्दुस्तान और दिल्ली के नागरिक हैं तो पुलिस को पूरा अधिकार है कि वह सामान्य लोगों की तरह उनके बारे में पूरी जानकारी रखे। पुलिस ने अगर राहुल गांधी की जानकारी मांगी है तो इस तरह की जानकारी भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी से भी मांगी गई है। इस प्रक्रिया से गुजरकर अगर आडवाणी अपमानित नहीं होंगे तो फिर राहुल बाबा इससे कैसे लज्जित हो सकते हैं?

अगर राहुल बाबा खुद को हिन्दुस्तानी आम नागरिक नहीं मानकर इग्लैंड के नागरिक मानते हैं तो निश्चित ही दिल्ली की पुलिस को कोई अधिकार नहीं है कि हिन्दुस्तानी नागरिक की तरह उनकी व्यक्तिगत जानकारियों का रिकार्ड अपने पास रखें। अगर नहीं तो राहुल बाबा को स्वयं आगे बढ़कर दिल्ली पुलिस की इस पहल का स्वागत करना चाहिए तथा अपनी माँ  सोनिया गांधी से जुड़ीं आवश्यक जानकारियां भी पुलिस को उपलब्ध कराना चाहिए।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी हमेशा से ही उस अवसर पर देश से बाहर रहते हैं, जब उनकी कांग्रेस और देश की जनता को जरूरत होती है। अभी पिछले महीने जब संसद का शीतकालीन सत्र प्रारंभ हुआ तो राहुल गांधी विदेश यात्रा पर रवाना हो गए। एक सांसद के तौर पर राहुल गांधी लोकसभा का हिस्सा हैं। ऐसे में क्या राहुल गांधी को अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं करना चाहिए? लेकिन राहुल ने अपने सार्वजनिक जिन्दगी से किनारा करके अपनी निजी जिन्दगी जीने को प्रधानता दी।

अमेठी की जनता ने उनको सांसद चुना, वहां की जनता का शायद यही भाव होगा कि राहुल अपने संसदीय जीवन में अमेठी का पूरा पूरा प्रतिनिधित्व करेंगे, लेकिन शायद अमेठी की जनता की यह सोच उस समय धराशायी हो गई होगी, जब राहुल संसद के महत्वपूर्ण सत्र को छोड़कर किसी अज्ञात स्थान पर रवाना हो गए। कांग्रेस ने हालांकि राहुल के कथित जासूसी मुद्दे को तिल का ताड़ बना दिया हो, लेकिन कांग्रेस की यह राजनीति रचनात्मक कतई नहीं मानी जा सकती।

 

former Prime Minister manmohan singh
former Prime Minister manmohan singh

मनमोहन पर कोयले की कालिख
कहते हैं बुरे काम का परिणाम भी बुरा ही होता है, लेकिन इससे भी ज्यादा बुरा होता है बुराई को आंख बन्द करके देखना। वास्तव में प्रत्येक बुरे काम का विरोध होना ही चाहिए, वह भी दमदार तरीके से। अगर हम बुरे काम को निष्क्रिय भाव से देखते रहे तो एक दिन वही बुराई हम पर ही हावी हो जाएगी।

भारत की वर्तमान राजनीतिक कार्यप्रणाली में यह बुराई का खेल अपनी चरम अवस्था को प्राप्त कर चुका है। केन्द्र की पिछली सरकार के मुखिया के रूप में जिम्मेदारी संभालने वाले मनमोहन सिंह आज कटघरे में हैं।

वैसे पूरी कांग्रेस ही घोटाले जैसे बुरे कार्य में संलग्र रही है, यह कई अवसरों पर सिद्ध हो चुका है, और धीरे धीरे कई घोटालों पर से परदा उठ भी रहा है। परदा उठने के बाद किस प्रकार का चित्र और चरित्र प्रदर्शित होगा, इससे कांग्रेसी राजनीति के धुरंधर राजनेताओं के कान खड़े होना स्वाभाविक है।
कांग्रेस के दामन पर लगी कोयले की कालिख में भोले भाले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ भी काले होते हुए दिखाई दे रहे हैं। मनमोहन सिंह ने कहा है कि एक दिन सत्य उजागर हो जाएगा। यह सही है कि इस घोटाले का सच उजागर होना ही चाहिए। लेकिन हम जानते हैं कि जिस प्रकार से शराब पीने वाले के आस पास रहने भर से ही एक शरीफ आदमी के बारे में भी शराबी की धारणा निर्मित होने लगती है, या फिर जैसी संगत होगी हमारा आचरण भी उसी के अनुसार ही हो जाता है अथवा दिखाई देता है।

मनमोहन सिंह के कार्यकाल में यह कई बार प्रदर्शित हो चुका था कि उनकी सरकार में तीन तीन निर्णायक ध्रुव रहे थे। जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी ने सरकार के मुखिया मनमोहन सिंह को कितना महत्व दिया था, हम सभी जानते हैं। राहुल गांधी की हिम्मत तो देखिए सरकार के अध्यादेश तक को फाड़ कर फेंक दिया था।

राहुल गांधी द्वारा यह कदम पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित ही कहा जाएगा। हालांकि इस विधेयक को अध्यादेश का रूप उस कैबिनेट ने ही प्रदान किया था, जिसे सोनिया राहुल अपनी ही समझते थे, इससे यह बात तो जग जाहिर है कि यह अध्यादेश बनाने में इनकी सहमति अवश्य ही रही होगी। बाद में राहुल का यह कदम हाथी के दांत जैसा ही साबित हुआ।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने कोयला घोटाले में खात्मा करने की रिपोर्ट प्रस्तुत की थी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस खात्मे की रिपोर्ट को खारिज करते हुए मनमोहन सिंह पर शिकंजा कस दिया और उन्हें न्यायालय में उपस्थिति होने के लिए आदेश दे दिया।

इससे यह बात तो प्रमाणित होती ही है कि कोयला घोटाले में कांग्रेस सरकार दोषी है, अब इसमें मनमोहन की भूमिका कितनी है, यह समय बताएगा। लेकिन जैसा मनमोहन सिंह ने कहा है कि आने वाले समय में सच उजागर हो जाएगा, उस सच को आज पूरा देश जानने को उतावला है। अब सवाल यह भी आता है कि क्या मनामेहन सिंह इस सच को स्वयं उजागर करेंगे या फिर अपने स्वभाव के अनुसार मौन साधकर बैठे रहेंगे।

सुरेश हिन्दुस्थानी

 

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